रांची (ब्यूरो)। हम लोगों ने मरीजों की हर प्रकार से सेवा की है। कोरोना काल में बेहतर काम के लिए सरकार ने ही कोरोना फाइटर सम्मान भी दिया है। अब सरकार के वादे के अनुसार, अपनी मांगों को लेकर जब धरना-प्रदर्शन, आमरण अनशन कर रहे हैं तो अनदेखी क्यों। जी हां, जिन स्वास्थ कर्मियों के जिम्मे मरीजों के इलाज की जिम्मेवारी होती है जो मरीजों को समय पर मेडिसिन, इंजेक्शन से लेकर अन्य स्वास्थ सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। वे आज खुद अपनी सेहत को लेकर चिंतित हैं। कांट्रैक्ट पर नियुक्त हुए हेल्थ वर्कर्स स्थायी करने की मांग पर बीते 14 दिनों से धरने पर बैठे हैं। राजभवन के समक्ष ही हर दिन सैकड़ों की संख्या में चिकित्सा कर्मी धरना दे रहे हैं। वहीं बीते छह दिनों से इन्हीं में कुछ चिकित्सा कर्मी आमरण अनशन भी कर रहे हैं।
आंदोलन में ज्यादातर महिलाएं
21 सदस्य आमरण अनशन पर बैठे हैं, इनमें छह पुरुष और 15 महिलाएं शामिल हैं। वहीं उनके समर्थन में प्रतिदिन सैकड़ों लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसमें 80 प्रतिशत महिलाएं हैं। तबीयत खराब होने पर इन स्वास्थ्य कर्मियों को फौरन चिकित्सीय सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। अनशन पर बैठे नवीन रंजन की जब अचानक तबीयत बिगड़ी तो उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस भी नहीं मिली। उन्हें ऑटो से सदर अस्पताल पहुंचाया गया। लगातार धरने पर बैठने और आमरण अनशन के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होनेे से चिकित्सा कर्मी नाराज हैं। कर्मियों ने बताया कि कोरोना काल में सरकार सभी कर्मचारियों से काम ली। वैक्सीनेशन से लेकर अन्य कार्य कराए गए। राज्य को कोरोना मुक्त बनाने में अहम योगदान देने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को उस समय कोरोना फाइटर से सम्मानित किया गया था। लेकिन आज वहीं स्वास्थ्य कर्मी अपनी मांगों को लेकर सडक़ पर धरने देने को विवश हैं।
कोई ऑक्सीजन पर तो कोई आइसीयू में
शनिवार को कुछ हेल्थ वर्कर्स की तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें सदर हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। धरने पर बैठे कर्मियों ने बताया कि धरने का 14वां दिन और आमरण अनशन का छह दिन गुजर गया। लेकिन विभाग की ओर से अबतक कोई मिलने भी नहीं आया है। इससे कर्मचारियों में रोष व्याप्त है, दिनोंदिन अनशनकारियों की हालात दयनीय होती जा रही है। शनिवार को एएनएम संघ की महासचिव वीणा कुमारी को सदर अस्पताल में ले जाकर आक्सीजन पर रखा गया। वहीं हजारीबाग के नवीन रंजन की तबीयत भी बिगड़ी उन्हें भी इलाज के लिए भर्ती कराना पड़ा। जामताड़ा की अनिता और नंदिनी की तबीयत बिगडऩे पर उन्हें सदर अस्पताल के आईसीयू में एडमिट करना पड़ा।
पीएचसी-सीएचसी ठप
अनुबंध पर नियुक्त हेल्थ वर्कर्स के हड़ताल पर चले जाने के कारण रांची और आसपास स्थित विभिन्न सामुदायिक केंद्रों पर स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। इलाज के लिए पीएचसी, सीएचसी आने वाले मरीजों को तत्काल स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रही है। कुछ स्वास्थ्य केंद्र ऐसे भी है जहां काम ठप हो गया है। लालगुटवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की एएनएम ने बताया कि उनके सेंटर में डॉक्टर भी नहीं आते। मरीजों को इंजेक्शन लगाने से लेकर दूसरी जिम्मेवारी भी उन्हीं पर है। इसके बाद भी हमें नजरअंदाज किया जा रहा है। स्वास्थ्य केंद्रों पर पांच हेल्थ वर्कर हैं तो उनमें चार अनुबंध पर हैं। जो कर्मी स्थायी है उनका मानदेय 70 हजार रुपए तक है। जबकि अनुबंध पर नियुक्त कर्मियों को महज 15 हजार रुपए मिलते हैं। एक ही स्वास्थ्य केंद्र पर दोहरी नीति अपनाई जा रही है।
क्या कहते हैं आंदोलनकारी
वर्षों से हेल्थ सेक्टर में योगदान दे रहे हैं। मरीजों को दवा-पानी से लेकर दूसरे सुविधाओं का ख्याल रखते हैं। कई बार स्थायी करने का आश्वासन दिया गया, लेकिन हर बार हमें सिर्फ छला गया है।
-आलोक तिवारी

गर्भवती महिलाओं का ख्याल रखने, उनका समय पर उपचार करने की जिम्मेवारी है। मरीजों के अलावा सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करने का भी कार्य दिया जाता है। लेकिन हमारी मांगे नहीं मानी जा रहीं।
-संगीता कुमारी

दो हफ्ते से धरने पर बैठे हैं। आमरण अनशन कर रहे साथियों की तबीयत बिगडऩे लगी है। लेकिन सरकार की नींद नहीं खुल रही। जबतक मांगें पूरी नहीं होंगी, धरना चलता रहेगा।
-मुकेश कुमार ठाकुर


चुनाव से पहले आश्वासन दिया गया था, हमारे नाम के आगे से अनुबंध शब्द हटा दिया जाएगा। लेकिन तीन साल गुजर गए अबतक कुछ नहीं हुआ। अब आर-पार की लड़ाई है।
-बबिता शाह