हाई कोर्ट में बहस जारी, अगली सुनवाई 14 जुलाई को

मथुरा जवाहर बाग कांड की सीबीआई या एसआईटी जांच की मांग में दाखिल जनहित याचिकाओं की सुनवाई 14 जुलाई को होगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ तथा जस्टिस आरएन कक्कड़ की खण्डपीठ ने अश्वनी उपाध्याय व एक अन्य की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया। उपाध्याय ने बहस की कि जवाहर बाग की घटना में सरकार में बैठे लोगों सहित कई अन्य प्रदेशों के नक्सली समूहों के लिप्त होने के कारण घटना की जांच सीबीआई को सौंपी जाए। साथ ही पीडि़तों का शहीदों को मुआवजा देने में विभेदकारी नीति का त्याग कर स्पष्ट नीति लागू की जाए।

राजनैतिक शह के चलते पुलिस बेबस

उपाध्याय का कहना है कि मास्टर माइंड रामवृक्ष यादव को जिला प्रशासन ने जनवरी 14 में दो दिन के लिए धरना देने की अनुमति दी थी। इसके बाद हजारों की भीड़ जमा हो गई। राजनैतिक शह के चलते रामवृक्ष के सामने पुलिस बेबस हो गई। पार्क में भारी मात्रा में असलहे जमा हो गए। पूरा नगर बसा लिया गया। इन गतिविधियों की सूचना खुफिया विभाग लगातार सरकार को भेजता रहा किंतु राजनैतिक संरक्षण के चलते रामवृक्ष के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकी। हाईकोर्ट के कड़े रुख के चलते उठाए गए कदम में दो पुलिस कर्मियों सहित 27 लोगों की मौत हो गई। उपाध्याय ने मौत के आंकड़ों पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि सीबीआई जांच हाई कोर्ट या न्यायिक आयोग की निगरानी में कराई जाए। राज्य सरकार ने जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा के आयोग को घटना की जांच का जिम्मा सौंपा है। कोर्ट ने जानना चाहा कि पेपर न्यूज के अलावा क्या अन्य कोई साक्ष्य या तथ्य है जिससे कोर्ट जांच का आदेश दे।

आयोग को कार्यवाही का अधिकार नहीं

अधिवक्ता योगेश अग्रवाल ने एसआईटी जांच की मांग की और कहा कि आयोग को कार्यवाही करने का अधिकार नहीं होता ऐसे में दोषियों को दंडित करने के लिए एसआईटी जांच जरूरी है। कोर्ट ने महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह से पूछा कि क्यों न घटना की जांच सीबीआई को सौंपी जाए। इस पर उन्होंने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की और कहा कि याची भाजपा सदस्य है। याचिका जनहित में न होकर राजनीति प्रेरित है। साथ ही सरकार ने न्यायिक आयोग गठित किया है। उसकी रिपोर्ट का इंतजार किया जाना चाहिए। सीबीआई व आयोग की जांच से भ्रम उत्पन्न होगा। महाधिवक्ता ने कहा कि केवल काल्पनिक व अखबार की खबरों को लेकर पुलिस पर अविश्वास कर जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जानी चाहिए। मीडिया रिपोर्ट को भरोसेमंद नहीं माना जा सकता।

स्टिंग को बनाया याचिका का आधार

याचिका में एक टीवी चैनल के स्टिंग आपरेशन को आधार लिया गया है। याचिका में यह भी सवाल उठाया गया है कि बिना राजनीतिक शह के शहर के बीच पार्क में रॉकेट लांचर व भारी मात्रा में हथियार जमा कर एक नगर नहीं बसाया जा सकता। सरकार में शामिल लोगों व राजनैतिक संरक्षण के चलते घटना की आयोग से जांच से न्याय नहीं मिल सकेगा। कोर्ट अपनी निगरानी में निष्पक्ष जांच कराए। राज्य सरकार की तरफ से आरोपों को मनगढ़ंत व मीडिया आधारित बताया गया। मीडिया रिपोर्ट को लेकर सरकार की मशीनरी पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। समयाभाव के कारण कोर्ट ने सुनवाई स्थगित करते हुए अगली तिथि 14 जुलाई तय की है।

Posted By: Inextlive