पोप ने दी क्रिसमस की बधाई
वेटिकन सिटी में रात को मिडनाइट मास का आयोजन किया गया। इसके लिये हजारों लोगों ने चर्च में एकत्रित होकर प्रार्थना की। इसके बाद पोप फ्रांसिस ने बेबी जीसस की मूर्ति को चूमकर सभी को क्रिसमस की बधाई दी और अपने संदेश में लोगों सादगी से त्योहार मनाने को कहा। हिंदुस्तान में भी लगभग सभी शहरों में लोगों ने 'क्रिसमस ट्री' सजाया और लोगों को उपहार देकर सुख और शंति की शुभकामनायें देनी प्रारंभ कर दी हैं। गोवा में देश के सबसे बड़े चर्च सी कैथेड्रल में क्रिसमस के मौके पर खास आयोजन किये गये हैं।
क्यों मनाते हैं क्रिसमस
क्रिसमस प्रभु यीशू के जन्मोत्सव की तरह मनाया जाता है। ये एक खुशियों का त्योहार है। इस त्योहार को दुनिया भर में 25 दिसंबर को मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन प्रभु यीशु ने जन्म लिया था। जन्मोत्सव की इन्हीं खुशियों को बांटने के लिए इस दिन सांता क्लॉज बच्चों के लिए ढेर सारे गिफ्ट लाते हैं। खुशी और उत्साह का प्रतीक इस त्योहार पर ईसाई धर्म के अनुयायी घर में संपन्नता के लिए 'क्रिसमस ट्री' को लगाते हैं और अपने घर को सजाते हैं। घर के आस-पास के पौधों को रंगीन रोशनी और फूलों से सजाया जाता है।
कैसे शुरू हुई सजावट की परंपरा
दरअसल क्रिसमस ट्री लगाने की यह परंपरा जर्मनी से आरंभ हुई। कहते हैं 8वीं शताब्दी में बोनिफेस नाम के एक ईसाई धर्म प्रचारक ने इसे शुरू किया था, इसके बाद अमेरिका में 1912 में एक बीमार बच्चे जोनाथन के अनुरोध पर उसके पिता ने क्रिसमस वृक्ष लगाकर सजाया था तब से यह परंपरा अमेरिका में भी शुरू हो गई।
कैरोल गायन
क्रिसमस के दिन कैरोल भी गाया जाता है। कैरोल एक शुभकामना गीत है। माना जाता है कि कैरोल गाने की परंपरा 14वीं शताब्दी से शुरू हुई। सबसे पहले कैरोल इटली में गाया गया। कैरोल को 'नोएल' भी कहा जाता है, इन गीतों के जरिए पड़ोसियों और दोस्तों को क्रिसमस की शुभकामनाएं दी जाती हैं।
भारत में ईसाई धर्म की शुरूआत
भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत ईसा मसीह के शिष्य सेंट थॉमस ने की थी। वे भारत में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने सदियों पहले केरल आए थे। केरल में सेंट थॉमस और माता मरियम के नाम पर एक ऐतिहासिक चर्च है। इसके अलावा केरल में सेंट जॉर्ज चर्च, सेंट फ्रांसिस चर्च, सेंट जॉर्ज कैथेड्रल, सेंट क्रूज बेसिलिका चर्च, होली फेमिली चर्च आदि चर्च प्रसिद्ध हैं।
सांता क्लॉज का परिचय
सांता क्लॉज बच्चों के लिए क्रिसमस पर गिफ्ट लाने वाले देवदूत हैं। क्रिसमस पर अमूमन हर छोटे बच्चे के नजरिए से सांता क्लॉज का यही रूप है, लेकिन संत निकोलस को असली सांता क्लॉज का जनक माना जाता है। संत निकोलस का यीशु के जन्म से कोई संबंध नहीं है किंतु वर्तमान में क्रिसमस पर्व पर सांता क्लॉज की अहम भूमिका रहती है। संत निकोलस का जन्म यीशु की मृत्यु के 280 वर्ष बाद मायरा में हुआ था। निकोलस, अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया, इसके बाद वो प्रभु यीशु की शरण में आए। निकोलस जब बड़े हुए तो ईसाई धर्म के पादरी और बाद में बिशप बने तब वह संत निकोलस के नाम से जाने गए। संत निकोलस को गिफ्ट देना बेहद प्रिय था, वे अमूमन अपने आस-पास मौजूद गरीब, नि:शक्तजनों और खासतौर पर बच्चों को गिफ्ट्स दिया करते थे। उन्हें यह काम करने में मन की शांति मिलती थी, लेकिन लोगों को उनका ये रवैया बिल्कुल पसंद न था। इस तरह ऐसा चलता रहा लेकिन आखिर में संत निकोलस के इस नजरिए को लोगों ने अपनाया।
कैसे शुरू हुई क्रिसमस पर कार्ड देने की परंपरा
क्रिसमस पर कार्ड देने का प्रचलन विलियम एंगले ने शुरु किया था। वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1842 में पहली बार क्रिसमस कार्ड भेजा था। कहते हैं इस कार्ड में एक शाही परिवार की तस्वीर थी। उस समय क्रिसमस पर कार्ड भेजना प्रचलन में नहीं था। यह बिल्कुल नई बात थी। इसलिए यह कार्ड रानी विक्टोरिया को दिखाया गया। तब रानी ने खुश होकर चित्रकार डोबसन को बुलवाकर शाही कार्ड तैयार करवाए और तभी से क्रिसमस कार्ड का प्रचलन शुरू हुआ और ये एक परंपरा का रूप धारण करती
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