इस ऑथर ने अपने वर्चुअल होम टाउन रांची के लिए भी कुछ लिखने की इच्छा जताई है. रांची का वेदर हो या यहां का रेनड्रॉप, ये सब आज भी इस ऑथर के दिलो-दिमाग में बसते हैं। हम बात कर रहे हैं फेमस बायोग्राफिकल स्टोरी ‘इमरान वर्सेस इमरान’ के राइटर फ्रैंक हुजूर की। फ्रैक कहते है-रांची टैलेंट का सेसपुल है, जहां कई क्रिएटिव स्पार्क है। ईस्ट इंडिया का एजुकेशनल कैपिटल होने के कारण वो रांचीआइट्स से हाई स्पिरिट में सोचने की अपील करते हैं। उनका मानना है कि रांची के लोग कहीं भी और किसी भी सिचुएशन में सर्वावइव करते हुए अपने टारगेट को अचीव करना जानते हैं।
बक्सर में हुआ जन्म
वैसे तो फ्रैंक का जन्म बिहार के बक्सर डिस्ट्रिक्ट में हुआ है, लेकिन वो कहते हैं कि रांची उनका वर्चुअल होमटाउन है। बिहार के बक्सर में जन्म हुआ। पटना में स्कूलिंग हुई। फिर 1992-93 में रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। इन दो सालों में रांची तो बस दिलो दिमाग में में बस गई। आज भी यहां की मिट्टी की महक वैसी ही जेहन में ताजा है। आज फ्रैंक सात समंदर पार लंदन में हैं। उन्होंने हमसे शेयर की रांची की यादें
इमेच्योर लव और टीनएज में उसे पाने में फेल्योर हो जाने के इमोशन ने फ्रैंक के अंदर एक राइटर और पोयट को इंस्पायर किया। फ्रैंक बताते हैं कि रांची के जेवियर्स कॉलेज में पढ़ाई करने के दौरान ही उन्होंने पहली इंग्लिश पोयट्री ‘रिमेम्बरिंग हर’ के टाइटल से लिखी थी। वो पंद्रह साल की उम्र थी, जब फ्रैंक ने अधिकतर पोयट्री, रोमांटिक टोन में लिखी।
सेंट जेवियर्स कॉलेज में फिजिक्स, केमिस्ट्री और बॉयोलॉजी लेकर फ्रैंक ने पढ़ाई की और यही वो वक्त था, जब उन्हें अपने लिटररी कॅरियर को बनाने का रियलाइजेशन हुआ। जेवियर कॉलेज की यादों में फादर डिब्रावर अब भी बहुत इंस्पायर करते हैं।
फादर डिब्रॉवर
फ्रैंक कहते हैं कि फादर डिब्रॉवर उनके लिए एक टाइटेनिक इंस्ट्रक्टर की तरह थे, जिनके पढ़ाए गए एथिक्स के जरिए उन्होंने सेंटीमेंट्स को करीब से जाना। भले ही आगे चलकर डीयू के हिंदू कॉलेज में एडमिशन ले लिया, लेकिन रांची के जेवियर्स को वो बेस्ट इंस्टीट्यूट मानते हैं। उसी दौरान वे रांची की ब्रिटिश लाइबेरी के भी मेम्बर बने और वहीं से लिटरेचर, पोयट्री और ड्रामा के बुक्स को ढूंढ़ कर निकालते और पढ़ते।
इमरान वर्सेस इमरान को लिखना फ्रैक के लिए एक एक्साइटमेंट और एडवेंचर भरा पल था। वे बताते हैं कि एक इंडियन ऑथर का अपने कंटेंट के लिए पाकिस्तान विजिट करना आसान नहीं था। लेकिन वो इमरान खान की लाइफ को लेकर काफी पैसनेट थे। क्रिकेट ग्राउंड पर इमरान के खेल को गंभीरता से देखते हुए बड़े हुए और उनसे इंस्पायर्ड होते रहे। जब कभी किसी अखबार में या टीवी चैनल पर इमरान के बारे में रिपोर्ट आती, तो वो जरूर पढ़ते। सिर्फ इमरान के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए वो कंटीन्यू रेडियो पर बीबीसी न्यूज सुनते थे। और ये सब इसलिए हो पाता, क्योंकि उनके पापा इसके लिए प्रेरित करते। जब इमरान खान पॉलिटिक्स से जुड़े, उस वक्त वो प्रोफेशनल राइटिंग के वल्र्ड में उतर चुके थे।
