- एनजीओ की ओर से फ्री कैंप में ऑपरेशन के बाद दो की आंखों की रोशनी गई

- कई की आंखों में सूजन और धुंधलापन की शिकायत, दोबारा दिखाने गए पेशेंट्स को लौटाया

- जे एल रोहतगी आई हॉस्पिटल में लगे कैंप के अतर्गत एक साथ किए गए थे ऑपरेशन, अब इलाज के लिए भटक रहे मरीज

KANPUR@inext.co.in

मथुरा और आगरा में हुए अंखफोड़वा कांड के बाद शहर में भी नि:शुल्क कैंप लगा कर होने वाले आंख के ऑपरेशन में लोगों के अंधे होने की बात सामने आई है। इसके अलावा कई पेशेंट्स की आंखों में सूजन, दर्द और इंफेक्शन हो गया है। इन सभी पेशेंट्स ने फ्री आई चेकअप कैंप में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद जेएल रोहतगी आई हॉस्पिटल में ऑपरेशन कराए थे। लेकिन आंख में प्रॉब्लम आने के बाद जब पेशेंट दोबारा दिखाने गए तो वहां पर मना कर दिया गया। इनके अलावा एक दर्जन पेशेंट्स ऐसे हैं जिन्हें फ्री कैंप में ऑपरेशन कराने के बाद आंख में प्रॉब्लम की बात सामने आई है। जिन गरीबों का ऑपरेशन किया गया, उसके लिए राष्ट्रीय अंधता कार्यक्रम के कैंप लगाया गया था।

इन पेशेंट्स को दिखना बंद हुआ।

क्.उमेश तिवारी, शुक्लागंज

ख्.रामबेटी, उत्तमपुर, बिल्हौर

इनकी आंखों में आई प्रॉब्लम

क्-जसप्रीत, चौबेपुर

ख्- सुमन कनौजिया, कर्नलगंज

ओमर वैश्य जगदीश मंडल के कैंप में हुए थे ऑपरेशन

शुक्लागंज के प्रॉपर्टी डीलर उमेश तिवारी ने धुंधली रोशनी से छुटकारा पाने के लिए ओमर वैश्य जगदीश मण्डल के कैम्प में ख्9 दिसंबर को नि:शुल्क ऑपरेशन कराया। उसने सोचा था कि वो आंख की रोशनी आने पर वैष्णो देवी मंदिर दर्शन करने जाएगा लेकिन उसका ये सपना टूट गया। उसे ऑपरेशन के बाद से कुछ दिखाई नहीं दे रहा।

बुढ़ापे में चली गई आंख की रोशनी

बिल्हौर के उत्तमपुर में रहने वाली रामबेटी मोतियाबिन्द से पीडि़त थीं। वो आर्थिक तंगी की वजह से ऑपरेशन नहीं करवा पा रही थीं। एक युवक ने उसे संस्था के कैम्प में नि:शुल्क ऑपरेशन करवाने की सलाह दी तो वो तैयार हो गई। उसने सिंधी कॉलोनी में लगे कैम्प में ऑपरेशन करवाया लेकिन आंख में रोशनी लौटने के बजाए उन्हें पूरी तरह से दिखना बंद हो गया।

ऑपरेशन के बाद इंफेक्शन फैला

सिंधी कालोनी के कैम्प में चौबेपुर के जसप्रीत ने भी ऑपरेशन करवाया लेकिन उसे अभी भी धुंधला दिखाई दे रहा है। उसकी आंख इंफेक्शन की वजह से सूज गई। वो दोबारा हॉस्पिटल में डॉक्टर के पास चेकअप कराने गया तो वहां पर कर्मचारियों ने उसे ये जानने के बाद टहला दिया कि उसने कैम्प में ऑपरेशन करवाया था। अब वो वहां के चक्कर लगा रहा है। मंगलवार को डॉक्टर ने दवा न होने का बहाना बनाकर उसे वापस भेज दिया।

आंख में दर्द और सूजन

कर्नलगंज की सुमन कनौजिया संस्था के कैम्प में ऑपरेशन करवाकर पछता रही हैं। उन्हें अभी भी धुंधला दिखाई दे रहा है। साथ ही उनके आंख में दर्द और सूजन की शिकायत आ गई है। वो हॉस्पिटल गईं लेकिन अब उन्हें डॉक्टर नहीं मिल रहे। नतीजा ये है कि वो भी हॉस्पिटल के चक्कर लगाने के लिए मजबूर हैं।

