तो बढ़ेंगे court cases
  एजुकेशन और इकोनॉमिक वेल्थ में इंप्रूवमेंट के साथ ही कोर्ट में फाइल किए जाने वाले केसेज की संख्या भी बढ़ेगी। इस फैक्ट को जस्टिस डिलीवरी सिस्टम को इंप्रूव करने के लिए नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम कमिटी द्वारा तैयार किए गए एक्शन प्लान में इस उठाया गया है। इस फैक्ट को प्रमाणित करने के लिए रिपोर्ट में हाई लिटरेसी रेट वाले स्टेट केरला और लिटरेसी रेट के मामले मे पिछड़े झारखंड का एग्जांपल दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस कपाडिय़ा की देखरेख में बनाई गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लिटरेसी रेट और पर कैपिटा इनकम में बढ़ोत्तरी के साथ अगले तीन दशकों में प्रति एक हजार पॉपुलेशन में नए केसेज की संख्या प्रेजेंट में 15 से बढक़र 75 हो जाएगी।

 झारखंड है example
लिटरेसी रेट के मामले में झारखंड का स्थान 25वां है। स्टेट का लिटरेसी रेट नेशनल लिटरेसी रेट से भी करीब सात परसेंट कम है। स्टेट ज्यूडिशियल सर्विस के अधिकारी भी स्टेट में प्रति हजार व्यक्ति कोर्ट केसेज की कम संख्या के लिए एजुकेशन को वजह बता रहे हैैं। इसका रिजन बताते हुए ज्यूडिशियल सर्विस के एक अधिकारी ने बताया की लिटरेसी रेट कम होने के साथ-साथ लोगों में टोलरेंस बढ़ जाता है। ऐसे में मैक्सिमम टाइम लोग अपने कानूनी अधिकारों का उपयोग नहीं करते।

हर महीने 1500 नए कोर्ट केसेज
उन्होंने बताया कि नक्सल जैसी समस्याओं की वजह से लोग एक्सट्रा ज्यूडिशियल रिकोर्स भी लेने लगते हैैं। इलिटरेट होने की वजह से कई बार लोग जेनुईन वजहों में भी पुलिस और कोर्ट का रूख करने से डरते हैैं। बात अगर ईस्ट सिंहभूम डिस्ट्रिक्ट की करें तो यहां हर महीने करीब 1500 नए कोर्ट केसेज दर्ज होते हैैं।

तो बढ़ेगा awareness

रिपोर्ट में कहा गया है कि पर कैपिटा इनकम बढऩे के साथ कोर्ट केसेज की संख्या भी बढ़ती है। लॉ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनकम बढऩे के साथ लोगों में टॉलरेंस लेवल कम होता है। ऐसे में लोग अपनी प्रॉब्लम्स के लिए लीगल रिकोर्स लेने की प्रवृत्ति बढ़ती है। पर कैपिटा इनकम के मामले में भी स्टेट अन्य स्टेट्स की तुलना में काफी पीछे है। स्टेट में पर कैपिटा इनकम सिर्फ 4161 रुपए है। ऐसे में लोगों में अपने लीगल राइट्स के प्रति अवेयरनेस की कमी की बात को समझा जा सकता है।

मेरे यहां आने वाले लोगों में    ज्यादातर लोग ऐसे होते हैैं जिन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती। कई मामलों में परेशान किए जाने के बावजूद वो पुलिस या कोर्ट के पास जाना नहीं चाहते।
संजय प्रसाद, एडवोकेट, सिविल कोर्ट, जमशेदपुर