रांची (ब्यूरो) । हॉस्पिटल के अंदर मरीजों का ईलाज किया जाता है, लेकिन इसके बाहर लोगों को बीमार बनाने का भी पूरा इंतजाम है। रांची ही नहीं राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के बाहर दर्जनों ठेला और खोमचा लगता है। इसमें लोगों को रोटी, चावल से लेकर दूसरे खाने खिलाए जाते हैं। लेकिन स्थिति ऐसी है जिसे देख ऐसा लगता है कि यहां खाना नहीं बीमारी परोसा जा रहा है। रिम्स में झारखंड समेत दूसरे राज्य के भी मरीज आते हंै। हर तबके के लोग यहां अपना इलाज कराने आते हंै। रिम्स की व्यवस्था से लोग पहले ही परेशान होते हंै। वहीं रिम्स के आसपास उन्हें पौष्टिक खाना भी नहीं मिल पाता है। हॉस्पिटल के बाहर दर्जनों ठेला खोमचा सजता है, जहां अनहाईजीनिक फूड की भरमार रहती है।
खुले में रहता है खाना
रिम्स जैसे बड़े अस्पताल के बाहर ही खाने की पौष्टिकता पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। रिम्स कैंपस में ट्रॉमा सेंटर के बाहर रोड के दोनो साइड ठेले की भरमार है। यहां नाश्ता, खाना, चाय-सिगरेट सभी इंतजाम है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि खाना पका कर ऐसे ही खुले में रख दिया जाता है, जिससे खाने पर मच्छर-मक्खी और दूसरे कीड़े मंडराते रहते हैैं। यही खाना जब इंसान के शरीर में जाता है, तो कई बीमारियां जन्म लेती हैं। हॉस्पिटल्स के बाहर इन ठेला पर नियंत्रण रखने वाला और खाने की शुद्धता जांचने वाला भी कोई नहीं।

गंदगी के बगल में दुकानें
जिस स्थान पर खाने-पीने की चीजे सजती हैं, उसी के बगल में रिम्स का डस्टबीन है, जहां हर दिन क्विंटल की मात्रा में कचरा जमा होता है। सिर्फ साधारण कचरा ही नहीं बल्कि मेडिकल वेस्ट भी यहां रखा जाता है। जो इंफेक्शन का कारण बन सकता है। इसी गंदगी के बगल में दुकाने सज रही हैं। यहां तक जिस ठेले पर खाने-पीने की चीजें हैं, वहां भी साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। यहां दुकान लगाने वाले भले गरीब तबके के लोग हैं, लेकिन साफ-सफाई वे भी रख सकते हंै। इस स्थान के एक दुकानदार की कमाई प्रति दिन 500 से 800 रुपए है। इसके बावजूद आम लोगों की सेहत के साथ यहां खिलवाड़ हो रहा है।
परिजनों की मजबूरी
ऐसी गंदगी में कोई भी व्यक्ति खाना नहीं खाना चाहेगा, लेकिन मजबूरी के कारण यहां आने वाले मरीज और उनके परिजनों को यहीं खाना पड़ रहा है। हजारीबाग से अपने पिता का इलाज कराने आए मृत्युंजय कुमार ने बताया कि दस दिन से रिम्स में हैं। पिताजी का इलाज चल रहा है। हर दिन हजारीबाग संभव नहीं है। पॉकेट में ज्यादा पैसा भी नहीं की किसी बढिय़ा रेस्टोरेंट या होटल में बैठकर खाना खा सके। मजबूरी में इसी स्थान पर जो मिलता है खा लेते हैं। मृत्युंजय की तरह सैकड़ों लोग हैं जो मजबूरी में इन ठेला पर खाना खाते हंै।
बढ़ती जा रही संख्या
रिम्स परिसर में दिनों दिन ठेले-खोमचे वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। हर दिन यहां अतिक्रमण का दायरा बढ़ता जा रहा है। पहले कुछ ही दुकानें यहां लगा करती थीं। कुछ महीनों पहले दुकानदारों को रैन-बसेरा के बगल में स्थान दिया गया था, लेकिन अब ये लोग वहां से निकलकर सड़क पर आ गए हैं। सड़क के दोनों ओर दुकानें सजने लगी हैैं, जिसकी वजह से मरीजों को भी परेशानी होती है। दरअसल इन दिनों ट्रॉमा सेंटर में ही सेंट्रल इमरजेंसी को शिफ्ट कर दिया गया है। रिम्स परिसर में लगने वाले ठेले-खोमचे मरीजों की परेशानी का सबब बन रहे हैं। रिम्स के इमरजेंसी में मरीज काफी गंभीर स्थिति में पहुुंचते हैं। इनके लिए एक-एक मिनट का मोल होता है। ठेला-खोमचा वालों के कारण सड़क पर जाम लगने से कई बार यहां एंबुलेंस भी फंस जाती हैैं।

क्या कहते हैैं लोग
यहां बहुत परेशानी है। खाने-पीने के लिए ढंग की एक जगह नहीं। ठेला पर खुले में खाने-पीने की चीजें रखी रहती हैं। देख कर खाने का मन नहीं करता, लेकिन मजबूरी है।
- संतोष महतो

अस्पताल में सैकड़ों लोग आते हैं। यहां एक ढंग का होटल होना चाहिए, जहां साफ-सफाई की व्यवस्था हो। अस्पताल में सिर्फ मरीज को ही खाना मिलता है, परिजन को बाहर ही खाना पड़ता है।
- सूरज कुमार

लोग यहां मरीज का इलाज कराने आते हैं, लेकिन खुले में जो फूड आइटम बिक रहे हैं, वह स्वस्थ व्यक्ति को मरीज बनाने वाला है। रिम्स प्रबंधन को ध्यान देना चाहिए।
- शिवराम

मजबूरी है क्या करें। कहा जाकर खाना खाएंगे। बाहर होटल में ज्यादा पैसा खर्च हो जाएगा। सोच-समझ कर सभी काम करना होता है। हालांकि ठेला पर थोड़ी साफ-सफाई रखी ही जा सकती है।
- सुनीता देवी