- जल्द ही केंद्र सरकार शुरू करेगी कॉल सेंटर

- हॉस्पिटल में मदद के लिए तैनात होंगे कम्युनिटी वालंटियर्स

LUCKNOW :

आज भी डिलीवरी के समय होने वाली मौतों का आकड़ा बहुत है, जबकि ऐसे 80 से 90 फीसद मामलों को रोका जा सकता है। घरों में प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान होने वाली मौत का डाटा नहीं होता है। ऐसे में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व आश्वासन योजना के तहत एक मुहिम शुरू करने जा रहे हैं। जिसमें कम्यूनिटी में होने वाली प्रसूता मौत की पहली जानकारी देने वालों को एक हजार रुपये दिये जाएंगे। यह सूचना कॉल सेंटर के जरिए दी जा सकेगी। ताकि ऐसी मौत के कारणों का पता लगाकर उन्हें रोका जा सके। 2022 तक मैटरनल डेथ जीरो करने का लक्ष्य है। यह जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग से जुड़े डॉ। दिनेश बसवाल ने मृति उपवन में चल रहे 63वीं ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ आब्स्ट्रेटिक्स एंड गायनोकोलॉजी इवेंट में दी।

तैनात होंगे कम्यूनिटी वालंटियर्स

डॉ। दिनेश ने बताया कि सुमन योजना के तहत प्रसूताओं के लिए नो डिनायल ऑफ सर्विसेज सुविधा शुरू की गई है। इसमें यदि कोई गवर्नमेंट हॉस्पिटल किसी भी तरह की सर्विस देने से मना या परेशान करता है, तो उसकी शिकायत कर सकते हैं। इसके लिए शिकायती पोर्टल हर स्टेट को बनाना होगा। इसके साथ शहर के गवर्नमेंट हॉस्पिटल में जल्द कम्यूनिटी वालंटियर्स

तैनात किये जाएंगे। जो गांव से आने वाली प्रसूताओं के इलाज में मदद करेंगे। लक्ष्य योजना में हॉस्पिटल में मिलने वाली सुविधाओं की क्वालिटी कंट्रोल की जाएगी। इसमें तीन सौ नेशनल लेवल और करीब एक हजार स्टेट लेवल के हॉस्पिटल सर्टिफाइड हो चुके हैं।

कॉन्ट्रासेप्टिव का यूज जरूरी

राजधानी की डॉ। वैशाली जैन ने बताया कि हाई रिस्क सिचुएशन में कॉन्ट्रासेप्टिव यूज करना जरूरी होता है। शुगर, बीपी, कैंसर जैसी बीमारियों से पीडि़त महिला यदि प्रेग्नेंट हो तो मॉर्टेलिटी एंड मोबिलिटी का चांस बढ़ता है। ऐसे में कौन सी बीमारी में कौन से कॉन्ट्रासेप्टिव यूज करना चाहिए यह बेहद जरूरी है। इसके लिए डब्ल्यूएचओ ने मेडिकल एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया एप और व्हील बनाया है। जो चार कैटेगरी में बताता है कि कब और किसमें कौन से कांट्रासेप्टिव यूज करना चाहिए और कब नहीं करना चाहिए।

पहले ही जांच कर सकते है

लॉस एंजिलिस से आई डॉ। अपर्णा श्रीधर ने ट्रांस एब्डॉमिनल और ट्राब्स वेजाइनल अल्ट्रासाउंड के बारे में बताया। इन दोनों ही जांचों में गर्भ में पल रहे शिशु को होने वाली समस्याओं की जानकारी मिल जाती है। इसकी विशेषता यह होती है कि शिशु जब गर्भ में मात्र पांच सप्ताह का होता है, तभी उसकी जांच की जा सकती है। डॉ। प्रीती कुमार ने बताया कि जच्चा-बच्चा को स्वस्थ रखने के लिए एडवांस तकनीक की ट्रेनिंग जरूरी है।

खुद को रखें रिलैक्स

वर्कशॉप में ब्रह्मकुमारी सिस्टर शिवानी ने कहा कि डॉक्टरों पर बड़ी जिम्मेदारी होती है, इसलिए उन्हें अपने आसपास तनावमुक्त वातावरण रखना चाहिए। रोज सुबह कम से कम आधे घंटे तक मेडिटेशन करें। नकारात्मक चीजों को खुद से दूर रखें।

Posted By: Inextlive