रांची(ब्यूरो)। ये सदर हॉस्पिटल है यहां कर्मियों की ही मनमानी चलेगी। जी हां, कुछ ऐसी ही परिस्थिति राजधानी रांची के सदर अस्पताल की बनी हुई है। कर्मचारी खुद को किसी अधिकारी से कम नहीं समझते हैं। मरीजों या उनके परिजनों से अच्छे से पेश नहीं आना जैसे ये लोग ट्रेनिंग करके आते हैं। अक्सर सरकारी अस्पताल से इस तरह की शिकायतें सामने आती रहती हैं। सिटी के सदर अस्पताल में एक बार फिर कर्मचारियों द्वारा आम नागरिकों के साथ बदसलूकी करने का मामला सामने आया है। कुछ महीने पहले भी हॉस्पिटल में नर्स और एक महिला के बीच जमकर मारपीट हुई थी, जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था। एक बार फिर से ऐसी ही घटना की पुनरावृत्ति हुई है। इस घटना का भी वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक युवक जो खुद को अस्पताल का कर्मचारी बता रहा है। वह एक अधेड़ व्यक्ति के साथ बदसलूकी करता नजर आ रहा है। पीडि़त राधेश्याम तिवारी धुर्वा के रहने वाले हैं। बताया कि आयुष्मान टीम द्वारा उनके साथ बदतमीजी की गई। रिपोर्ट मांगने पर रिपोर्ट नहीं दी और कहा-जहां जाकर शिकायत करनी है कर दो। देखते ही देखते टीम के सदस्य एकजुट होने लगे और राधेश्याम के साथ सभी बदसलूकी करने लगे।

अक्सर आती आती हैं शिकायतें

राजधानी रांची के गवर्नमेंट हॉस्पिटल से अक्सर ऐसी शिकायतें आती रहती हैं। चाहे सदर अस्पताल हो या फिर रिम्स, दोनों जगहों से इस प्रकार की तस्वीरें आती हैं। लेकिन समस्या का समाधान करने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। कुछ दिनों पहले भी सदर अस्पताल में ही एक हृदयविदारक लचर व्यवस्था की तस्वीर सामने आई थी, जिसमें एक मरे हुए व्यक्ति को अस्पताल के कर्मियों ने स्लाइन लगाना शुरू कर दिया था। दरअसल, इस घटना में भी मरीज के परिजन और अस्पताल कर्मियों के बीच काफी नोक-झोंक हुई थी। इसके बाद डेड बॉडी को स्लाइन चढ़ाया जाने लगा। वहीं, इससे पहले महिला नर्स ने मिलकर मरीज से मिलने आई एक महिला के साथ बदसलूकी और मारपीट की थी। वहीं, रिम्स में यह समस्या हर दिन की है।

मरीजों की मजबूरी

सदर हॉस्पिटल की बिल्डिंग तो भव्य बना दी गई है। लेकिन यहां के कर्मियों को मैनर नहीं सिखाया गया। एक मरीज या उनके परिजन काफी हताश-परेशान होकर अस्पताल आते हैं। लेकिन यहां भी उन्हें कर्मचारियों के दुव्र्यवहार का सामना करना पड़ता है। मरीज या उनके परिजनों द्वारा दवा से लेकर मेडिसीन या रिपोर्ट तक के लिए पहले यहां-वहां चक्कर लगाने पड़ते हैं। कर्मचारियों से भी उन्हें किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिलता। उल्टे कर्मचारी बुरा व्यवहार करते हैं। वहीं, दूसरी ओर किसी डॉक्टर के साथ कोई बुरा बर्ताव हो जाए जो सभी डॉक्टर इलाज रोककर हड़ताल पर चले जाते हैं। लेकिन मरीजों एवं उनके परिजनों की डॉक्टर, नर्स, कंपाउंडर से लेकर कर्मी तक बात नहीं सुनते और मरीजों व परिजन विवश नजर आते हैं।

हालात सुधारने के दावे खोखले

सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों के व्यवहार में सुधार लाने और पूरे सिस्टम को बेहतर बनाने के बार-बार दावे किए जाते हैं। हर बार यह दावा खोखला ही साबित हुआ है। हॉस्पिटल में स्वास्थ मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, सिविल सर्जन एवं कई आला अधिकारी निरीक्षण करते हैं। फिर भी हालत में कोई सुधार नहीं आ रहा है। अस्पताल के कर्मचारी भी खुद को अधिकारी से कम नहीं समझते हैं। कर्मियों को पैसे खिलाने पर सारी सर्विस सुधर जाती है। जिन मरीजों के अटेंडेंट कर्मियों को बख्शीश देते हैं उनके मरीजों को ज्यादा ध्यान दिया जाता है। जबकि अन्य मरीजों के साथ बुरा व्यवहार ही किया जाता है। रांची के बुंडू स्थित अनुमंडलीय अस्पताल में गर्भवती महिला के इलाज के लिए पैसे मांगे गए। पैसा नहीं देने पर महिला का इलाज नहीं किया गया। बता दें कि सरकारी अस्पतालों में ज्यादा आर्थिक रूप से कमजोर मरीज ही अपना इलाज कराने आते हैं।