प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के बीच दिल्ली में शनिवार को सालाना शिखर वार्ता हुई। जिसमें रक्षा समेत कई बड़े समझौतों पर हस्‍ताक्षर हुए। इसमें बुलेट ट्रेन नेटवर्क समझौता भी शामिल है। जिससे अब भारत में भी जापान की तरह ही बुलेट ट्रेन दौड सकेगी। जापान में करीब 50 से बुलेट ट्रेन चल रही है। ऐसे में आइए जानें बुलेट ट्रेन के बारे में ये 15 खास बातें...


1. कैसे पड़ा नामआइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर इसका नाम बुलेट ट्रेन क्यों पड़ा। जापान में पहली बार हाई स्पीड ट्रेन चलाने का विचार 1930 में आया। जब 1964 में पहली बार यह ट्रेन चली तो दिखने में वह बंदूक की गोली सरीखी नजर आती है फिर तो लोगों ने उसे बुलेट ट्रेन पुकारना शुरू कर दिया। जापानी बुलेट ट्रेन नेटवर्क को शिनकाशेन कहकर पुकारा जाता है जिसके मायने हैं नई मेन लाइन। शिन यानी नई व काशेन माने मेन लाइन।2. सबसे तेज चलने वाली बुलेट ट्रेन चीन में व्यावसायिक रूप से संचालित सबसे तेज बुलेट ट्रेन चीन में है। शंघाई मैग्लेव ट्रेन रोजाना यात्रियों के साथ 268 मील प्रति घंटे की रफ्तार से अपना सफर पूरा करती हैं। 3. मैग्लेव बुलेट ट्रेन 


दुनिया की सबसे तेज चलले वाली गैर-मैग्लेव बुलेट ट्रेन फ्रांस में हैं। 2007 में यहां पर इसकी शुरूआत हुई थी। पहियों पर चलने वाली यह बुलेट ट्रेन 357.2 मील प्रति घंटे के हिसाब से दौड़ती है।7. गति सीमा निर्धारित

सुरंग में बुलेट ट्रेन के गुजरने पर होने वाली आवाज मालगाड़ियों के उछलने के लिए काफी है। इसके लिए यहां पर सुंरग से गुजरने पर ट्रनों की एक गति सीमा निर्धारित की गई हैं। जिससे कि कोई नुकसान न हो।8. साधारण ट्रेनों के मुकाबले आज भी ज्यादातर बुलेट ट्रेन मैग्लेव नहीं हैं। बुलेट ट्रेन आकर्षक तकनीक के बावजूद असाधारण चिकनी पटरियों पर ही चलती है। जो ज्यादातर मामलों में सामान्य ट्रेनों से संबंधित हैं। मैग्लेव या मैग्नेटिक लैविटेशन ट्रेन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ताकत के बल पर 10 मिलीमीटर ऊपर हवा में चलती है। 9. मैग्लेव का विशाल नेटवर्क वर्तमान में जापान मैग्लेव का एक विशाल नेटवर्क तैयार कर रहा है। यह बुलेट ट्रेन का भविष्य है। इसकी गति 375 मील प्रति घंटे दर्ज की गई है जो सबसे तेज गति है। 2027 तक जापान में इसका एक पूरा नेटवर्क तैयार करने की योजना है।13. बड़ा सा रेफ्रिजरेटरइसे चलाने के लिए क्रायोजेनिक ठंडा करने की जरूरत होती है। इसमें एक निश्चित तापमान के समय इसका तापमान काफी कम हो जाता है। जो कि बिजली के प्रतिरोध में काफी कम और चुंबकीय क्षेत्र में बहुत होता है। इसके लिए इसमें एक बड़ा सा रेफ्रिजरेटर दिया गया है।14. ट्रैक में मैग्नेट का इस्तेमाल

जमीन से ऊपर उठते हुए ऊपरी चुंबकीय बल से चलनेवाली यह मैग्लेव कभी पुस्ड की जाती है तो कभी पुल्ड की जाती है। यह सचमुच नीचे से ट्रेन को खींचने के लिए ट्रैक में मैग्नेट का कमाल होता है। हालांकि इसमें सब कुछ बिल्कुल स्थिर रहता है।15. लोहे की पटरियों पर चुंबकीय उत्तोलन 1900 में शुरू हुई थी। इसके बाद जर्मनी ने इसे 1934 में ट्रेस किया था। इस दौरान हरमन केम्पर ने कारीब 12 साल तक मोनोरेल के लिए प्रयास किया। जिसमें चुंबकीय द्वारा लोहे की पटरियों पर बिना पहियों के वाहन चलाने की तैयारी हुई थी।

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Posted By: Shweta Mishra