रांची (ब्यूरो) । डॉ रामदयाल मुंडा की जयंती उनके पैतृक निवास स्थान तमाड़ स्थित दिउड़ी में मनाया गया। क्षेत्र के लोगों द्वारा उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई। इस मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए बिरसा उलगुलान मोर्चा के अध्यक्ष दमयंती मुण्डा का व्यक्तित्व समुद्र की तरह था। आजादी की लड़ाई में आदिवासी एक कंधे पर मांदर और दूसरे पर तीर धनुष के साथ क्रांतिकारी गीत प्रतिरोध की ये संस्कृति मानव इतिहास में अत्यंत ही विलक्षण है। आदिवासियों के इसी अद्वितीय संस्कृति से दुनियाभर को परिचित कराने वाले महान विद्वान, सांस्कृतिक कर्मी, रंगकर्मी डाक्टर रामदयाल मुंडा थे। भारतीय राजनीति में आदिवासी नेतृत्व उभर नहीं पाई जिसकी भरपाई डॉ मुण्डा ने एक सांस्कृतिक नेता के रूप में की। उन्होंने तमाड़ के सुदूर गांव से अमेरिका के मिनसोटा यूनिवर्सिटी की गौरवमई यात्रा में डॉ मुण्डा ने उनके आदिवासियत के इस विचार को विस्मृत होने से बचाया और दुनिया के सामने उन्होंने आदिवासी दर्शन की व्याख्या प्रस्तुत की।

सांस्कृतिक दिशा दी

उन्होंने कहा की झारखंड आंदोलन को एक सांस्कृतिक दिशा दी। सरहुल, करम जैसे आदिवासी त्योहारों को सांगठनिक ढांचा दिया। रांची में जनजातीय भाषा विभाग की स्थापना कराई और शोध कार्य कराए। उनका लोकप्रिय कथन जे नाची से बांची जब मानव समाज पूंजीवाद और बाजारवाद की गिरफ्त में उलझकर ठोकरें खाएगा तब डॉ मुण्डा की ये कथन याद आएगा। डॉ मुण्डा ने राज्य की भाषाई शिक्षा को विश्वविद्यालय तक पहुंचाया। सांस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनके द्वारा सांस्कृतिक विकास आदि परंपराओं को संरक्षण हेतु किए गए प्रयास अत्यंत ही सराहनीय है। उनके स्मृतियों को सहेजना और आदर्श पर आगे बढऩा हम सबों का कर्तव्य होनी चाहिए। दमयंती मुण्डा ने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि रांची विश्वविद्यालय का नाम डॉ आरडी मुण्डा के नाम से करे तो ना केवल सांस्कृति के प्रति उनके समर्पण को याद किया जाएगा बल्कि पथ-प्रदर्शक के रूप में उनके आदर्श हमारे जीवन को सदैव आलोकित करते रहेंगे। यही उनके प्रति की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस अवसर पर रतन सिंह मुण्डा, भगीरथ सिंह मुण्डा, विष्णु लोहरा, जानकी मुंडा, संध्या मुंडा, मधुसुदन मुंडा, सत्यनारायण मुंडा, श्रवण मुंडा, शिव लोहरा, ठाकुर स्वांसी, सुदर्शन महतो, संजय स्वांसी, कल्याण मुंडा, साधु मुंडा, गणेश मुंडा, बिरास स्वांसी, दशरथ स्वांसी, कृष्णा लोहरा, राजू नायक, सुबोध स्वांसी, गुरूचरण मुंडा, फुलचंद लोहरा, रामा पुरान आदि शामिल थे।