रांची(ब्यूरो)। रांची के झिरी में कचरे के पहाड़ को समतल करने की योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में जाती नजर आ रही है। इस प्रोजेक्ट पर अबतक कोई पहल नहीं हुई है। योजना से संबंधित टेंडर दो बार जारी किया गया लेकिन दोनों बार सिंगल टेंडर होने की वजह से इसे रद्द करना पड़ा। हालांकि, अब तीसरी बार टेंडर निकाला गया है। आगामी चार जुलाई को टेक्नीकल बिड खुलेेगा। इसे फाइनल होने में कम से कम दो महीने का समय लगेगा। यदि एजेंसी चयन का काम शुरू होता भी है तो काम पूरा होने में दो साल का समय लगेगा। ऐसे में दो साल तक झिरी वासियों को कचरे के इस पहाड़ से मुक्ति मिलने की कोई संभावना नहीं है। वहीं यदि इस बार किसी कारण एजेंसी चयनित नहीं हो सकी तो यह और लंबा खींचा जा सकता है। बीते साल ही झिरी में बने कचरे के पहाड़ को समतल कर इस जगह को पार्क के रूप में डेवलप करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन अबतक यह सिर्फ फाइलों में ही घूम रहा है। इधर झिरी वासी कचरे के बीच जीवन यापन करने को विवश हैं।
दो दशक से डंपिंग यार्ड
22 साल पहले रवि स्टील से आगे रिंग रोड के समीप कचरा डंप करने के लिए झिरी बस्ती का चयन किया गया था। पूरे शहर का कचरा लाकर इसी स्थान पर डंप किया जाता है। 22 सालों में जहां एक ओर कचरे का पहाड़ बनता गया, वहीं दूसरी ओर इलाके में आबादी भी बस्ती गई। आज यहां कई मुहल्ले बस चुके हैं। आसपास में हजारों लोगों की आबादी है। डंपिंग यार्ड में हर दिन करीब 600 मीट्रिक टन कचरा जमा किया जाता है। 22 सालों में कचरे का यह पहाड़ 100 फीट से भी ऊपर उठ चुका है, और इसका उठना निरंतर जारी है। हालांकि कचरे को जलाकर इसे कम करने का प्रयास किया गया। लेकिन इसका फायदा कम, नुकसान ज्यादा ही हुआ है। कचरा तो कम नहीं हुआ उल्टे आस-पास में पॉल्युशन की समस्या बढ़ गई। 2022 जुलाई महीने में झिरी के कूड़े को बायोरिमेडिएशन तकनीक से गलाने और साइट पर पार्क बनाने की योजना बनाई गई थी। फिलहाल इसके धरातल पर उतरने की कोई उम्मीद नहीं है।
नरक बनी जिंदगी, पानी भी दूषित
कचरे की वजह से झिरी और आसपास के मुहल्ले की जिंदगी नारकीय बनी हुई है। बरसात में स्थिति और ज्यादा खराब हो गई। बारिश के पानी के साथ कचरा भी बह कर रोड पर आ रहा है। बदबू भी इतनी अधिक है कि यहां से गुजरना तक मुश्किल है। वहीं कई इलाकों में अब पानी भी दूषित होने लगा है। लोगों के घरों की बोरिंग से गंदा और पीला पानी निकल रहा है। जो पीने योग्य नहीं है। गंदा पानी पीने से लोग बीमार भी पडऩे लगे हैं। बच्चों में एलर्जी की समस्या बढ़ गई है। इस साल गर्मी में लोगों को पानी की काफी परेशानी हुई। झिरी डंपिंग यार्ड के आसपास गणपत नगर, हनुमान नगर, आनंद नगर समेत कई नए मुहल्ले बसे हैं। यहां विधायक-सांसद के माध्यम से बिजली, सड़क तो पहुंचा दी गई है, लेकिन पानी की पाइपलाइन अबतक नहीं पहुंची है।
कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट का नहीं हुआ काम
झिरी में गेल इंडिया द्वारा कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट बनाने की योजना थी, लेकिन यह भी अधूरी पड़ी हुई है। प्लांट को लेकर साल 2021 में गेल इंडिया और नगर निगम के बीच एमओयू हुआ था। इस प्लांट के लगने के बाद 18 माह में 300 टन ऑर्गेनिक कचरे की प्रोसेसिंग करके रोजाना दस टन कंप्रेस्ड बायोगैस प्रोडक्शन करना था। लेकिन इस प्रोजेक्ट को भी दो साल बीत गए, यह प्लांट अबतक पूरा तैयार नहीं हुआ है।
40 एकड़ में 136 करोड़ से बनना है पार्क
40 एकड़ जमीन पर फैले इस डंपिंग यार्ड में पार्क बनाने की योजना है। जुडको की ओर से प्लान तैयार किया गया है, जिसे 2024 से पहले पूरा करना है। इस प्रोजेक्ट में करीब 136 करोड़ रुपये खर्च होने का आकलन किया गया है। यह पहली बार नहीं है जब इस झिरी में डेवलपमेंट का निर्णय लिया गया है। इससे पहले भी पिछले 10 वर्षों से इस तरह की योजना बनती रही है। साल 2010-11 में एटूजेड कंपनी ने कचरे को डिस्पोज कर उससे टाइल्स बनाने की योजना बतायी थी। 2014-15 में एसेल इंफ्रा ने कूड़े से बिजली बनाने की योजना बनाई थी। अब यहां पार्क बनाने की तैयारी है। इस निर्णय को भी एक साल बीत चुके हैं।
क्या कहते हैं लोकल लो
बहुत बुरा हाल है। साल दर साल स्थिति बिगड़ती जा रही है। कचरा और बदबू के बीच लोग जीवनयापन कर रहे हैं।
-धीरज

डंपिंग यार्ड को यहां से हटाना चाहिए। पहले यह स्थान खाली था, लेकिन अब इस स्थान पर बड़ी आबादी बस चुकी है।
-संतोष

बरसात में और ज्यादा बुरा हाल हो जाता है। बच्चे, बुजुर्ग सभी बीमार पडऩे लगते हैं। कचरे की वजह से कीड़े-मकोड़े भी पनपने लगते हैं।
- सुरेश

हजारों लोग कचरे के आसपास में रहते हैं। बरसात में गंदा पानी लोगों के घरों तक आ जाता है। बहुत बुरा हाल है, इसे हटाना बेहद जरूरी है।
- राजेश