- कचहरी क्लब में लगी प्रदर्शनी में उमड़ रहे गोरखपुराइट्स

GORAKHPUR: आजादी के आंदोलन में चर्चित हुई बापू की खादी आज भी युवाओं को लुभा रही है। कॉटराइज और ब्रांडेड कपड़ों के बीच खादी अपनी अलग जगह बनाए हुए है। गुलामी के दौर में महात्मा गांधी ने लोगों को आजादी दिलाने के साथ स्वावलंबी बनाने की भी कोशिश की। देशवासियों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए लोगों से चरखा और तकली चलाने की अपील की। बापू खुद भी अपने हाथ से काते हुए सूत के कपड़े पहनते थे। उस समय अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बनी खादी आजाद भारत में युवा नेताओं की पहचान बनी हुई है। साथ ही अन्य यंगस्टर्स को भी खादी खासी लुभाती है। यही वजह है कि कचहरी क्लब में उत्तर प्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड की तरफ से लगी 10 दिवसीय मंडल स्तरीय खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी में खादी के वस्त्रों की खूब बिक्री हो रही है।

खूब बिक रहे कपड़े, अन्य प्रॉडक्ट्स की भी डिमांड

सिटी के टाउनहाल स्थित कचहरी क्लब में उत्तर प्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड की तरफ से 10 दिवसीय मंडल स्तरीय खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी लगाई गई है। प्रदर्शनी में महिलाओं को जहां सलवार सूट के कपड़े आकर्षित कर रहे हैं। वहीं युवाओं को खादी के सदरी और मफलर काफी अट्रैक्ट कर रहे हैं। प्रदर्शनी में लगभग 80 इकाईयों की तरफ से अपने उत्पादों के साथ स्टॉल लगाए गए हैं जिनपर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बंगाल व कश्मीर के खादी वस्त्र, सिल्क, ऊनी वस्त्र, ऊनी सदरी, जैकेट, ऊनी शॉल, भागलपुर की सिल्क चादरें, बीकानेर का पापड़, नमकीन, प्रतापगढ़ का आंवला उत्पाद, कन्नौज के सुगंधित धूपबत्ती व अगरबत्ती एवं आयुर्वेदिक औषधियां (जड़ी-बूटी) भदोही की दरी कालीन, शुद्ध शहद, चर्म सिल्प, घरेलू वस्तुएं एवं अन्य ग्रामोद्योगी प्रॉडक्ट्स खरीदने वालों की भीड़ उमड़ रही है।

'वस्त्र नहीं विचार है खादी'

प्रदर्शनी में भूरज सेवा संस्थान हरदोई से आए जुगल किशोर कहते हैं कि खादी सिर्फ एक वस्त्र नहीं, विचार भी है। खादी को गरीब लोग अपने हाथ से सूत कातकर बनाते हैं। खादी की खरीद से मिलने वाले पैसे से इन लोगों के घरों का चूल्हा जलता है। उन्होंने बताया कि प्रदर्शनी में लगाए गए खादी के कपड़ों पर 30 प्रतिशत तक की छूट है जिसमें 5 प्रतिशत में 3 प्रतिशत कतकीन और बुनकरों को दिया जाता है।

अट्रैक्ट नहीं कर पा रहीं साडि़यां

हालांकि प्रदर्शनी में खादी की साडि़यों की उतनी डिमांड नहीं दिख रही। प्रदर्शनी से जुड़े लोगों की मानें तो इसके पीछे बहुत बड़ा कारण कमीशन भी है। एक दुकानदार सोनू ने बताया कि पहले नगर निकायों में महिला कर्मियों को सूती साड़ी दी जाती थीं लेकिन खादी आश्रम से निकायों के खरीदारों को कमीशन नहीं मिलता है, इसलिए उन्होंने सूती साड़ी खरीदना बंद कर दी।

Posted By: Inextlive