यह वो दौर था जब महिलाएं या तो टीचर हुआ करती थी, या डॉक्टर-नर्स. समाज की ही तरह बैंकिंग व्यवस्था भी पुरुष प्रधान थी. ऐसे माहौल में  एक महिला ने इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए राहें कैसे बनाई होंगी?

इसके अलावा बैंक के चेयरपर्सन के रूप में उनकी क्या योजनाएं हैं? इन सबके बारे में अरूंधति भट्टाचार्या ने बीबीसी से ख़ास बात की.

आपने इतनी बड़ी सफलता के लिए क्या-क्या तैयारियां की थीं?

मैंने इसके लिए अलग से  कोई तैयारी नहीं की थी. मैं स्टेट बैंक में पिछले 35 साल से काम कर रही हूं. यहां यह चलन है कि संस्था के भीतर से ही चेयरमैन उभर कर आता है. सभी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं.

कुछ भाग्य की बात है, तो कुछ तैयारी की बात.

हां, मैं यह जरूर कहना चाहती हूं कि हमारा बैंक अपने कर्मचारियों को आगे बढ़ने का भरपूर मौका देता है. अगर आप जी-जान लगाकर काम करते हैं तो उसका फल यहां जरूर मिलता है.

35 साल एक ही बैंक में, कैसे रह पाईं आप?

हां. यह सवाल मुझसे अक्सर किया जाता है. बल्कि नौजवान ज़्यादा करते हैं क्योंकि वे हर तीसरे साल नौकरी बदल देते हैं.

"स्टेट बैंक अब पैसा जमा कराने के लिए जगह जगह 'कैश डिपोजिट मशीन' लगाने वाला है. इस मशीन में ग्राहक अपना कार्ड स्वाइप करके पैसे डालेगा. पैसे डालते ही वह राशि बैंक में तुरंत जमा हो जाएगी. ये सेवा सारा दिन सारी रात चालू रहेगी."

-अरुंधति भट्टाचार्य, सीएमडी, भारतीय स्टेट बैंक

स्टेट बैंक ऐसी जगह है जहां कर्मचारियों को तरह-तरह के काम करने के मौके मिलते हैं. मैंने पिछले 35 साल में 12 तरीके के काम किए. और ये सारे काम एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं, बल्कि एकदम अलग थे.

जैसे रीटेल, यानि छोटे-छोटे ऋण का काम, बड़े ऋण का काम. ऋण देना, ऋण लेना. ट्रेजरी का काम. इसके अलावा मानव संसाधन का काम भी किया जो एकदम अलग तरीके का था.

मैंने नई कंपनी बनाने का काम किया. तरह-तरह के काम के अलावा मैंने देश के उतर-दक्षिण पूरब-पश्चिम हिस्सों और विदेशों में भी काम किया. इससे मुझे नई बातें सीखने का मौका मिला. इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैं एक काम में हूं और बोर हो रही हूं.

आपने अपनी क्षमताओं का इतना विस्तार कैसे किया?

मैं पहले मानव संसाधन का काम करती थी. दूसरी कंपनियां तो हमेशा यही कहती है कि आप जिसमें अच्छे हैं वही कीजिए. मगर इस बैंक की पॉलिसी अलग है. यह बैंक कोशिश करता है कि आपको तीन या चार तरह के काम दे ताकि आप अपनी क्षमताओं का विस्तार कर सकें.

स्टेट बैंक में हर तरीके के काम करने होते हैं. तो यदि आपको पास केवल रीटेल का अनुभव है, तो मुश्किल महसूस होगी. और यदि आप केवल बड़े क्रेडिट का काम कर के आएंगे, तब भी मुश्किल होगी.

आज स्टेट बैंक किन चुनौतियों का सामना कर रहा है?

एसबीआई की अरूंधति भट्टाचार्य कैसे पहुँचीं यहाँ तक?

स्टेट बैंक का कार्यक्षेत्र काफी विस्तृत है. इस पर एनपीएस (नॉन परफार्मिंग ऐसेट्स) का भारी दबाव है. इस तरह के ऋण के मामले में बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है. ताकि बैंक ने जो पैसा लगाया है वह वापस आ सके. यह सबसे बड़ी चुनौती है.

अर्थव्यवस्था में मंदी का असर बैंक के काम पर भी पड़ रहा है. हमें इसे संभालना है.