एक दिन में सैकड़ों मरीजों का करते है आपरेशन

संस्था की ओर आयोजित कैम्प में सैकड़ों मरीजों का ऑपरेशन होता है। अमूमन एक कैम्प में भ्0 से क्00 मरीज का ऑपरेशन होता है। ऑपरेशन दो से तीन डॉक्टर ही करते हैं। इस बारे में हॉस्पिटल प्रशासन का कहना है कि कैम्प में कोई हीलाहवाली नहीं होती है। मरीजों की संख्या के हिसाब से ही डॉक्टर होते हैं। एक डॉक्टर पर ज्यादा बोझ नहीं डाला जाता है।

अनुदान के खेल में ताबड़तोड़ ऑपरेशन

कई एनजीओ को राष्ट्रीय अंधता कार्यक्रम के तहत गरीब लोगों को मोतियाबिंद के ऑपरेशन करने के लिए प्रति व्यक्ति एक हजार से भ् हजार तक का अनुदान मिलता है। इन ऑपरेशनों को कराने के लिए कई जिलों से एनजीओ पेशेंट्स को बसों में भर भर कर आंख के अस्पतालों में लाते हैं। ये मरीज अस्पताल को फीस नहीं देते इसलिए हॉस्पिटल इनकी ऑपरेशन के बाद मदद नहीं करता। इनका ऑपरेशन कैंप के तहत होता है।

कुछ दिन पहले ही कन्नौज जा रही 70 ऐसे ही ऑपरेटेड पेशेंट्स से भरी बस बिल्हौर में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। जिसमें दो की मौत हो गई थी और आधा दर्जन पेशेंट्स घायल हो गए थे। उन्हें भी वहां की संस्था ही भर कर लाई थी। जिन्हें प्रति ऑपरेशन क् हजार रुपए फंड मिलना था।

आपरेशन के बाद पेशेंट्स को भूल गए

संस्था के कैम्प में नि:शुल्क ऑपरेशन कराने वाले ज्यादातर मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। वे प्राइवेट हॉस्पिटल में ऑपरेशन में कराने में सक्षम नहीं होते। कैम्प में उनका ऑपरेशन हो जाता है, लेकिन उसकी केयर नहीं की जाती। अगर उन्हें आपरेशन के बाद दिक्कत होती है तो कर्मचारी फीस नहीं मिलने के चलते उन्हें बहाना बनाकर टहला देते है। उन्हें डॉक्टर से मिलने के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं, डॉक्टर प्राइवेट इलाज कराने वाले की केयर करते है। उन्हें कोई भी परेशानी होने पर डॉक्टर देखते हैं।

अंग भंग की हो सकती है रिपोर्ट

वरिष्ठ अधिवक्ता अनंत शर्मा ने बताया कि इलाज में लापरवाही की बात पुष्ट होने पर धारा फ्ख्म् के तहत अंग भंग करने की रिपोर्ट दर्ज की जाती है। जिसमें आरोपी को क्0 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा व जुर्माना दोनों का प्रावध्ान है.

कोट

हर दिन क्00 से क्ख्भ् ऑपरेशन होते है। जिसमें एक प्रतिशत या उससे भी कम मरीज का ही ऑपरेशन सफल नहीं हो पाता। इसमें डॉक्टर की लापरवाही नहीं होती है। ऑपरेशन के बाद एस्ट्रोपिन डाल कर पेशेंट की ड्रेसिंग की जाती है जिसकी वजह से क्भ् दिन तक धुंधला दिखने की प्रॉब्लम हो सकती है। कुछ मामलों में मरीज की आंख का मोतियाबिन्द पक जाने के चलते उसकी रोशनी नहीं आती है, जबकि कुछ मामलों में तो मरीज की लापरवाही होती है। मरीज समय पर ऑपरेशन नहीं करते हैं। जिसकी वजह से उनकी रोशनी नहीं आती। मरीज कैम्प में या प्राइवेट आपरेशन कराए, उसमें लापरवाही नहीं बरती जाती है।

-विजय टंडन, प्रशासक, जेएल रोहतगी हास्पिटल

फ्री कैंप में ऑपरेशन कराने के बाद अधंता की प्रॉब्लम गंभीर मामला है। ऑपरेशन कराने वाली संस्था या हॉस्पिटल की इसे लेकर पूरी जिम्मेदारी होती है। अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत हॉस्पिटल सरकार के साथ एमओयू साइन करते हैं गरीबों के इलाज को लेकर कई शर्ते होती हैं। जिसमें ऑपरेशन के बाद भी प्रॉब्लम आने पर इलाज करने की जिम्मेदारी भी शामिल है। मामला गंभीर है देखा जाएगा कि इलाज में कहां लापरवाही हुई है।

-डॉ। एके सिंह, प्रभारी अंधता निवारण कार्यक्रम