शांति के लिए श्राद्ध

भारतीय समाज में पूर्वजों को इंसान की बैकबोन यानी कि रीढ की हड्डी की तरह माना जाता है। शायद इसीलिए पूर्वजों को धन्यवाद कहने और उन्हें सच्ची श्रद्धाजलि देने के लिए 16 दिन तक पितृ पक्ष मनाए जाते हैं। इन दिनों लोग हर दिन अपने पितरों को पानी देते हैं जिसे तर्पण नाम से जाना जाता है। इसके अलावा पूर्वजों यानी कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध आदि भी करवाया जाता है। श्राद्ध दोपहर 12 बजे के आस-पास करा जाए तो काफी अच्छा होता है। श्राद्ध सरोवर या नदी के किनारे के अलावा घर पर भी किया जा सकता है।

कई सारे व्यंजन

हालांकि अधिकांश लोग श्राद्ध में अलग-अलग प्रकार के व्यंजनों को बनवाते हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि श्राद्ध पर कई सारे व्यंजन बनवाए जाएं क्योंकि पूर्वज खाने के भूखे नहीं बल्कि प्रेम के भूखे होते हैं। वहीं इस दिन ब्राह्मण को भोजन करवाना शुभ होता है। उसके बाद उसे दक्षिणा, फल देकर सम्मान के साथ विदा करना ही पूर्वजों का सम्मान होता है। इसके अलावा कहा जाता है कि कौवे और पक्षियों को श्राद्ध का भोजन ग्रहण कराने से भी पितरों को शांति मिलती है।

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