-जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र, अष्टमी तिथि बना रहा जयंती योग का दुर्लभ संयोग

-कान्हा के आगमन की तैयारी पूरी, आज घरों-मंदिरों में मनाए जाएंगे उत्सव

-कान्हा रूप की पूजा-अर्चना से पापों से मिलता है छुटकारा

-कोरोना संक्रमण को लेकर मंदिर में सीमित संख्या में ही मिलेगा श्रद्धालुओं को प्रवेश

-पूजन के लिए रात 11.37 से 12.47 बजे तक विशेष शुभ मुहूर्त

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रांची: सोमवार को श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि को ही विष्णु रूप भगवान श्रीकृष्ण मानव रूप में धरती पर जन्म लिए थे। भगवान के आगमन को लेकर राजधानी में उत्साह का वातारण है। मंदिर सज-धज कर तैयार हैं। घरों में पूजा की विशेष की तैयारी चल रही है। सोमवार की रात 12.30 बजते ही मंदिरों में शंख, घंटे की ध्वनि के बीच कान्हा का स्वागत किया जाएगा। कान्हा को झूला झुलाया जाएगा। माखन-मिश्री का भोग लगाकर प्रसाद बाटें जायेंगे। वहीं, श्रद्धालु व्रत रखकर सर्वमंगल की कामना करेंगे। मंगलवार को सूर्योदय के बाद पारण होगा। कोरोना संक्रमण को देखते हुये मंदिर में सीमित संख्या में ही श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलेगा। मंदिर के पुजारी ही पूजा संपन्न करायेंगे। पंडित बिपिन पांडेय के अनुसार इस बार जन्मोत्सव पर अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और सोमवार का दिन जयंती योग बना रहा है जो कि मनोकामना पूरा करने वाला है।

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जन्म के बाद श्रीकृष्ण को पालने पर झुलाने की है परंपरा

- झूला है जरूरी: श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान के लड्डू गोपाल रूप की पूजा होती है। इस दिन रात 12.30 बजे भगवान को जन्म के बाद पालने में झूलाने की परंपरा है। इसके लिए पालने में मुलायम कपड़े, मखमल या रेशमी आसन बिछाए। इसे अपने रूचि के हिसाब से सजाएं।

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- रंग-बिरंगे वस्त्र का करें चुनाव: मान्यता है कि भगवान कृष्ण को पीतांबर ही पहनाया जाता है। मगर अब लोग भगवान का अपनी रूचि के अनुसार थीम बेस पर श्रृंगार करना पसंद करते हैं। इस थीम में गुजराती, पंजाबी, मराठी, बिहारी थीम के कपड़े शामिल होते हैं। ऐसे में आप रंग-बिरंग के कपड़ों का चुनाव कर सकते हैं।

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- मोर पंख है जरूरी: भगवान कृष्ण सिर पर मोर पंख धारण करते हैं। सिर पर मोर पंश पहनने के लिए छोटी पगड़ी या साफा भी पहनाया जाता है। आप टोपी का चुनाव अपने मन से कर सकते हैं।

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- कृष्ण को प्रिय है बांसुरी: भगवान कृष्ण को बांसुरी बेहद प्रिय है। वो वृंदावन में गोपियों के साथ बांसुरी बजाकर रास करते थे। बाजार में सोने, चांदी और कई तरह की रंग-बिरंगी बांसुरी उपलब्ध है।

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- श्रृंगार भी है प्रिय: जन्माष्टमी के दिन भगवान के श्रृंगार में कुंडल, माला और पायल को भी शामिल किया जाता है। भगवान को श्रृंगार की ये वस्तुएं बेहद प्रिय है।

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बाजार में जन्माष्टमी की रौनक

श्री कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर रांची के बाजार में रौनक देखने को मिल रही है। अपर बाजार से लेकर पिस्का मोड़, रातू, हरमू, लालपूर, कोकर, डोरंडा, हिनू, धुर्वा, सिंहमोड़ आदि बाजारों में लड्डू गोपाल की धूम है। इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी भादो मास के पहले पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। कोरोना संक्रमण को देखते हुये बड़े आयोजन नहीं होगा। इसके बावजूद पालना से लेकर पूजन, सामग्री और बाल गोपाल के वेष के कपड़ों की जमकर बिक्री हुई। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूर्व संध्या पर लोगों ने बाल गोपाल को सजाने के लिए आकर्षक डिजाइन वाले कपड़ों की खरीददारी की।

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दूसरी बार भी अलबर्ट एक्का चौक पर नहीं होगी दही-हांडी प्रतियोगिता

श्री कृष्ण जन्मोत्सव समिति रांची द्वारा प्रत्येक साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर अलबर्ट एक्का चौक पर दही हांडी झांकी प्रतियोगिता का भव्य आयोजन होता है। देर रात तक भजन संकीर्तन चलता है। हजारों की भीड़ उमड़ती थी। कोरोना संक्रमण को देखते हुये इस बार भी सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं होंगे। समिति के संरक्षक सह सांसद संजय सेठ, संरक्षक अजय मारू, अध्यक्ष मुकेश काबरा ने झारखंड के सभी कृष्ण प्रेमियों से इस जन्माष्टमी को अपने अपने घरों में ही बड़े ही धूमधाम से मनाने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि इस बार अपने घरों में ही आप दही हांडी सजाकर लगावे उसका भव्य ¨सगार कर उसे भव्य रूप दें।

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प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर में उल्लासपूर्वक मनेगी जन्माष्टमी

लोअर चुटिया के प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर में श्री कृष्ण जन्म उत्सव उल्लासपूर्वक मनाया जाएगा प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर निर्माण समिति के महामंत्री राजकुमार महतो ने बताया है सुबह से ही बाल गोपाल की पूजन शुरू हो जाएगी। झूले की सजावट होगी। बाल गोपाल के जन्म होने के बाद उसे झुलाया जाएगा। सभी मूर्तियों का पोशाक बदला जाएगा। रात में 12:00 बजे जन्म उत्सव मनाया जाएगा। प्रसाद का वितरण भी किया जाएगा। इन सबसे पहले कथा होगी, बाल गोपाल के जन्म से पहले कलश स्थापना होगा। पंच देवता का पूजन होगा। रातभर मंदिर में भजन कीर्तन होंगे।

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