1 - रिक्रूटर कैंडीडेट से वर्तमान और प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव को लेकर जानकारी इकट्ठा करता है। अब देखिए कि गूगल के कंप्यूटर विश्लेषक का क्या कहना है। इसके बाद अगर कैंडीडेट ने अपने डॉक्यूमेंट्स को लाइन से लगाकर नहीं दिया है तो विश्लेषक उसके बारे में भी पूछेंगे। इसके बाद विश्लेषक पूछेंगे कि उन्होंने इसी कंपनी के अन्य उम्मीदवारों के अतीत में क्या देखा।

2 - मुआवजा विश्लेषक कैंडीडेट के लिए प्रस्तावित पैकेज को उसकी भूमिका, स्थान और स्तर के आधार पर रखता है। इसके स्टैंडर्ड ऑफर पैकेज में तीन खास बातें शामिल होती हैं। ये तीन खास बातें हैं आधार वेतन, बोनस और प्रतिबंधित स्टॉक इकाइयां। इसके बाद गूगल उचित मार्केट रेट के हिसाब से तीन बातों को प्रमुखता पर रखकर सैलरी निर्धारित करता है। ये तीन चीजें हैं रोल, लोकेशन और लेवल। इन सबके साथ ही गूगल आधार सैलरी के अलावा ओवरऑल मुआवजा पैकेज पर भी पूरी तरह से फोकस करता है।  

3 - स्टैंडर्ड ऑफर की ओवरऑल वैल्यू अगर कैंडीडेट के वर्तमान और प्रतिस्पर्धी मुआवजे से ज्यादा होती है तो स्टैंडर्ड ऑफर को अप्रूव कर दिया जाएगा। यहां तक कि अगर उम्मीदवार की वर्तमान मुआवजा दर स्टैंडर्ड ऑफर से कम भी है तो इसे वैसे भी बढ़ाया जा सकता है। खास बात सिर्फ ये है कि गूगल अपने निर्धारित रेंज से कम ऑफर नहीं दे सकता है।  

4 - हां, लेकिन अगर स्टैंडर्ड ऑफर की ओवरऑल वैल्यू कैंडीडेट के वर्तमान और प्रतिस्पर्धी मुआवजे से कम होती है तो मुआवज विश्लेषक एक प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव को उपलब्ध कराने पर काम करते हैं। अब ये प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव निर्भर करता है कि कंपनी को आपकी कितनी ज्यादा जरूरत है। इसका फैसला होता है कि आपको काम पर रखने वाली समिति ने आपको किस ग्रेड पर चुना है। अब ये सीधे तौर पर संबद्ध होता है कि इंटरव्यू में आपको कितने स्कोर मिले हैं। इसके बाद बिजनेस यूनिट के हेड की ओर से अप्रूव किए गए कैंडीडेट का कॉम्पटेटिव ऑफर, स्टैंडर्ड ऑफर से अगर ज्यादा होता है तो उसे अप्रूव कर दिया जाता है।   

5 - अब अगर आपको गूगल की ओर से ऑफर मिल जाता है तो आप वाकई फायदे में होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पहले से मुआवजा दर पाने वालों से आज के मुआवजे की दर ज्यादा होगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि अब गूगल में भी मुआवजा राशि कोई बहुत बड़ी और मुश्किल चीज नहीं रही।

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