- रामजान महीने में रोजेदार अपने आमदनी के 2.5 फीसदी करते हैं दान

पटना ब्‍यूरो।माह-ए रमजान में इबादत के साथ ही अबादतगाहों व अन्य स्थानों पर रोजा इफ्तार के कार्यक्रम भी हो रहे हैं। रमजान को अल्लाह से अपने रिश्ते को और मजबूत करने का महीना माना गया है। इस महीने में कुरान पढऩे, नमाज अदा करने, रोजा रखने के अलावा जकात और फितरा को भी विशेष महत्व दिया गया है। हर रोजेदार अपनी कमाई का 2.5 फीसदी जकात के तौर पर जरूरत मंदों को देते हैं। पटना में भी रोजदार फितरा और जकता दे रहे हैं। पढि़ए रिपोर्ट

अल्लाह जन्नत के द्वार खोल देता है
इस्लामिक धर्मगुरुओं की माने तो इस्लाम को मानने वाले ज्यादातर लोग रमजान के पाक महीने में रोजे रखते हैं। इस महीने को बहुत पाक माना जाता है। मान्यता है कि रमजान के महीने में ही पैगंबर मोहम्मद के जरिए कुरान की आयतों को उतारा गया था, इसलिए इस माह को 'कुरान का महीनाÓ भी कहा जाता है। इस महीने में अल्लाह जन्नत के द्वार खोल देता है और शैतानों को कैद कर लेता है। इसलिए जकात का बड़ा महत्व है। इसे मुस्लिम का फर्ज बताया गया है।

आमदनी के 2.5 फीसदी करें दान
जकात का मतलब दान से है। रमजान के पाक महीने में मुस्लिम के लिए जकात अदा करना जरूरी बताया गया है। माना जाता है कि रमजान के महीने में की गई इबादत जकात देने के बाद में ही कुबूल होती है। जकात में हर मुसलमान को अपनी पूरे साल की बचत का 2.5 फीसदी हिस्सा जरूरतमंद को देनी चाहिए। इस्लामिक धर्म गुरुओं की माने रमजान के दिनों में जितना ज्यादा जकात करता है, उसके घर में उतनी ज्यादा बरकत आती है। वैसे तो जकात हर किसी को देनी चाहिए मगर जिनको 76 ग्राम सोना या 555 ग्राम चांदी या इसके बराबर धन की आमदनी हो रही है। ऐसे लोगों को निश्चित तौर पर आमदनी के 2.5 फीसदी दान करनी चाहिए। इससे जरूरतमंद की मदद होती है और जकात करने वाले का रिश्ता अल्लाह से और मजबूत हो जाता है। लेकिन जकात में खर्च किया जाने वाला धन मेहनत की कमाई का होना चाहिए। जकात विधवा महिलाओं, अनाथ बच्चों, बीमार व कमजोर व्यक्ति को दे।

क्या होता है फितरा
फितरा यानी चैरिटी। जो लोग संपन्न हैं, धन की कोई कमी नहीं है, उन्हें रमजान के महीने में ईद से पहले जरूरतमंदों को फितरा की रकम अदा करने की बात कही गई है। हालांकि जकात को हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है, लेकिन फितरा को जरूरी नहीं माना गया है। फितरा की रकम गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है, ताकि ईद के दिन किसी के हाथ खाली न रहें। फितरा की कोई रकम तय नहीं होती, इसे व्यक्ति अपनी स्वेच्छानुसार दे सकता है।

70 गुणा मिलता है सवाब
डॉ। सैय्ययद हबीबुर्रहमान ने बताया कि रमजान बरकतों वाला माह है। इस माह में हर नेकी का 70 गुणा सवाब मिलता है। उन्होंने बताया कि जकात का सही मकसद लोग भूल गए हैं। यह इस्लाम धर्म के बुनियादी फर्जो में से एक है। जकात का मतलब है समाज में लोग आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं उनकी मद्द करके भविष्य में उन्हें जकाता देने वाला बनाना।

रोजेदार कर रहे हैं रोजा इफ्तार
रमजान में जितना जरूरी जकात है उतना हर मुसलमान के लिए रोजा। पटना में हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक को दर्शाते हुए विभिन्न जगहों पर शाम के समय रोजेदार सामुहिक तौर पर इफ्तार करते हैं। इफ्तार में रोजेदारों के साथ हिन्दू लोग भी शामिल होकर रोजेदारों का उत्साह बढ़ा रहे हैं।

Posted By: Inextlive