कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। फिल्मों को पसंद या न पसंद करने वाले भी दादा साहेब फाल्के को बखूबी जानते हैं। वैसे जाने भी क्यों न वो दादा साहेब ही थे जिन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की नींव रखी थी। 1870 में जन्में दादा साहेब फाल्के का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। आज भी दादा साहेब का नाम काफी मान सम्मान के साथ लिया जाता है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को जन्म देने वाले दादा साहेब ने फिल्म बनाने के लिए न जाने कितनी मुश्किलों का सामना किया, लेकिन अंत में वो फिल्म बनाकर ही माने।

फिल्म बनाने के लिए किए कई जतन
फिल्मों के लेकर दादा साहेब की दिवानगी से हर कोई वाकिफ है, उन्हें खुद एक फिल्म बनाने का ख्याल 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखने के बाद आया। इसी के चलते उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की नींव रखी। कहा जाता है कि अपनी दीवानगी को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्म अपनी पत्नी की गहने गिरवी रखे थे। यही नही, अपनी फिल्म की हीरोइन ढूंढने के लिए दादा साहेब रेड लाइट एरिया तक पहुंच गए थे।

भारत की पहली फिल्म बनी 'राजा हरिशचंद्र'
अखिरकार दादा साहेब ने साल 1913 में 'राजा हरिश्चंद्र' नाम की पहली फिल्म बनाई, जिसे बनाने में उन्हें लगभग 6 महीने का समय लगा था। यह एक फुल लेंथ फीचर साइलेंट फिल्म थी, जिसका बजट 15 हजार रुपये था। दादा साहेब एक डायरेक्टर, प्रोड्यूसर के साथ साथ राइटर भी थे। उन्होंने अपने करियर में करीब 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाई।

दादा साहेब फाल्के अवार्ड की शुरुआत
1944 में दादा साहेब इस दुनिया को छोड़कर हमेशा के लिए चले गए। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की शुरुआत करने वाले दादा साहेब के सम्मान में साल 1969 से दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जाता है। इस अवॉर्ड से देविका रानी को पहली बार सम्मानित किया गया।

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