::ये हैं चुनाव बहिष्कार के एग्जांपल::
1-दून के बद्रीश विहार में सीवर लाइन का निर्माण कार्य न होने की वजह से संडे को स्थानीय लोगों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया.

2-मुनस्यारी मेें चीन सीमा से लगे कई ग्राम पंचायतों ने खलिया टॉप व बलाती टॉप में मानव हस्तक्षेप कम करने को लेकर किया चुनाव बहिष्कार का ऐलान.

3-चमोली के थराली-रतगांव में भी वैली ब्रिज बनाए जाने की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार की घोषणा की.

4-दून के ही मिरास पट्टी में ग्रामीणों ने वन विभाग की भूमि से होकर गुजरने वाली डूंगा-थानगांव सड़क निर्माण को लेकर चुनाव बहिष्कार की घोषणा की. बाद में सीडीओ ने बैठक की.
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-दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के सोशल मीडिया सर्वे पोल में खुलकर बोले लोग
-75 परसेंट लोग बोले-चुनाव बहिष्कार के बजाय दूसरे विकल्प पर जनता को विचार करना चाहिए

देहरादून, 9 अप्रैल (ब्यूरो)। उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को चुनाव होने हैं. तैयारियों को फाइनल टच दिया जा रहा है. लेकिन, उत्तराखंड के कई ऐसे इलाके हैं, जहां लोगों ने विकास कार्य जैसे सड़क, बिजली, पानी, पुल, डॉक्टरों की कमी को देखते हुए चुनाव बहिष्कार को ऐलान किया है. इसी को लेकर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोल किया. इस पोल में 75 परसेंट लोगों का कहना है कि चुनाव बहिष्कार के बदले दूसरे प्रतिनिधि का चुनाव करना चाहिए. 44 परसेंट लोगों का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद सांसद जनता को भूल जाते हैं. जिससे उन पर जनता का विश्वास टूट जाता है. इसी प्रकार से 33 परसेंट लोगों ने कहा कि जनप्रतिनिधियों ने अपने वादे पूरे नहीं किए हैं. ऐसे ही 33-33 परसेंट लोगों का कहना है कि ऐसे जनप्रतिनिधियों ने न तो क्षेत्र में दर्शन दिए, वहीं विकास के नाम पर ठेंगा भी दिखाया.

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सोशल मीडिया पर पब्लिक रिएक्शंस
क्या राज्य के सभी 5 सांसद अपनी उस जनता के साथ यथासंभव रहे हैं. जिन्होंने उन्हें चुनकर संसद तक पहुंचाया. अपने किए वादों को सांसदों ने पूरा किया.
बिल्कुल नहीं--33 परसेंट
क्षेत्र में दर्शन नहीं--33 परसेंट
विकास के नाम ठेंगा--33 परसेंट
कुछ नहीं कहना--0 परसेंट

क्या, सच में चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने संसदीय क्षेत्रों में विकास के नाम पर 5 सालों तक महज औपचारिकताएं की हैं. योजनाएं बनाते रहे और सांसद निधि तक खर्च नहीं की. जिससे लोग गुस्से में हैं.
जनता को भूल गए--44 परसेंट
सांसद निधि खर्च नहीं की--11 परसेंट
जनता का विश्वास टूटा--44 परसेंट
कुछ नहीं कहना --0 परसेंट.

उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को चुनाव होने हैं. इस बार चुनाव जुदा दिख रहे हैं. न शोर, न शराबा, न पोस्टर-बैनर. लेकिन, लोगों में सड़कों को लेकर सबसे ज्यादा आक्रोश. 1 दर्जन से ज्यादा इलाकों में चुनाव बहिष्कार हुआ है. क्या कहेंगे.
ठीक है--47 परसेंट.
बिल्कुल गलत--27 परसेंट
बोलने का अधिकार है--27 परसेंट
कुछ नहीं कहना है--0

चुनाव के दौरान लोगों में विकास के नाम पर गुस्सा वाजिब है. लेकिन, क्या आप मानते हैं कि चुनाव का बहिष्कार करना जनता के लिए सही है या फिर दूसरे विकल्प पर विचार करना चाहिए.
चुनाव बहिष्कार ठीक--8 परसेंट
ये बिल्कुल ठीक नहीं--17 परसेंट
दूसरे प्रतिनिधि को चुनें--75 परसेंट
कुछ नहीं कहना---0 परसेंट

एक नजर
-आयोग के मुताबिक 2018 से 2022 तक 2067 ग्राम पंचायतों से हुआ पलायन.
-इन पंचायतों में रहने वाले 28531 लोग जिला मुख्यालयों व दूसरे जिलों में हुए शिफ्ट.
-ये पलायन करने वाले लोग सबसे ज्यादा 35.47 प्रतिशत नजदीकी कस्बों में गए.

जिलों में खाली हुए ये गांव
-टिहरी--9
-चंपावत--5
-पौड़ी--3
-पिथौरागढ़--3

rdehradun@inext.co.in