ईद के दो महीने बाद बकरीद
ईद-उल-फितर के दो महीने 10 दिन के उपरांत ईद-उल-अजहा का पर्व आता है। यह कुर्बानी पर्व के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कुर्बानी देने से अल्लाह के करीब आने का मौका मिलता है, खासकर कुर्बान किए जानेवाले जानवर में जितने बाल होते हैं, उतनी ही नेकी अल्लाह से हासिल होती है और गुनाह भी माफ हो जाते हैं। रांची ईदगाह के इमाम मौलाना असगर मिसबाही बताते हैं कि अल्लाह को कुर्बानी के गोश्त
रांची ईदगाह में जुटे नमाजी
बकरीद को लेकर रांची ईदगाह में सुबह से ही नमाजियों की भीड़ जुटने लगी थी। यहां के इमाम मौलान असगर मिसबाही ने बताया कि
सुबह नौ बजे ईद-उल-अजहा की नमाज अता की गई और लगभग 35 हजार अकीदतमंदों ने यहां नमाज अता की।
नमाज के पहले सुबह 8.25 मिनट पर दिए गए अपनी तकरीर में मौलाना मिस्बाही ने कहा कि आज देश कई प्रॉबलम्स से जूझ रहा है। देश में इंटरनल और एक्सटर्नल लेवल पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, ऐसे में मुसलमानों को चाहिए कि वे बड़ी से बड़ी कुर्बानी देकर मुल्क की रक्षा करें। इसके अलावे अपनी ख्वाहिशों की बजाय अल्लाह के हुक्म के मुताबिक मुसलमानों को जिंदगी जीना चाहिए। इस दौरान लोगों ने एक- दूसरे के गले मिलकर बकरीद की शुभकामनाएं दी।