एंड्रॉयड मोबाइल की गिरफ्त में यूथ तेजी से आ रहे हैं। इस वजह से युवाओं में नोमोफोबिया की शिकायत देखने को मिल रही है। इसके लक्षण को आसानी से देखा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति मोबाइल के बिना रहने में बेचैनी महसूस करता है तो समझिए कि वह नोमोफोबिया का शिकार है। इस बीमारी का इलाज संभव है लेकिन अगर सहीं समय पर इलाज न मिले तो व्यक्ति आक्रामक भी हो सकता है। ऐसा व्यक्ति समाज में किसी के लिए भी खतरा बन सकता है। नोमोफोबिया के बढ़ते मामले के लिए एक्सपर्ट इंटरनेट को ज्यादा जिम्मेदार बता रहे हैं।

क्या है नोमोफोबिया

नोमोफोबिया शब्द नो-मोबाइल-फोन-फोबिया से मिलकर बना है। अगर आप बिना मोबाइल के नहीं रह पा रहे है। सिगनल या बैटरी कम होने पर बेचैन हो जाते हैं तो यह नोमोफोबिया के शिकार हो जाने का संकेत है।

बढ़ रही है गेमिंग की लत

युवाओं में बढ़ता गेमिंग शौक नोमोफोबिया को तेजी से बढ़ा रहा हैं। खासतौर पर छोटे बच्चे जिनके माता-पिता उन्हें मोबाइल दे रहे वो और तेजी से इसका शिकार बन रहे हैं। हाल के समय में पब्जी गेम ने युवाओं को अपनी चपेट में ले रखा है। रोजाना घंटों पब्जी जैसे गेमों के खेलते रहना और न खेल पाने पर चिडचिड़ा हो जाना भी नोमोफोबिया का ही लक्षण है। सोशल मीडिया फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिक टॉक जैसे कई अन्य प्लेटफार्म पर सुंदर दिखने की लत और लगातार सेल्फी लेते रहना आपको नोमोफोबिया का शिकार बना सकता है। अब स्थिति ये हो गई है कि लोग पास होते हैं फिर भी मैसेज भेजकर बातचीत कर रहे हैं। जिससे रिश्तों में दूरी बढ़ती जा रही है और इमोशन भी प्रभावित हो रहे हैं।

यह बरतें सावधानी

-पैरेंट्स को बच्चों के कामकाज पर नजर रखना चाहिए कि बच्चे दिनभर क्या करते हैं। छोटे बच्चों को तो बिना जरूरत के मोबाइल देना ही नहीं चाहिए। उन्हें घूमने-फिरने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बच्चों में लोगों से बातचीत करने का गुण पैदा करना चाहिए।

-मोबाइल फोन का सीमित इस्तेमाल करना चाहिए। दिनभर स्क्रीन से चिपके रहने से बचे। समय सीमा बनाकर रखे कि इतने घंटे से ज्यादा नहीं इस्तेमाल करना है।

-अपने आसपास के लोगों से बात करें। सोशल मीडिया पर उन व्यक्तियों के साथ समय व्यर्थ न करें जिनको आप नहीं जानते हैं। छोटी-छोटी बात के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करने बचें। लोगों से बातचीत करने की ज्यादा से ज्यादा कोशिश करे।

-हमेशा अपनी दिनचर्या की प्लानिंग करके रखें। इससे आपको पता रहेगा कि कितना समय आप मोबाइल पर खर्च कर रहे है। खाली समय मिलने पर ही मोबाइल की ओर ध्यान दें।

-गेम खेलते समय ध्यान रखें कि आप कितना समय इस पर दे रहें। बार-बार गेम खेलने में समय व्यर्थ न करें। रात को सोने के आधे घंटे पहले स्क्रीन से दूरी बना लें ताकि आंखों को आराम मिले और अच्छी नींद आए। सोते समय अपने दिनभर के क्रियाकलापों को याद करें और समय के प्रबंधन पर ध्यान दें।

ये हो सकती है बीमारी

गर्दन में दर्द

आंखों में सूखेपन

कंप्यूटर विजन सिंड्रोम

अनिद्रा

रीढ़ की हड्डी पर असर

फेफड़ों पर असर

गर्दन में दर्द

Posted By: Inextlive