- 2008 के मामले में शिक्षक नेता को 2012 में किया गया था डिबार

- हाईकोर्ट व कुलाधिपति द्वारा मामले को निपटारे पर नहीं लिया संज्ञान

- केस में कोर्ट की अवमानना के दोषी बने कुलपति और कुलाधिपति

Meerut: सीसीएस यूनिवर्सिटी में एक तरफ जहां वीसी और रजिस्ट्रार के बीच पंगा चल रहा है वहीं एक और मामला सामने आ गया है। एक शिक्षक नेता को डिबार करने के मामले में हाईकोर्ट का आदेश नहीं मानने पर यूनिवर्सिटी के कुलपति की गलती से कुलाधिपति कोर्ट की अवमानना में फंस गए। इस मामले में शिक्षक नेता के खिलाफ की गई कार्रवाई में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी कोई निर्णय नहीं लेने पर यह अवमानना का मामला हुआ। जिसके दायरे में अब कुलपति के साथ कुलाधिपति भी आ गए हैं।

यह था मामला

सीसीएस यूनिवर्सिटी में ख्008 में तत्कालीन वीसी एसपी ओझा के समय टीचर्स की साठ दिन की गर्मियों की छुट्टियां कम करके ब्भ् दिन कर दी गई थी। जिसको लेकर उस समय मूटा के संयुक्त मंत्री विकास शर्मा धरने पर बैठ गए थे। इसके साथ ही उनके चैंबर में उनसे विकास शर्मा की बहस हो गई थी। जिसमें एसपी ओझा ने थाना मेडिकल में विकास शर्मा के खिलाफ अभद्रता करने और ऑफिस में तोड़फोड़ करने की शिकायत दर्ज कराई थी। विकास शर्मा के अनुसार यह मामला मई का था और जुलाई में एग्जाम कमेटी की हुई मीटिंग में उनको किसी भी कार्य करने से डिबार कर दिया गया।

लगातार काम करते रहे

विकास शर्मा के अनुसार वे इसके बाद से लगातार काम करते आ रहे थे। एसपी ओझा के बाद कुलपति वीसी गोयल यूनिवर्सिटी में आ गए। ख्0क्ख् में एक मीटिंग के दौरान वर्तमान कुलपति वीसी गोयल ने उनको उस मामले में डिबार कर दिया। विकास शर्मा लगातार काम करते रहे। जब जून ख्0क्ख् में कार्रवाई की लिस्ट आई तो उसमें इनको भी डिबार लिस्ट में डाला गया था। इस दौरान विकास शर्मा सीटा के महामंत्री हो गए थे। जब यह मामला सामने आया तो सीटा के अध्यक्ष अजय शर्मा ने वीसी से इसका कारण पूछा कि विकास शर्मा को किस आधार पर डिबार किया गया है।

कोर्ट के साथ कुलाधिपति को भी नहीं माना

यूनिवर्सिटी से आरटीआई के जरिए मिले जवाब पर सवाल खड़े करते हुए डिबार करने का कारण पूछा गया। जिसमें वीसी ने तीन लोगों प्रोफेसर राकेश कुमार, अशोक कुमार, डॉ महीपाल तोमर प्राचार्य डीएन कॉलेज गुलावठी की जांच कमेटी बना दी गई। इस मामले में विकास शर्मा दिसंबर ख्0क्ख् को हाईकोर्ट चले गए। जिसमें हाईकोर्ट ने कहा कि छह सप्ताह के अंदर इस मामले का निपटारा किया जाए। इसके बाद मामले में तत्कालीन कुलाधिपति बीएल जोशी के पास भी गए। जिसमें बीएल जोशी ने मई ख्0क्फ् में वीसी को इस प्रकरण में दो महीने में निपटारा करने के आदेश दिए।

अब हुआ ये

मामला वीसी के पास आया उन्होंने मीटिंग बुलाकर हाईकोर्ट के निर्देश पर स्टे ले लिया। इसके बाद से लगातार जांच चलती रही। हाईकोर्ट के निर्देश को रोकने पर एक बार फिर वे कोर्ट पहुंच गए। जहां इस मामले में ख्7 अक्टूबर ख्0क्ब् को जस्टिस आरडी खरे की कोर्ट में कहा गया कि कुलाधिपति को जिम्मेदार मानते हुए दो महीने में निर्णय नहीं होने पर संबंधित लोगों को चिह्नित करते हुए उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना मानी जाएगी। समय बीत गया और अभी तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं हुआ। जिसके चलते कुलपति की गलती से कुलाधिपति अब न्यायालय की अवमानना में फंस गए हैं।

इनका कहना है

विकास शर्मा का कहना है कि उनके वकील सुधीर दीक्षित की ओर से केस दायर किया गया था। कोर्ट के निर्णाय में कहा गया है कि जब भगवान ने एडम को दंडित करने से पहले उसका कसूर बताया था और उसको सफाई का मौका दिया गया था, तो शिक्षक नेता विकास शर्मा को ना कसूर बताया गया और ना ही शिकायत बताई गई और सीधे डिबार कर दिया गया। इस पूरे मामले में वीसी द्वारा रोके गए कोर्ट के निर्देश में कुलाधिपति को अवमानना का दोषी करार दिया गया है। जबकि कुलाधिपति ने इस मामले के निपटारे के निर्देश दिए थे। फिर भी आजतक कुछ नहीं हुआ।

वर्जन

इस मामले में अभी मैं कुछ नहीं कह सकता हूं। अभी मैं बाहर हूं, सात तारीख को लौटकर आऊंगा तो देखूंगा कि मामला क्या था। इस बारे में कुछ नहीं बताया जा सकता। - वीसी गोयल, वाइस चांसलर, सीसीएसयू