रांची (ब्यूरो)। झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल और गरीब मरीजों की जान बचानेवाले रिम्स की मान्यता खतरे में है। रिम्स में जल्द ही आधे दर्जन से अधिक डॉक्टर्स रिटायर होनेवाले हैं, जबकि लगभग आधे दर्जन डॉक्टर्स रिटायर भी हो चुके हैैं। ऐसे में यदि रिम्स प्रबंधन जल्द डॉक्टरों को प्रोमोशन देने की प्रक्रिया को समय पर पूरा नहीं करता है तो उसके एमबीबीएस और पीजी की सीटें घट जाएंगी, जिससे एमसीआई यह कह कर रिम्स की मान्यता को खत्म कर सकता है कि रिम्स सभी जरूरी शर्तों को पूरा नहीं कर रहा है। मालूम हो कि मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में एडमिशन संबंधित मेडिकल कॉलेज में मौजूद प्रोफेसर के पद के आधार पर ही लिया जाता है।

6 साल से रुका है प्रोमोशन

रिम्स में डॉक्टर्स का होनेवाला टाइम बाउंड प्रोमोशन पिछले 6 साल से रुका हुआ है। इससे प्रोफेसर्स के कई पद खाली हो गए हैं और वर्ष 2023 में कई डॉक्टर के रिटायर होने से और भी कई पद खाली हो जाएंगे। हालांकि यदि डॉक्टरों का रुका हुआ प्रोमोशन होता है तो इसका वित्तीय भार राज्य सरकार पर नहीं पडेगा, क्योंकि रिम्स के डॉक्टरों को प्रोफेसर के पे बैंड का वेतन मिल रहा है।

कौन डॉक्टर होंगे रिटायर

रिटायर होनेवाले डॉक्टर्स में सबसे अधिक सर्जरी विभाग के चार डॉक्टर शामिल हैं, जिसमें डॉ आरबी बाखला, डॉ विनय प्रताप, डॉ मृत्युंजय सरावगी, डॉ आरएस शर्मा, सर्जरी विभाग में पूर्व एचओडी डॉ सत्येंद्र कु मार सिंह, आर्थोपेडिक्स विभाग में पूर्व एचओडी डॉ विजय कुमार, पीडियाट्रिक विभाग में डॉ एके चौधरी, फॉरेंसिक विभाग में डॉ सीएस प्रसाद रिटायर होंगे।

प्रोमोशन का क्या है नियम

रिम्स में डॉक्टर्स की नियुक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर या सीनियर रेजिडेंट के पद पर होती है। इसके बाद सीनियर रेजिडेंट से प्रोमोशन मिलने के बाद असिस्टेंट प्रोफेसर असोसिएट प्रोफेसर बनता है। इसके बाद असोसिएट प्रोफेसर प्रोमोट होकर प्रोफेसर बनते हैं।

रिम्स में एमबीबीएस की 180 सीटें

रिम्स में फिलहाल एबीबीएस की 180 सीटें हैं। वहीं वर्ष 2019 में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर स्टूडेंट के 10 प्रतिशत आरक्षण को देखते हुए केंद्र सरकार ने एमबीबीएस की 30 सीटें बढ़ा दी थीं। हालांकि उस समय राज्य के अन्य दो मेडिकल कॉलेजों पीएमसीएच, धनबाद और एमजीएम जमशेदपुर में सीटें नहीं बढ़ाई गई थीं। वर्ष 2018 में रिम्स में 250 सीटों पर एडमिशन की मंजूरी मिली थी। इसके बाद एमसीआई ने निरीक्षण में पाया था कि ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या कम है और प्रोफेसर्स की संख्या भी कम है। इसे देखते हुए एमसीआई ने संबंधित सत्र में 250 की जगह सिर्फ 150 सीटों पर ही दाखिले की अनुमति दी थी।