Little effort for big change
पर्वत पैरों से नहीं, हौसलों से चढ़े जाते हैंवुमेंस डे सिर्फ एक दिन नहीं मनाना चाहिए. जो काम वुमेन साल के 365 दिन करती हैं. उसके लिए सिर्फ एक दिन क्यों? वुमेंस डे तो हर रोज मनाना चाहिए. हमेशा नारी को सम्मान से देखना चाहिए. उन्हें आत्मनिर्भर बनाने को प्रेरित करना चाहिए. समाज को अपनी सोच बदलनी होगी. महिलाओं को भी आगे आने का मौका तभी मिलेगा जब सभी बदलें. नजरिया बदलकर बदलाव लाया जा सकता है. वुमेंस डे पर आई नेक्स्ट की तरफ से आयोजित डिस्कशन में ये बाते आईं. मीनल गौतमवाइस प्रेसीडेंटसीसीएस यूनिवर्सिटी
यूनिवर्सिटी में इलेक्शन के समय नॉमिनेशन हो रहे थे. जब मैंने घर में बताया कि मैं भी इलेक्शन में खड़ी होना चाहती हूं, तब सभी ने विरोध किया. भाई और मम्मी ने पहले मना किया, लेकिन फिर बाद में सब मान गए. यूनिवर्सिटी से कोई लडक़ी नॉमिनेशन नहीं कर रही थी. वहीं मुझे अपनी पहचान बनानी थी. मैं अपने पॉलिटिकल करियर को यहीं से शुरू करना चाहती थी. मैंने चुनाव लड़ा और पूरे छात्र संघ में भारी मतों से जीती. लोग पता नहीं क्यों पॉलीटिक्स को गलत मानते हैं. इसके बाद मैंने स्टूडेंट्स से जुड़े कई मामलों में आवाज उठाई. मैं हमेशा स्टैंड लेती हूं. मुझसे प्रभावित होकर अब कैंपस की बाकी लड़कियां भी आगे आने लगी हैं और वो भी चुनाव लडऩा चाहती हैं.कीर्ति गुप्ताडायरेक्टरऐंजल्स एकेडमीहम राजस्थान में रहते थे. मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थी. तभी शादी हो गई. पति एजूकेडेट थे, उन्होंने सपोर्ट किया, मैंने आगे पढ़ाई की. फिर घर से निकल कर एक प्ले स्कूल खोलने का विचार आया. पहले तो सभी ने विरोध किया. सभी को समझाया तो सब मान गए. अब मैं सफल हो चुकी हैं. सामाजिक स्तर पर भी लोग जानते हैं. जो लोग विरोध करते थे, वही अब मुझे एडमायर करते हैं. मुझे जो चाहिए था, वो मैंने अचीव किया.प्रियंका सिंहइंटरनेशनल रेसलर
लड़कियां जब रेसलिंग करती हैं तो उन्हें अजीब सी निगाहों से देखा जाता है. खासकर जब वो लडक़ी रुरल एरिया से हो तो बवंडर हो जाता है. तरह-तरह की बातें होती हैं. पर मैंने अपनी दिशा तय करके ही ये फैसला लिया. शुरू में तो रेसलिंग करने में बड़ी थकान होती थी. मैं, मेहनत करती रही और एक मुकाम पाया. जो लोग पहले विरोध करते वही अब मेरी और घर वालों की तारीफ करते हैं. सोच बदल रही है. रेसलिंग अब काफी ग्रोथ वाली फील्ड है. धीरे-धीरे अब तो इतनी लड़कियां यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रैक्टिस के लिए आती हैं कि मैट पर जगह ही नहीं बचती. अब मुझे मेरे फैसले पर गर्व है. मैं अब इतनी स्ट्रांग हूं कि रात में कहीं पर जाने से पहले मुझे डर नहीं लगता चाहे साथ में कोई हो या ना हो.संध्या गर्ग फाउंडरफन एंड स्पाइस फूड क्लबमैं 19 साल की थी. यूजी कर रही थी कि तभी घर वालों ने शादी करा दी. मैं अपने पिता की तीसरी संतान हूं. लेकिन कभी भी मुझे ये फील नहीं हुआ कि मेरी परवरिश लडक़ी की तरह हुई हो. मेरी कई इच्छाएं थी लेकिन शादी और बच्चों के चक्कर में सब छूट गया. पर एक टाइम पर मन हुआ कि अब घर से निकलकर कुछ किया जाए. फिर मैंने पिडिलाइट के लिए कलर प्रमोशन शुरू किए. इससे मुझे पहचान मिलने लगी. कहते हैं ना ‘पहाड़ पैरों से नहीं हौंसलों से चढ़े जाते हैं’, इससे आगे बढ़ते हुए फिर मैंने कुकिंग क्लासेज शुरू की. जब सबने मुझे सराहा. मैंने काफी रिसर्च की और दुनिया भर के कुजींस के बारे में जानकारी जुटाई. इसके बाद मैंने फन एंड स्पाइस क्लब की स्थापना की. दो महीनों में हमारे क्लब में 65 मेंबर बन चुके हैं.सीमा राणाडायरेक्टर,
