India is a land of cultural diversities. It has a very rich tradition of folk music. The extreme cultural diversity creates endless varieties of folk styles. Each region has its own particular style. One can always carry on with their daily life routine while listening or singing folk music.


लोकगीत बस वही नहीं होते जो हमारे सामाजिक संस्कारों से जुड़े होते हैं बल्कि वह भी होते हैं जो सामाजिक कामों से जुड़ कर गाए जाते हैं। हम सभी यह जानते और मानते हैं कि इंडिया एक एग्रीकल्चर पर बेस करने वाली कंट्री है। तो जाहिर है कि ज्यादातर काम से रिलेटेड सांग्स खेती से जुड़ी चीजों को अपना सब्जेक्ट बनाते रहे है। हांलाकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि इसके अलावा गीत नहीं हैं। सच तो यह है कि हमारा लोकगीत का खजाना बेहद समृद्ध है।


काम और फसलों से जुड़ कर यह गीत बेहद रोचक और रसीले लगते हैं। सबसे इंर्पोटेंट बात यह है कि ऐसा कतई नहीं है कि जिस काम के समय यह गीत गाए जा रहे हैं तो उस गीत में उसी काम का डिस्क्रप्शन होगा। बल्कि लोकगीत में बसी लोकभावना का असली चेहरा इसी दौरान गाए जाने वाले गीतों में दिखता है। यही कारण है कि हमने अलग अलग भाषाओं और जोन के सांग्स एग्जांपल के लिए यूज किए हैं कई बार तो एरिया बदलने से उनके नाम भी बदल जाते हैं पर भावना सबकी समान ही है।

जिस तरह से हम आपस में गॉसिप करते हुए हाथ पैरों से अपने काम करते रहते हैं वैसे ही काम करते हुए हम लोकगीतों में ईश्वर को याद करने से लेकर, प्रेम, विरह और सामाजिक समस्यांओं और व्यवस्थाओं की बातें कर सकते हैं। जैसे लेडीज घर में चक्की पर अनाज पीसते हुए गीत गाती हैं जिन्हें जंतसार, या चक्की के गीत कहते हैं। इन गीतों में उनकी तन्हाई, सामाजिक स्थिति और प्रेम हर तरह के गीत गाए जाते रहे हैं। जैसे यह भोजपुरी गीत है राम बगिया मे पांच पेड़ अमवा, पचीस गो महुअवा आड़े हो राम या एक और पाप्युलर अवधी गीत है जो इन मौकों पर लेडीज गाती हैं भितरां से निकली कउसिला रानी नैनन नीर बहई हो राम, मोर राम लखन अस भइया कवन बन होइहइँ हो राम

इसी तरह गांवो में कोल्हू और रहट का काफी प्रचलन है उस पर कई लोकगीत बेस्ड हैं। यह अवधी गीत है तो कोल्हू का लेकिन इसमें एक विरहणी के सतीत्व के ग्रेस को डिस्क्राइब किया गया है। अमवा महुलिया घन पेड़ जेहि रे बीच राह परी, रामा, तेहि तर ठाढ़ि एक तिरिया मनै  मां विरोन भरी. कौरवी में कोल्हु, के गीतों को मल्होर भी कहते हैं और किसान जब कोल्हू पर काम करते हुए मस्त। होकर इस धुन को छेड़ते हैं तो सुनने वाले भी एक ट्रांस में चले जाते हैं अंगिया तेरी रेसमी, लागा हजारी सूत। घूंघट के पट खोलिए, तेरा जीवे गोद का पूत खेतों में निराई और रोपाई के दौरान भी किसान कई गीत गाते हैं जैसे एक बेरी अवतेउ भइया हमरी नगरिया होना, भइया बहिनी कै दुख देख जातेउ हो नो.  या फिर बाबा मोर रहितें त नीक वर खोजितें, भइया खोजलें वर गंदेलवा हो रामअपनी फसल को तैयार देख कर तो किसान का मन झूम उठता है और वह मस्त। हो कर गाता है कभी इसी दौरान उसके मन की व्यथा भी उभर आती है यही वजह है कि फसलों के गीत में इमोशंस का हर कलर दिखता है। रामा हो ओ ओ कानां बजी मुरलिया भाई रे कानां परी झनकार, गोकल बाजी मुरलिया भाई रे मथुरा परी झनकार।
फोक सिर्फ स्पेसफिक कामों के दौरान ही गाए जाते हों ऐसा नहीं है। घरों के छोटे छोटे काम निपटाते हुए भी लेडीज गाती हैं जिन्हे सोहनी कहते हैं। यह प्रेम और विरह के गीत होते हैं जब पुरुष घरों से दूर होते हैं और लेडीज उन्हे मिस कर रह होती हैं या फिर वह लंबे सफर से लौट कर आते हैं और उनकी वाइफ खुश हो कर गाती हैं.  हमरे ससुरारवा में झुर झुर मोती झरे और ननदी अंगनवा में लवंग गाछी बिरवा हो, लवंग चुएला सारी रात हो राम।

Posted By: Inextlive