रांची (ब्यूरो)। सेंट पॉल महागिरजाघर बहू बाजार रांची की स्थापना के पूर्व यहां मात्र एक झोपड़ी में आराधना होती थी। फरवरी 1870 में जॉर्ज एडवर्ड मिलमेल ने सभी से परामर्श कर एक यथेष्ट और पक्का आराधना के लिए बनाने का निर्णय लिया। जर्नल रोलेट ने नक्शा तैयार किया। सितंबर 1870 में छोटानागपुर के कमिश्नर जनरल डाल्टन ने नींव रखी। आर्थर हेजोर्ग ने कैथेड्रल के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैथेड्रल के निर्माण में कुल खर्च 26,000 रुपए आए। शनिवार 9 मार्च 1873 को नवनिर्मित सेंट पॉल महागिरजाघर, रांची का विधिवत संस्कार एवं उद्घाटन बड़े धूमधाम से बिशप रॉबर्ट मिलमेल द्वारा करवाया गया।

कैथेड्रल के अविस्मरणीय चिन्ह

बपतिस्मा कुंड : 1909 में व्यस्त लोगों को बपतिस्मा कराने के लिए एक कुंड का निर्माण चर्च परिसर में कराया गया। बच्चों का बपतिस्मा चर्च के अंदर ही होता है।

ऊकाबी स्तंभ : 1919 में ऊकाबी स्तंभ प्रतिष्ठित किया गया। जिसको हर आराधना के समय पाठ पढऩे के लिए उपयोग किया जाता है।

लोहे से बनी नाव : चर्च परिसर में एक बड़ी सी लोहे की खूबसूरत नाव बनी हुई है। यह उन मिशनरियों की याद में बनाई गई है जो 18वीं सदी में भारत आए थे।

पीतल का रैल : 1903 में पीतल का रैल लगाया गया जहां विश्वासी वेदी के सामने घुटने टेकते हैं। 1980 में पीतल का रैल चोरी होने के बाद उस स्थान पर स्टील का रैल लगा दिया गया है।

प्रभु भोज के लिए कटोरा : इसका उपयोग प्रभु भोज के समय होता है। उस पर अंकित है कि इंग्लैंड के मित्रों की तरफ से ईश्वर की स्तुति और रॉबर्ट मिलमेल कोलकाता के बिशप की याद में।

लोहे का क्रूस : कैथल के कंगूरे पर लोहे का क्रूस जिस पर तीर लगा है इसे निर्दोष ने बनाया था।

बिशप डी हंस और बिशप जेड जे तेरोम की कब्रें चर्च परिसर में है। चर्च परिसर में कुआं, दर्जनों पेड़, फूलों के बगीचे लगे हैं। एक बड़ा सा मैदान है जहां समय-समय पर धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

-डॉ। मो जाकिर, शिक्षाविद