सरदारजी स्किन क्योर सेंटरमैं जाट फैमिली से बिलांग करती हूं. शादी से पहले भाई हमेशा साथ रहते थे. गली से बाहर भी अकेले नहीं गई थी. शादी के बाद मुंबई चले गए. वहां हसबैंड ने सभी काम खुद करने को कहा. पड़ोसन ने वहीं पर ब्यूटी पॉर्लर का काम सिखाना शुरू किया. दस साल बाद जब हम मेरठ वापस लौटे तब तक मैं इस फील्ड के कई कोर्स कर चुकी थी. मेरठ में मैंने सरदार जी स्किन केयर सेंटर की शुरूआत की. इस पर मेरे भाई मुझ से बहुत नाराज हुए. वो आज भी मुझे से बात नहीं करते हैं. लेकिन मेरे हसबैंड मुझे बहुत सपोर्ट करते हैं. आज मेरी भी एक आइडेंटिटी है. लोग मुझे जानते हैं. अब लोगों में अवेयरनेस बढ़ रही है और इस काम को अब छोटा नहीं समझा जाता.पूनम विश्नोई इंटरनेशनल जूडो कोच
मैं कई स्पोर्ट में एक्टिव हूं. इसलिए लोग मुझे हर खेल सिंह भी कहा जाता है. मैं फलावदा में रहती हूं. फलावदा से एक लडक़ी का निकलकर आना और जूडो में अपना मुकाम बनाना बहुत ही चैलेंजिंग था. शुरू में बड़ा विरोध हुआ. 2011-12 में सीनियर बॉक्सिंग में मेडल भी मिला. इसके बाद कई देशों में गई. अब लोग मुझे बहुत एडमायर करते हैं. मुझे देखकर लड़कियां भी गांव से निकलने की हिम्मत करने लगी हैं. लड़कियों के लिए सेल्फ डिफेंस सिखना जरूरी है. समाज हम से ही बनता है. हमें खुद ही सुधरना होगा. लड़कियां भी पेरेंट्स पर विश्वास बनाएं, ताकि उनके घर से निकलने पर पाबंदी ना लगाई जाए. हमेशा अपनी आत्मा की आवाज सुने और कुछ भी गलत ना करें. अपनी सेंसेज को यूज करके हमेशा एटेंटिव रहें.लडक़ों को भी संस्कार सिखाने होंगेइस डिस्कशन में स्पेशल गेस्ट सीओ एलआईयू तृप्ता शर्मा थी. उन्होंने कहा कि मेरे समय में पुलिस में बहुत कम महिलाएं आती थीं. अब ऐसी बात नहीं है. महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलने लगा है. वैसे अभी बहुत गुंजाइश है. अगर औरत ना चाहे तो पति भी हाथ नहीं लगा सकता. पराए मर्द की बात तो दूर है. महिलाओं को तो स्ट्रांग होना ही होगा. साथ ही लडक़ों को भी संस्कार सिखाने होंगे. पुलिस डिपार्टमेंट में काफी महिलाएं आ रही हैं. ये फील्ड लड़कियों के लिए काफी अच्छा है. जागरूकता की कमीडिस्कशन में अरुणा यादव ने कहा कि रोज सुबह अखबारों में रेप, मर्डर की खबरें पढक़र मन खराब हो जाता है. मैं मेडिकल कॉलेज में काम करती हूं. मेरे पास गांव देहात की महिलाएं मदद के लिए आती हैं. पहले तो वो अपनी समस्या बताने में ही हिचकती हैं. उनमें जागरूकता की कमी है. ग्रामीण परिवेश की महिलाओं को उनके अधिकारों और सुविधाओं की जानकारी नहीं होती है. उन्हें इस बारे में बताना जरूरी है.फन एंड स्पाइस की बोर्ड मेंबर शिखा सिंह ने कहा कि बेटियां बेटों से ज्यादा अच्छी होती हैं. बेटे भले ही पेरेंट्स को छोड़ दें लेकिन बेटियां कभी नहीं छोड़ती. लोगों को समझना होगा. बेटों की सोच बदलनी होगी. सीसीएसयू की स्टूडेंट दिव्या ने कहा कि लड़कियों को हर जगह दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैंं. कुछ ऐसा करना चाहिए कि लड़कियों का ये डर निकले और वो विरोध करना सीखें.