रांची: कोरोना महामारी के दौरान मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों के प्रति आम लोगों में सम्मान का भाव दोगुना हो गया। अपनी जान को जोखिम में डालकर धरती के भगवान ने हजारों लोगों की जान बचाई। अस्पताल से ठीक होकर निकलने वाले हजारों हाथ इनके सकुशल रहने की दुआ के लिए उठे। चिकित्सकों ने अपने अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लिनिक में सेवा देने के साथ-साथ निजी जीवन से समय निकाल कर मोबाइल, इंटरनेट के जरिए लोगों को आनलाइन इलाज मुहैया कराया। होम आइसोलेशन में रहने वाले हजारों लोगों के मन में बीमारी को लेकर बैठे डर और तनाव को दूर करने में अहम भूमिका निभाई। नेशनल डॉक्टर डे के मौके पर हम सिटी के कुछ ऐसे ही डॉक्टर्स की सेवाभाव से आपको अवगत करा रहे हैं।

अच्छा लगा किसी की जान बच गई: डॉ अभिषेक रामाधीन

ईएनटी सर्जन डॉ। अभिषेक कुमार रामाधीन कहते हैं कि खुद कोविड पॉजिटिव होने के बाद ब्लैक फंगस जैसे मरीजों के बारे में ऑनलाइन जानकारी लेते रहे और जैसे ही निगेटिव हुए ब्लैक फंगस से संक्रमित मरीज का सफल ऑपरेशन कर उसे नई ¨जदगी दी। निगेटिव होने के बाद अब तक राज्य में सबसे अधिक 28 ब्लैक फंगस के मरीजों की आंखों का ऑपरेशन किया है। उन्होंने बताया कि सिटी के एक निजी अस्पताल में भर्ती म्यूकर माइकोसिस से पीडि़त महिला, जिसका चिकित्सकों ने यह कहकर ऑपरेशन करने से मना कर दिया था कि उसके बचने की उम्मीदें कम हैं, उसकी सर्जरी कर जान बचाई। इसके बाद महिला की बेटी ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर पोस्ट किया भी किया कि किस तरह डॉक्टर की बदौलत उनकी मां को नई जिंदगी मिली।

मरीजों की सेवा ही डॉक्टर का धर्म: डॉ। सरोज राय

डॉक्टरों का धर्म है सेवा का कर्म करना और मरीजों का भरोसा बनाए रखना। इस साल का डॉक्टर्स डे सही अर्थ में मनाया जाना चाहिए, क्योंकि कोविड-19 का प्रकोप पूरी दुनिया में फैल चुका है और डॉक्टर अपनी जान देकर भी मरीजों की सेवा कर रहे हैं। सारे हेल्थ वर्कर्स तन-मन से योगदान देकर लोगों की जान बचा रहे हैं। अपना धैर्य और भरोसा बनाएं रखें। लोगों का विश्वास ही डॉक्टर्स का भरोसा बढ़ाता है, हम सभी मिलकर जल्द ही कोविड-19 से जंग जीत जाएंगे।

डॉक्टर्स हमेशा फ्रंटलाइन पर खड़े नजर आएंगे : डॉ विकास कुमार

रिम्स के जेडीए के अध्यक्ष डॉ विकास कुमार कहते हैं कि लोग डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा देते हैं, लेकिन डॉक्टर खुद को एक आम इंसान ही समझते हैं। समाज जिस आशा भरी निगाहों के साथ डॉक्टर की ओर देखता है उसी अनुरूप डॉक्टर को भी नि:स्वार्थ सेवा के लिए तत्पर रहना पड़ता है। कोरोना काल में जब मरीजों को रिम्स में भर्ती किया जा रहा था तब डॉक्टर ने अपनी जान की बाजी लगाकर संक्रमित मरीजों की इलाज की इस दौरान रिम्स के ही एक डॉक्टर की जान भी चली गई। इसके बावजूद डॉक्टर्स का जज्बा कम नहीं हुआ है। जब कभी सेवा का अवसर मिलेगा डॉक्टर फ्रंट लाइन पर खड़े नजर आएंगे।