भारी भरकम स्वरुप के कारण बैंक की सेवा एक जगह अच्छी है, तो दूसरी जगह अच्छी नहीं है. हर इंसान के काम और पेश आने का तरीका अलग होता है. इसलिए कई बार सेवा की गुणवत्ता देश में जगह जगह अलग हो जाती है.

यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि हम 'यूनिफार्म लेवल ऑफ सर्विस' यानि एक जैसी सेवा दें जो हमारे सारे ग्राहकों को पसंद आए.

स्टेट बैंक अपनी डिजिटल सेवाओं का विस्तार कैसे करेगी?

हम अगर बैंक की किसी शाखा में जा रहे है तो शाखा के बाहर से ही हमें अपने मोबाइल या आईपैड से यह पता चलना चाहिए कि उस शाखा का बिजनेस टारगेट क्या है, वह अब तक अपने लक्ष्य को कितना हासिल कर पाया है और कितने लोग काम कर रहे हैं? यह तो मैनेजमेंट की बात हुई.

बैंक ग्राहकों के लिए भी अपनी सेवाओं को और डिजिटल करने की कोशिश कर रही है. ऐसी सुविधा होनी चाहिए ताकि जब ग्राहक शाखा में घुसने से पहले कार्ड स्वाइप करे और कस्टमर रिप्रेजेनटेटिव के पास जाए तो उस रिप्रेजेनटेटिव के पास ग्राहक की पूरी प्रोफाइल पहले से मौजूद हो.

एसबीआई की अरूंधति भट्टाचार्य कैसे पहुँचीं यहाँ तक?

प्रोफाइल मौजूद होगी तो उसे पता होगा कि आपके खाते में कितने पैसे हैं. आपकी ईएमआई है, या नहीं है. अगर नहीं है तो वह आपको होमलोन लेने की सलाह देगा. वरना अक्सर ब्लाइंड मार्केटिंग होती है.

ग्रामीण क्षेत्र के ग्राहकों को दी जाने वाली सेवाओं में इससे कैसे सुधार आएगा?

मेट्रोपॉलिटन के वे लोग जिनके बैंक खाते गांव में हैं वे आज भी पैसा जमा करने के लिए 10 बजे से पहले एक लंबी लाइन लगाते हैं. लोगों को काफी मुश्किल होती है.

"तरह तरह के काम के अलावा मैंने देश के उतर-दक्षिण पूरब-पश्चिम हिस्सों और विदेशों में भी काम किया. इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैं एक काम में हूं और बोर हो रही हूं. "

-अरूंधति भट्टाचार्य, सीएमडी, भारतीय स्टेट बैंक

इसके हल के लिए बैंक अब पैसा जमा कराने के लिए जगह जगह 'कैश डिपोजिट मशीन' लगाने वाला है. इस मशीन में ग्राहक अपना कार्ड स्वाइप करेगा और अपना नोट डाल देगा. नोट डालते ही राशि बैंक में तुरंत जमा हो जाएगी. यह सेवा सारा दिन सारी रात चालू रहेगी. यह मशीन एटीएम के पास ही उपलब्ध होगी.

इसके अलावा ग्रामीण ग्राहकों के लिए बैंक 'ग्रीन रेमिट प्रोडक्ट कार्ड' ला रहा है. इसके लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेने के बाद अपने अकाउंट में हर महीने पैसा डालने में आसानी हो जाएगी. इस कार्ड से बिना लिखे-पढ़े व्यक्ति भी पैसा आराम से जमा कर सकेंगे.

बैंकिंग सेक्टर पुरुष प्रधान माना जाता है. ऐसे में शीर्ष पर आने का सफ़र कैसा रहा?

मुझे पीछे खींचने वाले जितने लोग मिले उतने ही आगे बढ़ाने वाले लोग भी मिले. मुझे काफी अच्छे मार्गदर्शक मिले. उनकी कोशिश रही कि मैं अच्छा काम सीखूं, आगे बढूं.

जब मैं बैंक में आई थी तब महिलाओं ने बैंकिंग सेवा में आना शुरू ही किया था.

स्टेटबैंक के चेयरपर्सन के रूप में आपका लक्ष्य क्या रहेगा?

मैं तीन साल इस पद पर रहूंगी. इस दौरान मेरा लक्ष्य रहेगा कि मैंने बैंक को जैसा पाया है, उससे मजबूत बनाकर जाऊं.

Business News inextlive from Business News Desk