थोड़ी सी लापरवाही, नन्हीं जान पर भारी
- ठंड में दें बच्चों का ध्यान, निमोनिया न करने लगे परेशान
- मौसम के तेवर बढ़ने से बढ़े निमोनिया के पेशेंट्स - पिडियाट्रिशियंस के क्लीनिक पर लगी लंबी लाइन - न्यू बॉर्न से 5 साल के बच्चे ज्यादा शिकारGORAKHPUR: मौसम के तेवर लगातार बदल रहे हैं। कभी तेज धूप तो कभी कोहरा, मुश्किलें पैदा कर रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी में नन्हें मासूम हैं, जो मौसम की इस उठा-पटक का शिकार हो रहे हैं। मगर अपने लालडे की बीमारी में आपकी जरा सा भी अनदेखी या लापरवाही मुसीबत का सबब बन सकती है। मौसम के अनइवेन चेंज और पॉल्युशन की वजह से इन दिनों निमोनिया के केसेज बढ़ गए हैं। इसमें सबसे ज्यादा संख्या न्यू बॉर्न बेबीज की हैं, इसलिए अगर आपके बच्चे की सांसे तेजी से चलने लगी है, गड़गड़ाहट है, बार-बार दूध उलट जा रहा है, तो आपको सावधान हो जाने की जरूरत है। घर में कोई निमोनिया का पेशेंट हैं या नन्हें बच्चे हैं, तो उन्हें जहां तक पॉसिबल हो ठंड और पॉल्युशन से बचाए रखें, ऐसा न करना आपके लिए खतरनाक हो सकता है। डब्लूएचओ के आंकड़ों पर नजर डालें तो सिर्फ न्यू बॉर्न से लेकर पांच साल तक के बच्चों की मौत में 15 परसेंट केस सिर्फ निमोनिया के ही होते हैं।
30 से 40 परसेंट तक बढ़े मरीज
ठंड का कहर बढ़ने से बीमारियां बढ़ गई हैं। इम्युनिटी कम होने की वजह से बच्चे इसका सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। गर्मी के दौरान आने वाले पेशेंट्स के आंकड़ों से अगर कॉम्पेरिजन करें तो यह आंकड़ा करीब 30 से 40 परसेंट तक बढ़ गया है। चाइल्ड स्पेशलिस्ट के क्लीनिक पर पहुंचने वाले सीजनल पेशेंट्स की बात करें तो हर 10 में से 3-4 बच्चे निमोनिया के शिकार हैं। डॉक्टर्स इसकी सबसे बड़ी वजह लापरवाही और मालनरिशमेंट को ही मान रहे हैं। इसलिए जहां तक पॉसिबल हो बच्चों का ध्यान देने की जरूरत है। लंग इंफेक्शन की वजह से होता है निमोनियामौसमी बीमारी के साथ सांस फूलने को लोग बीमारी मान लेते हैं। सांस फूलना निमोनिया का सिंप्टम जरूर है, लेकिन यह निमोनिया ही यह जांच के बाद ही क्लीयर हो सकता है। डॉक्टर्स की मानें तो निमोनिया लंग इंफेक्शन की वजह से होता है। अगर किसी बच्चे को सर्दी, जुकाम और बुखार हुआ है और ्रकमजोर हैं, तो उसे निमोनिया होने के चांसेज काफी ज्यादा हैं। ऐसा इसलिए कि इंफेक्शन कॉज करने वाले बैक्टिरिया बॉडी में ही सांस के जरिए पहुंच जाते हैं। बीमारी के दौरान इम्युनिटी कमजोर हो जाती है। खासतौर पर न्यू बॉर्न से लेकर पांच साल तक की उम्र के बच्चों की इम्युनिटी काफी कम होती है। इसकी वजह से वह इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आ रहे हैं।
यह हैं सिम्प्टम्स - छाती में कफ जम जाना और उसका दम फूलना। - जाड़ा देकर बुखार। - आंखें व चेहरा लाल होना। - प्यास ज्यादा लगना। - सिर में बहुत तेज दर्द। - भूख में कमी। - छाती बहुत गर्म। - सांस लेने में प्रॉब्लम। - पसलियों में दर्द। क्या है वजह - वायरस - बैक्टीरिया - फंगस - इनफ्लूएंजा - केमिकल ऐसे कर सकते हैं बचाव - अगर किसी व्यक्ति को सांस की कोई बीमारी है, तो वह बच्चों से दूर रहे। - बच्चों को छह माह तक सिर्फ मां का दूध जरूर दें। - सभी जरूरी टीके लगवाएं। - धुएं से जहां तक हो सके बच्चों को बचाएं। - पॉल्युशन से भी करें बचाव। - हाईजीन करें मेनटेन - बच्चों के वेट और उनके आहार का दें ध्यान - हाथ को सेंसिटाइज कर बच्चों को लें। वर्जनमामूली सर्दी, खांसी है, तो यह वायरल हो सकता है। मगर इसके साथ अगर बच्चे के सीने में घरघराहट है और तेजी से सांस चल रही हैं, तो यह इंफेक्शन हो सकता है और इसकी अनदेखी से निमोनिया होने के चांसेज हैं। जहां तक हो सके बच्चों को पॉल्युशन से बचाएं और छह माह तक के बच्चों को सिर्फ मां का दूध दें।
- डॉ। राजेश गुप्ता, पीडियाट्रिशियन, सेक्रेटरी, आईएमए