इमरान वर्सेस इमरान
फ्रैक बताते है कि वो करीब चार सालों तक पाकिस्तान की पॉलिटिक्स पर पूरे डेडिकेशन और पैशन के साथ लिखते रहे। उसके बाद जाकर इमरान खान को अपने फुल लेंथ पॉलिटिकल बॉयोग्राफी के लिए कन्विंस कर पाए, जो वो उनके ऊपर लिखना चाहते थे। इमरान खान उनकी बातों से काफी प्रभावित हुए और फिर मौका दे डाला। उस वक्त तक इमरान खान को एक क्रिकेटर और प्लेब्वॉय के रूप में आंका जाता था, लेकिन फ्रैंक ने उनकी लाइफ स्टोरी को डिफ्रेंट एंगल से ट्रिट किया। एक सीरियस पॉलिटिश्यन के रूप में उन्होंने इमरान खान की बॉयोग्राफी 2006-07 में शुरू की,
उस वक्त इमरान पॉलिटिक्स में स्ट्रगल ही कर रहे थे। लेकिन आज वो एक मेजर कंटेडर बन चुके हैं.फ्रैंक का मानना है कि दर्द और विपरीत परिस्थिति के बिना कोई जिंदगी नहीं होती। फ्रैंक ने अपनी जिंदगी के सबसे दर्दनाक सिचुएशन को तब झेला, जब वो महज छह महीने के थे। तब उनकी मां चल बसी थीं.छोटी सी उम्र में मां को खोकर फ्रैंक ने जिंदगी को जीना सीखा। लाइफ के एक और ऐसे सिचुएशन के बारे में फ्रैंक चर्चा करते हैं कि 1998 सितंबर में उनके लिखे फस्र्ट ड्रामा ‘हिटलर इन लव विद मडोना’ को उसके रिहर्सल के वक्त ही बैन कर दिया गया था। लेकिन प्रेस की ओर से उनके नाटक के टॉपिक, कैरेक्टर और टाइटल को लेकर काफी सराहना मिली। उन्होंने इमरान वर्सेस इमरान को अपनी मां को डेडीकेट किया है, वहीं हिटलर इन लव विद मडोना को भी वो अगले साल अपने पब्लिशिंग हाउस के जरिए पब्लिश करने की प्लानिंग कर रहे है
निगेटिव सिचुएशन को फेस करते हुए भी फ्रैंक ने डेली अपना एक टारगेट बनाया और हर रोज उसे पाने की कोशिश की। अपने सक्सेस मंत्रा को कुछ इसी अंदाज में बताते हुए वे कहते हैं कि किसी भी टारगेट को पाने के लिए पेशेंस के साथ प्रैक्टिस करना बहुत जरूरी है। अगर कोशिश की जाए, तो सक्सेस जरूर मिलती है। वे खुद को हार्ड ब्वॉयल्ड पुशर कहते हैं, जो कभी थकता नहीं, बल्कि लगातार प्रैक्टिस करता है।
आज लंदन में फ्रैंक का अपना पब्लिशिंग हाउस है, वहीं वो इंडिया के मुंबई और पाकिस्तान के लाहौर में भी वक्त बिताते हैं। लेकिन आज भी वो रांची को खुद के ड्रिमी प्लेस में शामिल करते हैं, जिसे वो ‘लिटररी इमेजिनेशन का आईलैंड’ नाम देते है। रांची का वेदर उनकी लाइफ के सबसे प्लेजेंट वेदर की मेमोरी में है। 1993-94-95 की सोसाइटी उन्हें अब तक याद है, जहां यंग ब्वॉयज और गल्र्स में अलग सा एक्साइटमेंट होता था.रांची में गुजरे बीते दिन आज भी उन्हें जेहन में ताजा हैं. फ्रैंक ने इमरान खान पर लिखी एक और बॉयोग्रफिकल नॉवेल को इसी महीने 10 नवम्बर को ई-बुक के डिजिटल एडिशन में लांच किया, जिसका नाम फाइटर रखा गया है. रीडर्स इसे www.imrankhanstory.com से डाउनलोड कर सकते हैं।
Report by- Nandini Sinha
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