मिल्खा सिंह पर पर बन चुकी है फिल्म


'भाग मिल्खा भाग' देखते हुए लगा कि क्या आज के दौर में हारने के बावजूद कोई इतना बड़ा हीरो हो सकता है? 1984 के ओलंपिक में पीटी ऊषा भी हारकर हीरोइन बनी थी और लोगों ने 'उड़न परी' का खिताब दिया था.मगर अब ज़माना बदल चुका है, 'जो जीता वही सिकंदर' में लोगों की आस्था पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा गहरी हो गई है.हर दो-चार हफ़्ते बाद ऐसा ईमेल या फ़ेसबुक मैसेज ज़रूर आता है-- 'सिलिकॉन वैली में इतने फ़ीसदी इंजीनियर भारत के हैं, हॉटमेल एक भारतीय ने शुरू किया था', आदि आदि...ये लिस्ट काफ़ी लंबी होती है, जिसके अंत में लिखा होता है, हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं.


लक्ष्मी मित्तल, बॉबी जिंदल और इंदिरा नूई जैसे बीसियों लोगों पर गर्व करने वाले लाखों या शायद करोड़ों हैं, दरअसल, ऐसे हर भारतीय व्यक्ति पर गर्व करने की परंपरा चल पड़ी है जो विदेश में बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका हो.'गर्व करने लायक'संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, यूएनडीपी देता है मानव विकास रिपोर्ट.

अब बात कॉन्टेक्स्ट या परिप्रेक्ष्य की, गर्व करते वक़्त लोग भूल जाते हैं कि चीन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी भारतीय लोगों की है जिनमें करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनकी पढ़ाई-लिखाई ही ग्लोबल रेस में दौड़ने के हिसाब से हुई है.मुझे ऐसा लगता है कि भारतीय अपनी आबादी के अनुपात में सफलता की सीढ़ियों पर अब भी कम ही हैं. इस तरह की सूची ढेर सारे लोगों में ये भ्रम पैदा करने में कामयाब हो जाती है कि भारतीय दूसरे देशों के लोगों मुक़ाबले ज़्यादा प्रतिभावान हैं या भारत के सारे दुख-दर्द अब दूर हो गए हैं.अगली बार फेसबुक पर या ईमेल पर ऐसा कोई मैसेज मिले तो गर्व करने से पहले ज़रूर सोचिएगा, यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट आने पर, भ्रष्टाचार पर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट आने पर या बच्चों की हालत पर  यूनिसेफ़ की रिपोर्ट आने पर आपको शर्म से सिर झुकाना चाहिए या नहीं.तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की कोशिश करना गर्व से फूल जाने या शर्म से गड़ जाने के मुक़ाबले ज़्यादा मुश्किल है, मगर ये मुश्किल काम, बहुत ज़रूरी है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh