>RANCHI: प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के कैरेक्टर हामिद की झलक शनिवार को रांची में लगे ईद और रथ मेला में नजर आई। गरीब सूरत और गरीब हालत में एक कम उम्र का बच्चा जो अपने साथियों के साथ गांव से शहर पैदल चल कर आ जाता है, सारे दिन भूखे-प्यासे मेले में भटकता है और भूखा ही लौट जाता है। क्योंकि उसके पास जो पैसे थे उससे दादी के हाथों को जलने से बचाने के लिए एक चिमटा खरीदना ज्यादा जरूरी था। हामिद की कहानी आज भी मेले के भीड़ में नजर आती है। हामिद की तरह यहां भी कई हामिद हैं जिनकी कई दास्तां हैं। ईदगाह के हामिद का जब वास्तविक रूप हमने जगन्नाथपुर मेले में टटोला तब यहां ऐसे कई बच्चे मिले जिनका औसत व्यवहार बिल्कुल हामिद जैसा ही था। किसी ने मां-बाप की मदद के लिए तो किसी ने छोटी बहन की पढ़ाई के लिए अपनी दुकान लगाई है। ये मेला नहीं घूमते, ना ही मेले के चाट पकौड़े खा रहे हैं, बल्कि इनका मकसद कुछ कमा कर अपने परिवार के लिए खुशियां खरीदना है।

मेले की कमाई से घर खर्च में कर रहे मदद

किशोरगंज के रहने वाले शुभम को सिटी में कहीं भी लगने वाले मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है। शनिवार को जगन्नाथपुर मेले में अन्य बच्चों की तरह उसे खाने-पीने या झूला झूलने का शौक नहीं है, बल्कि उसे मेले का इंतजार कमाने के लिए होता है। उसकी चेष्टा यही रहती है कि कमाई इतनी हो जाए की इस महीने पिता की कुछ मदद कर सके। शुभम मारवाड़ी स्कूल के क्लास नाइन में पढ़ता है। जगन्नाथपुर मेले में वह नवविवाहित जोड़ों की शादी के मौर की पूजा कराता है। हर साल मेले में इस पूजा की परम्परा हजारों लोग निभाते हैं। शुभम कहता है कि उसके पूर्वज भी यह कराते आए हैं। मेले में हर दिन इस पूजा के जरिए 7 से 8 सौ रुपए की कमाई हो जाती है। पिता मालाकार हैं और घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। बड़ा भाई भी पढ़ाई के साथ एक दवा की दुकान में काम करता है। इसलिए शुभम इस दौरान सड़क किनारे लोगों की मौर पूजा करा रहा है।

बहन को पढ़ाने के लिए भाई बेच रहे लिट्टी-चोखा

जगन्नाथपुर मेला शुरू होते ही सड़क किनारे सजी लिट्टी-चोखे की दुकान को दो नन्हे बच्चे संभाले हुए हैं। क्क् साल का अनिश और क्फ् साल का मनीष इन दिनों मेले में लिट्टी-चोखे की दुकान लगाएं। अनिश बड़े होकर आर्मी में जाना चाहता है और मनीष अच्छी पढ़ाई और अच्छी कमाई करना चाहता। दोनों भाई कहते हैं कि सब कुछ अच्छा मिल पाए इसके लिए घर में उतने पैसे नहीं है। मां-बाप दिन रात मेहनत करते हैं फिर भी खुद ना खाकर हमें खिलाते हैं। मेले में मौका मिला है। दिन रात मेहनत करेंगे ताकि जो कमाई हो उससे पापा-मम्मी को घर खर्च में मदद मिल सके। साथ ही इस साल से छोटी बहन की पढ़ाई भी शुरू हो जाए। छोटी बहन को पढ़ाने के लिए दोनों भाई पैसे जमा कर रहे हैं।

भागलपुर से आकर नेपथलिन बॉल्स बेच रहा 7 साल का आर्यन

7 साल का आर्यन जगन्नाथपुर मेले में पांच रुपए की नेपथलिन बॉल्स चिल्ला-चिल्ला कर बेच रहा है। आर्यन के पिता किसी कारणवश कुछ नहीं करते और मां भी घर पर ही रहती हैं। मेले में कमाई को लेकर आर्यन इन दिनों स्कूल छोड़ भागलपुर से रांची अपनी मौसी के साथ आ गया, ताकि नौ दिनों तक यहां अपनी दुकान लगाकर कुछ कमा सके। आर्यन कहता है कि वह क्लास वन में पढ़ाई कर रहा। आगे भी पढ़ना चाहता है लेकिन घर में कई बार खाने तक के पैसे नहीं बचते फिर ज्यादा पढ़ पाने के सपने नहीं देखता। हां, इतनी मेहनत जरूर करना चाहता है कि कुछ पैसे कमाकर अपने पिता को दे सके। इससे घर खर्च चलाने में मदद मिलेगी। इसलिए पढ़ाई के साथ आर्यन नेपथलिन बॉल्स साल भर से बेच रहा है।

Posted By: Inextlive