छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : सिटी स्थित बिरसानगर का जोन नंबर - 7. यहां गोलमुरी क्लब के पास गली स्थित एक मकान से बच्चों के पढ़ने की आवाज आ रही है। उस मकान के पास पहुंचे तो देखा कि मिट्टी से सने कपड़े पहने बच्चों को इंग्लिश में सिंगुलर और प्लुरल का फर्क बताया जा रहा है। उन्हें बुक-बुक्स और नाइफ-नाइव्स के बारे में समझाया जा रहा है। पढ़ाने वाली टीचर टूटी-फूटी हिंदी में ही सही, पर बच्चों को समझाने में कामयाब हो रही हैं। वह उन बच्चों को पढ़ा रही हैं, जिनमें से ज्यादातर के पैरेंट्स मजदूरी करते हैं और वे अपने बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ हैं। कई बच्चे तो अनाथ भी हैं। शनिवार को सरस्वती पूजा है और आज के दिन हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बता रहे हैं, जो दूसरे देश से आकर न सिर्फ यहां बस गई हैं, बल्कि गरीब बच्चों को फ्री में एजुकेशन भी प्रोवाइड करा रही हैं। यह महिला और कोई नहीं, फिलिपींस से आकर इस शहर को अपना बना चुकी नूरा शिवा हैं।

बच्चों पर खर्च करती हैं अपनी कमाई

नूरा शिवा ने बताया कि तीन जगहों पर दो शिफ्ट में क्लासेज चलाई जाती हैं, जहां लगभग 400 बच्चों को फ्री में एजुकेशन प्रोवाइड कराई जाती है। इसके अलावा ब्वॉयज और ग‌र्ल्स हॉस्टल भी है, जहां अनाथ और जरुरतमंद बच्चे रहते हैं। टीचर्स की सैलरी और हॉस्टल के एक्सपेंसेज को मिला दें तो हर महीने लगभग 40-45 हजार रुपए का खर्च आता है। इतने पैसे कैसे मैनेज कर पाती हैं, इस सवाल पर नूरा शिवा थोड़ी उदास हो गई और कहा कि उन्हें कहीं से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है। इन खर्चो को पूरा करने के लिए सुबह में सब्जी बेचती हूं और दोपहर में सिलाई का काम करती हूं। इसके बाद भी कमी रह जाती है तो हसबैंड को मिलने वाली सैलरी भी बच्चों पर ही खर्च कर देती हूं। नूरा के हसबैंड मनोज शिवा टाटा मोटर्स में टेम्पररी इंप्लॉई हैं।

जब नूरा ने बच्चों के लिए कुछ करने का ठाना

नूरा शिवा फिलिपिन्स की रहने वाली है। उन्होंने मनीला से पॉलिटिकल साइंस में ऑनर्स तक की पढ़ाई की है। उसके बाद वे साउथ कोरिया में एक कंपनी को ज्वाइन किया। यहीं उनकी मुलाकात जमशेदपुर के मनोज शिवा से हो गई। दोनों ने 1995 में शादी कर ली। इसके बाद नूरा का जमशेदपुर आना-जाना शुरू हो गया। बात 2008 की है, जब यूएसए में प्रेसिडेंट का इलेक्शन हो रहा था। बराक और मिशेल ओबामा साथ दिख रहे थे। नूरा ने बताया कि एक रात उन्होंने सपना देखा कि मिशेल उनके घर आईं और उन्होंने गरीब और असहाय बच्चों की सहायता करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। इसके अगली सुबह से ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। पहले घर-घर जाकर पढ़ाती थी। बाद में पैरेंट्स ने अपने बच्चों को मेरे घर पर ही पढ़ने के लिए भेजना शुरू कर दिया। दो बच्चों से शुरु हुआ सफर आज 400 बच्चों तक पहुंच चुका है। नूरा नर्सरी से क्लास 10वीं के तक बच्चों को फ्री एजुकेशन प्रोवाइड करा रही हैं।

एनजीओ भी मिशेल ओबामा के नाम पर है रजिस्टर्ड

नूरा से बताया कि उन्हें किसी ने सलाह दी कि गवर्नमेंट और दूसरी जगहों से हेल्प के जरुरी है कि उनका एनजीओ रजिस्टर्ड हो। ऐसे में जब एनजीओ खोलने की बात आई तो अपनी आइडल मिशेल ओबामा के नाम पर ही एनजीओ रजिस्टर्ड कराया। एनजीओ का नाम मिशेल ओबामा एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी है। इसे पिछले साल ही रजिस्टर्ड कराया गया है। हालांकि अभी तक कहीं से किसी तरह की मदद नहीं मिली है।