रांची: झारखंडइसकी माटी महेन्द्र सिंह धोनी, दीपिका, असुंता लकड़ा जैसी और भी कई प्रतिभाओं की जननी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नाम को स्थापित कर देने वाले इन धुरंधर खिलाडि़यों का नाम आज झारखंड की पहचान बन चुका है। प्रतिभाओं से भरे इसे राज्य में पिछले एक दशक में जहां खेल बढ़ रहे हैं वहीं खिलाडि़यों में भी वृद्धि हुई है लेकिन इन्हें मिलने वाले संसाधनों में लगातार कमी देखी जा रही है। सिटी में खेलगांव, जेएससीए जैसे हाईप्रोफाइल स्टेडियम बनाए जा रहे हैं लेकिन गली मोहल्लों से मैदान गायब होते जा रहे हैं। इन गायब होते मैदानों के साथ ही कई प्रतिभावान खिलाडि़यों के सपने भी जमींदोज होते जा रहे हैं। इस दशक में उपहार के तौर पर स्टेडियम तो मिले लेकिन रखरखाव की कमी और व्यावसायिक इस्तेमाल के कारण ये सारे स्टेडियम बदहाल होते जा रहे हैं।

आयोजन स्थल बना फुटबॉल स्टेडियम

राज्य की प्रतिष्ठा कहा जाने वाला बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम आयोजन स्थल बनकर रह गया था। यहां आए दिन धार्मिक और निजी आयोजन होते रहते थे। समय पर रोक नहीं लगा पाने के कारण इसकी स्थिति दयनीय हो गई। कई खिलाडि़यों को महीनों तक फर्श या सड़क पर अभ्यास करना पड़ रहा है जिससे खिलाडि़यों की फिटनेस प्रभावित होकर रह गई। 55 करोड़ की लागत से तैयार इस स्टेडिटम को अभी दो माह पूर्व फिर से करोड़ों रुपए खर्च कर रेनोवेट किया गया है।

जयपाल सिंह स्टेडियम में मिट्टी की ढेर

जयपाल सिंह स्टेडियम सालों से सौंदर्यीकरण के नाम पर बदहाल है। पूरे मैदान में बिल्डिंग मैटेरियल फैला हुआ है। खिलाडि़यों के अभ्यास की जगह मिट्टी से भरी है। भारतीय हॉकी संघ के उपाध्यक्ष भोला नाथ सिंह कहते हैं कि 1978 में बने इस स्टेडियम में धोनी से लेकर न जाने कितने प्लेयर्स ने प्रैक्टिस किया है। खिलाड़ी भारती कहती हैं कि ग्राउंड दो साल से खराब पड़ा है। इससे रनिंग में दिक्कत होती है। प्रैक्टिस के दौरान घायल हो जाती हूं। वहीं एक अन्य खिलाड़ी दिलीप ने कहा कि हमसे कहा गया था कि मिट्टी कुछ ही दिनों में हटा दी जाएगी पर अब तक स्थित जस की तस है।

जेएससीए स्टेडियम की छवि पर बट्टा

झारखंड के एकमात्र इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम जेएससीए धुर्वा के हालात भी बहुत बेहतर नहीं हैं। ग्राउंड के ग्रास को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी पानी होता है जिसकी किल्लत की वजह से जेएससीए स्टेडियम की छवि काफी खराब होकर रह गई। श्रीलंका की महिला टीम ने हाल ही में स्टेडियम की स्थिति पर चिंता जताई थी जिससे जेएससीए की छवि को काफी धक्का लगा था। 18 डीप बोरिंग के प्रयास फेल होने के बाद जेएससीए ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग की नई तकनीक अपनाई है।

स्विमिंग पूल पर लटका ताला

2011 में हुए 34वें नेशनल गेम्स के समय रांची खेलगांव में मेगा स्पो‌र्ट्स कॉम्पलेक्स तैयार किया गया था जिसमें आठ स्टेडियम बनाए गए। इसमें से एक था तरणताल स्टेडियम। 46 करोड़ की लागत से बने इस स्टेडियम में इंटरनेशनल स्तर के स्विमिंग पूल और अत्याधुनिक उपकरण हैं पर तैराकों के लिए स्टेडियम पर ताला लटका है। तर्क है कि प्रैक्टिस के लिए यह नहीं खोला जा सकता। बड़े आयोजनों में इसका इस्तेमाल होना है। आलम यह है कि शहर के गड्ढों में जमे पानी में तैराकों की प्रैक्टिस हो रही है तो बच्चे भी जान जोखिम में डाल कर यहीं तैरना सीख रहे।

शूटिंग रेंज के उपकरण जमींदोज

करोड़ों की लागत से खेलगांव के टिकैतसिंह उमराव शूटिंग रेंज में लगे करोड़ों के उपकरण जमींदोज हो गए। लेकिन खेल विभाग के अधिकारियों ने इसके प्रति कभी गंभीरता नहीं दिखाई। राइफल शूटिंग खिलाड़ी प्रत्यूष के मुताबिक अपार्टमेंट की छत पर अभ्यास खतरा मोलते हुए दर्जनों शूटर अभ्यास करते हैं। अगर खेलगांव में प्रवेश मिलता तो झारखंड के खाते में न जाने कितने खिलाड़ी होते।