- पहचानवालों को नहीं होती कोई परेशानी

- ज्यादा कीमत दी और फट से मिल गया स्टांप पेपर

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RANCHI (4 Feb) : रांची में स्टांप पेपर की कमी वास्तविक तो है ही, बहुत सारे दुकानदारों के द्वारा कृत्रिम किल्लत भी पैदा की जा रही है। यह किल्लत सिर्फ इसलिए पैदा किया गया है, ताकि लोग ज्यादा दाम देकर भी स्टांप पेपर खरीद लें। रांची कचहरी परिसर में इन दिनों यह गंदा खेल खुलेआम चल रहा है। प्रशासन की ओर से कार्रवाई बंद है। वेंडर्स साफ कह रहे हैं कि एक भी फिजिकल स्टांप पेपर नहीं है, लेकिन जानकार व मालदार लोगों को कोई परेशानी नहीं है। उन्हें पता है कि कचहरी के किस कोने में बैठा आदमी कितने रुपए लेकर कौन सा स्टांप पेपर दे सकता है। यही वजह है कि स्टांप पेपर खत्म होने के बावजूद दोगुने दाम पर बिक रहा है।

बीस का स्टांप 200 में नीलाम

कई बार स्टांप पेपर की नीलामी भी होती है। बाहर से आये लोगों को एग्रीमेंट कराकर एक दिन के भीतर ही वापस होना होता है, वे कचहरी में जानकार सूत्रों से संपर्क करते हैं। फिर, अवैध रूप से स्टांप बेचने वालों को मुंहमांगी कीमत दी जाती है। दो दिन पहले कोलकाता से आये एक व्यवसायी को 20 रुपए का स्टांप पेपर 200 रुपए की बोली लगाकर लेनी पड़ी। उनके लिए 200 रुपए कोई बड़ी चीज नहीं, लेकिन सामान्य आय वाले मध्य वर्ग के लोगों के लिए इतना पैसा देना संभव नहीं है।

जानकारी के अभाव में हो रही है परेशानी

आज भी ज्यादातर लोगों को यही पता है कि रेवेन्यू पेपर का मतलब प्रिंटेड फिजिकल स्टांप पेपर ही होता है। बैंक जाकर ई-स्टांप निकलवाने की प्रक्रिया ज्यादातर लोगों को मालूम ही नहीं है। कचहरी में काम करने वाले मुंशी और वकील तो सारा प्रोसेस जानते हैं, लेकिन वे भी फिजिकल पेपर पर ज्यादा जोर देते हैं, क्योंकि ई-स्टांप निकालने में पूरा दिन खत्म हो जाता है, फिर भी गारंटी नहीं रहती कि एक दिन में ई-स्टांप मिल ही जाए।

बाक्स में

फ्लैश बैक (फोटो है)

भोर की कार्रवाई से मचा था हड़कंप

31 मार्च 2017. दिन शुक्रवार। कचहरी परिसर स्थित स्टांप वेंडर्स की गुमटियों में हवाई चप्पल पहने, गले में गमछा बांध एक सामान्य सा दिखने वाला आदमी स्टांप लेने पहुंचता है। 10 का स्टांप 20 में और 50 का सौ में लेने तक का सौदा कर लेता है। दुकानदार यानी स्टांप वेंडर को पैसे देने के बजाय हथकड़ी दिखाता है। यह कोई और नहीं, बल्कि तत्कालीन एसडीओ भोर सिंह यादव थे, जिन्होंने स्टांप की कालाबाजारी रोकने के लिए वेश बदला था। आठ वेंडर्स सहित 12 के खिलाफ उन्होंने एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई के लिए कोतवाली थाने को सौंप दिया था। एक के बाद एक कार्रवाई से हड़कंप मच गया था। लेकिन, काफी कम समय में उन्हें रांची के एसडीओ पद से हटाकर दूसरे जिले में भेज दिया गया।

क्या कहते हैं लोग

मैं कचहरी में ही काम करता हूं। मेरे सारे क्लाइंट मुझे स्टांप खरीदकर डीड तैयार करने को कहते हैं, तो मैं फिजिकल स्टांप की चक्कर में पड़ता ही नहीं। ई-स्टांप निकालने के प्रोसेस में भिड़ जाता हूं।

मो नौशाद

रांची में रेवेन्यू स्टांप पेपर की खरीद-बिक्री का बेहद गंदा खेल चल रहा है। सरकार ने खुद यह मुसीबत खड़ी की है। लोगों को 100 का स्टांप 500 में खरीदना पड़ रहा है। लगता ही नहीं कि यहां कानून का राज है।

शशिरंजन कुमार

स्टांप पेपर लेने के लिए कचहरी परिसर में प्रवेश करना पड़ता है, तो दिल दहल जाता है। पांच-पांच सौ लोग एक गुमटी में लाइन लगे दिखते हैं। बहुत ही खराब व्यवस्था है रांची में। सरकार को जल्द कोई कदम उठाना चाहिए।

सूरज कुमार

अगर सरकार कहीं है, तो उसे अपने होने का एहसास भी कराना चाहिए। स्टांप पेपर की कालाबाजारी खुलेआम हो रही है। सरकार ने खुड किल्लत पैदा की है। दूसरी ओर, बैंकों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

मो शादाब