रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में सैकड़ों नेचुरल रिसोर्सेज हैं। नदी, तालाब, पहाड़, पर्वत और जंगल से यह शहर घिरा हुआ है। प्रकृति ने तो रांची को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन हम लोग खुद ही नेचुरल रिसोर्सेज के दुश्मन बन बैठे हैं। नदी, पर्वत, पहाड़ सभी पर अतिक्रमण कर उसे नष्ट करते जा रहे हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट राजधानी के ऐसे ही नेचुरल रिसोर्सेज को संरक्षित करने को लेकर अभियान चला रहा है। डिस्टिलरी तालाब और हरमू नदी की वास्तिवक स्थित से रूबरू कराया। इस अंक में शहर का ऐतिहासिक रांची पहाड़ी जिसका अस्तित्व हिमालय से पहले का बताया जाता है। उसकी पड़ताल करेंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं रांची के हार्ट में स्थित पहाड़ी मंदिर की, जिसे अतिक्रमण और कंस्ट्रक्शन के नाम पर बर्बाद कर दिया गया। वहीं पहाड़ी का कुछ हिस्सा डेवलपमेंट के नाम पर क्षतिग्रस्त कर छोड़ दिया गया है।

बढ़ता जा रहा कब्जा

पहाड़ी मंदिर की वर्तमान तस्वीर ऐसी है कि इसके आधे हिस्से में एनक्रोचमेंट कर लोग झोपड़ीनुमा घर बनाकर रहने लगे हैं। पहले प्लास्टिक, तिरपाल और फ्लैक्स से घेर कर टेंट बनाकर यहां लोग रहते थे। अब धीरे-धीरे पहाड़ी मंदिर परिसर पर कब्जा बढ़ता जा रहा है। यहां रहने वाले लोग मिट्टी की दीवार बना कर छोटे-छोटे घर बना लिये हैं। पहले एक से दो सौ लोग रहते थे, अब यहां की आबादी करीब 500 पहुंच गई है। यहां रहने वाले लोगों के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, शौचालय मुहैया करा दिया गया है, जिससे यहां से हटने के बजाय लोग और यहां बसते ही जा रहे हैं। साल 2018 में तत्कालीन एसडीओ गरिमा सिंह ने पहाड़ी मंदिर के आसपास से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था। कार्रवाई भी हुई थी। लेकिन फिर प्रशासन के सुस्त पड़ते ही यहां अतिक्रमण शुरू हो गया है। नेचुरल रिसोर्सेज के आसपास एनक्रोचमेंट रोकने को लेकर हाईकोर्ट की ओर स्पष्ट आदेश है। अतिक्रमण रोकने की जिम्मेवारी लोकल थाना की है। लेकिन सुखदेव नगर थाना को इससे कोई मतलब नहीं है। लगातार अतिक्रमण बढ़ रहा है लेकिन थाना प्रभारी आंखें मूंदे हुए हैं।

डेवलपमेंट के बहाने भी दोहन

आसपास के क्षेत्र का लगातार दोहन होने से भी पहाड़ को काफी नुकसान पहुंचा है। भू वैज्ञानिकों का मानना है, किसी भी शहर में नदी, तालाब, पहाड़, पर्वत और जंगल वहां के मौसम को अनुकूल रखने में फायदेमंद होते हैं। पहाड़ी मंदिर परिसर में लोगों ने बसने के लिए यहां पेड़ काट दिए। डेवलपमेंट के नाम पर प्रशासन ने भी पहाड़ी मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया है। देश का सबसे बड़ा झंडा फहराने के लिए यहां फ्लैग पोल लगाया गया, जिसके लिए भी दर्जनों पेड़ काटे गए। झंडा भी कभी नहीं फहरा। वहीं मंदिर के पीछे तरफ सड़क बनाने के नाम पर सैकड़ों पेड़ काटे गए। लेकिन, न तो सड़क बनी और न ही यहां पेड़ लगाए गए। अब इस स्थान पर लोकल लड़के बैठकर शराब और गांजा पीते हैं। इन दिनों पहाड़ के एक हिस्से में वाटर टॉवर बनाया जा रहा है। इसके लिए भी कई पेड़ काटे गए हैं, जिससे इस पहाड़ी के लिए खतरा और बढ़ गया है।

पेड़ कटने से कमजोर हुई मिट्टी

पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व ही आज खतरे में है। जिस पहाड़ को संरक्षित करने की जरूरत थी, उसे विकास के नाम पर बर्बाद किया जा रहा है। गौरतलब हो कि पहाड़ी मंदिर की ऊंचाई करीब 350 फीट है। जानकार बताते हैं कि इसका इतिहास काफी पुराना है। यहां की चट्टानों पर स्टडी के बाद यह पता चला है कि यह हिमालय से भी करोड़ों साल पुराना है। खोंडालाइट पत्थर से बना ये पहाड़ पृथ्वी की उत्पत्ति की कहानी कहता है। इसका संरक्षण आज बेहद जरूरी हो गया है। लगातार कंस्ट्रक्शन का काम होने और पेड़ों के कटने से यहां लैंड स्लाइडिंग का भी खतरा बना हुआ है। बारिश के मौसम में कई जगह से मिट्टी भी धंस चुकी है। भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार पहाड़ी मंदिर की मिट्टी कमजोर हो चुकी है। मिट्टी के कटाव ने स्थिति को पहले से ही भयावह बना दिया है।