वर्कशॉप---सीएम ने कहा, राज्य की सभ्यता-संस्कृति के अनुरूप कार्य योजना बननी चाहिए

-लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने पर हो फोकस, खेती कैसे आगे बढ़ाएंगे इस पर हो फोकस

रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नीति आयोग से ग्रामीणों का आर्थिक संसाधन बढ़ाने की दिशा में सहयोग करने का सुझाव दिया है। वे नीति आयोग, भारत सरकार की सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) इंडिया इंडेक्स और मल्टीडाइमेंशनल प्रोवर्टी इंडेक्स विषय पर योजना एवं विकास विभाग की कार्यशाला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य के लिए कार्य योजना बनाने से पहले उस राज्य में निवास करने वालों की स्थिति को समझना जरूरी है। पूरे देश में एक जैसा फार्मूला लागू करना उचित नहीं होगा। अपनी सभ्यता और संस्कृति के माध्यम से भी आगे बढ़ा जा सकता है।

40 परसेंट कुपोषित बच्चे

झारखंड में 40 प्रतिशत से अधिक कुपोषित बच्चे हैं और 30 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। 10 लाख श्रमिक मजदूरी करने अन्य राज्यों में जाते हैं। कई जिलों में खेती के लिए जमीन समाप्त हो गई है। 80 प्रतिशत लोग खेती पर ही निर्भर हैं। ऐसे में हम उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता कैसे देंगे, इस पर कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। ग्रामीणों की क्रय शक्ति कैसे बढ़े। इसपर विचार करने की जरूरत है।

वरदान या अभिशाप

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के समक्ष शिक्षा, स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल, लोगों की आय में वृद्धि, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर आगे बढ़ने की चुनौती है। पहले सिर्फ खनन और खनिज पर ही ध्यान केंद्रित किया गया। राज्य के दलित, वंचित और आदिवासी कई सवालों से घिरे रह गए। योजनाएं और बजट तो बनते हैं, लेकिन वास्तविकता अलग है। सरकार के पास संसाधन सीमित हैं। हम सतत विकास की बात करें तो वर्तमान में जड़ को सशक्त करने की आवश्यकता है न कि टहनियों और पत्तों को। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोल इंडिया के क्षेत्र में राज्य सरकार विकास का कार्य नहीं कर सकती। खनन प्रभावित क्षेत्र के लोग लाल पानी पीने को विवश हैं। यूरेनियम के खदान वाले क्षेत्र में बच्चे अपंग पैदा ले रहे हैं। यह वरदान है या अभिशाप। अगर इन सबका सही प्रबंधन हो तो इस राज्य को आगे बढ़ने से रोका नहीं जा सकता।

वन उत्पाद दर भी बेहद कम

मुख्यमंत्री ने कहा कि मनरेगा के तहत सबसे कम पारिश्रमिक झारखंड का है। ग्रामीण मनरेगा के तहत काम करना पसंद नहीं करते और शहरों की ओर रुख करते हैं। केंद्र सरकार द्वारा वन उत्पाद का जो मूल्य तय किया गया है, वह भी काफी कम है। आदिवासी सदियों से जंगल में रहते आ रहे हैं। जंगल उनकी आजीविका का साधन भी है। ऐसे में आदिवासी अगर वन उत्पाद के साथ पाये जाते हैं तो पुलिस उनपर वनों को लेकर बनाए गए कानून के तहत कार्रवाई करती है। इससे उन्हें परेशानी हो रही है।

ये थे मौजूद

कार्यशाला में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री के सचिव विनय कुमार चौबे, नीति आयोग की सलाहकार संयुक्ता समाना व अन्य उपस्थित रहे।