RANCHI: बदलाव किसी भी फील्ड में हो तो इसके कुछ फायदे होते हैं तो कुछ नुकसान भी। लेकिन राजधानी में मेडिकल फील्ड में कई बड़े परिवर्तन देखने को मिले। यही वजह है कि आज दूसरे राज्यों से भी लोग इलाज कराने के लिए झारखंड की राजधानी रांची का रुख करते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण राज्य का सबसे बड़ा हॉस्पिटल रिम्स और राजधानी का सदर हॉस्पिटल है। इसके अलावा सिटी में कई नए प्राइवेट हॉस्पिटल भी खुले, जिससे कि मरीजों का पलायन रुक गया।

2013

रिम्स बन रहा मरीजों की लाइफलाइन

रिम्स की मेन बिल्डिंग में पहले जेनरल मरीजों का इलाज होता था। लिमिटेड मरीज इलाज के लिए आते थे। धीरे-धीरे हॉस्पिटल की व्यवस्था बदली। बेड बढ़ते गए और बेहतर डॉक्टरों ने योगदान दिया। इसके बाद ही मरीजों का भरोसा रिम्स पर बढ़ गया। पूरे स्टेट के लोगों के लिए रिम्स आज लाइफलाइन बन गया है। इससे पहले तो बेहतर इलाज और नई तकनीक के लिए लोगों को बाहर जाना पड़ता था। इस चक्कर में मरीजों का खर्च होता था, वहीं परेशानी होती थी सो अलग।

सुपरस्पेशियलिटी विंग बनी लाइफलाइन

रिम्स में सुपरस्पेशियलिटी विंग की शुरुआत आठ साल पहले 2013 में हुई। कार्डियोलॉजी की सबसे पहले शुरुआत हुई। इसके बाद ओंकोलॉजी, पेडियाट्रिक सर्जरी, यूरोलॉजी यूनिट को चालू किया गया। फिर सुपरस्पेशियलिटी विंग के दिन बदल गए। यही वजह है कि आज इस विंग में ओपन हार्ट सर्जरी की जा रही है। वहीं ट्रॉमा सेंटर में मरीजों को नया जीवनदान भी मिल रहा है, जिसका फायदा बिहार-झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों के मरीजों को भी मिल रहा है।

2017

80 बेड से 500 बेड का सुपरस्पेशियलिटी

आज से दस साल पहले एक लाल बिल्डिंग में 80 मरीजों के इलाज की व्यवस्था थी। वहीं ओपीडी का संचालन एसबेस्टस की छत्त के नीचे होता था। उस समय मरीजों की संख्या भी कम थी। लेकिन हार्ट ऑफ द सिटी अल्बर्ट एक्का चौक पर यह हॉस्पिटल किसी भी समय इलाज के लिए चालू रहता था। लेकिन इस दशक के बीच एक बदलाव आता गया। मेन बिल्डिंग को छोड़ सभी ओपीडी को गिराकर नया रूप दिया जाने लगा। आज इस कैंपस में एक बहुमंजिली इमारत खड़ी हो गई है। जहां 500 बेड का सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल आकार ले रहा है।

सेपरेट मैटरनिटी और चाइल्ड वार्ड से मिली राहत

हॉस्पिटल की शुरुआत पहले तो मैटरनिटी और चाइल्ड वार्ड से हुई। 200 बेड का हॉस्पिटल चालू होने से मरीजों का भरोसा भी बढ़ने लगा। आज सभी ओपीडी इस बिल्डिंग में शिफ्ट हो गए। हजारों की संख्या में मरीज भी यहां इलाज कराकर जा चुके है। एक ही छत्त के नीचे लैब, ब्लड बैंक से लेकर तमाम सुविधाएं भी देने की तैयारी है। इसके अलावा मेकेनाइज्ड क्लिनिंग से लेकर हाइजेनिक फूड, ट्रॉमा की भी फैसिलिटी मरीजों को मिलने लगेगी।

108 एंबुलेंस सर्विस से बची हजारों की जान

108 डायल एंबुलेंस सर्विस लाइफलाइन का काम कर रही है। 2017 नवंबर में इसकी शुरुआत की गई है। लाखों मरीजों का जीवन बचाने वाली यह पहल ने हजारों मरीजों को नया जीवनदान दिया है। ऐसे में दो सालों के सफर में 108 एंबुलेंस ने दो करोड़ 15 लाख से अधिक किलोमीटर का सफर तय कर लिया है। पूरे स्टेट में 20-40 मिनट के अंदर ही एंबुलेंस घर के दरवाजे पर पहुंच जाती है। पूरे स्टेट में 339 की संख्या में 108 एंबुलेंस की सर्विस से मरीजों को टाइम पर हॉस्पिटल पहुंचाया जा रहा है। जिकित्सा हेल्थ केयर इस एंबुलेंस को चलाने, मरीजों को लाने-ले जाने के लिए हर प्वाइंट पर मॉनिटरिंग कर रही है ताकि मरीजों को किसी तरह की परेशानी न हो।