-एनसीईआरटी के मुकाबले तीन से चार गुना ज्यादा हैं प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों के दाम

-स्कूलों के बताए बुक स्टोर पर ही मिल रही हैं प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें

बरेली।

किताबों के बाजार में प्राइवेट पब्लिशर्स और स्कूलों की मनमानी के खेल में पेरेंट्स लुटने को मजबूर हैं। लगभग सभी कॉन्वेंट स्कूलों ने अपने यहां निजी पब्लिशर्स की बुक्स लागू कर रखी हैं। इसके चलते पेरेंट्स एनसीईआरटी की बुक्स के मुकाबले तीन से चार गुना ज्यादा कीमत देकर निजी प्रकाशकों की किताबें खरीद रहे हैं। शहर के नामी स्कूलों की बात करें तो क्लास फ‌र्स्ट की एनसीईआरटी बुक्स जहां दो हजार रुपए की हैं तो निजी प्रकाशकों की किताबें तीन गुना ज्यादा महंगी हैं, वहीं क्लास 5 से 8 तक का कोर्स एनसीईआरटी के मुकाबले लगभग साढ़े तीन गुना और क्लास 9 व 11 का कोर्स चार गुना तक महंगा है। लेकिन बच्चों के भविष्य की खातिर पेरेंट्स स्कूलों और प्राइवेट पब्लिशर्स के खेल में लुटने को मजबूर हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने फ्राइडे को शहर के कुछ बुक स्टोर पर जाकर पड़ताल की तो किसी भी क्लास के बुक्स के पैकेट में एनसीईआरटी की एक भी किताब नहीं निकली।

चार गुना तक ज्यादा कीमत

क्लास एनसीईआरटी निजी प्रकाशक

1 2000 रुपए 3 से 4 हजार रुपए

5 से 8 3 हजार रुपए 8 से 10 हजार रुपए

9 व 11 3 हजार 10 से 11 हजार रुपए

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कैसे होता है खेल

जानकारों की मानें तो एनसीईआरटी की किताबें मंगाने के लिए स्कूल प्रबंधकों को डिमांड नंवबर में ही एनसीईआरटी को भेजनी होती है, जिससे कि सत्र शुरू होने से पहले ही एनसीईआरटी से किताबें उपलब्ध कराई जा सकें, लेकिन स्कूलों से जानबूझकर डिमांड देरी से भेजी जाती है। इसके चलते सत्र शुरू होने तक एनसीईआरटी की किताबें मार्केट में नहीं आ पाती हैं और इसी की आड़ लेकर निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए पेरेंट्स को मजबूर होना पड़ता है।

स्कूलों के निर्धारित स्टोर

लगभग सभी स्कूलों ने अपने यहां पढ़ाई जाने वाली किताबों के लिए बुक सेलर से भी सेटिंग कर रखी है। हर साल स्टूडेंट्स को निजी प्रकाशकों की बुक्स की लिस्ट दे दी जाती है जिस पर उस बुक सेलर का भी नाम होता है जहां ये बुक्स मिलेंगी। इसके अलावा यदि पेरेंट्स किसी दूसरे बुक सेलर से कोर्स खरीदना चाहें तो मिल पाना मुश्किल है।

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क्या कहते हैं पेरेंट्स

शासन बनाए कड़े नियम

किताबों के कमीशन के खेल के बारे में हमें अखबार के माध्यम से ही पता चला। यदि ऐसा है तो बच्चों को अंगे्रजी शिक्षा देना चुनौती साबित होगा। शासन को भी इस बारे में कड़े नियम बनाने चाहिए।

भरत सक्ेसना

किससे करें शिकायत

बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेज रहे हैं। अब स्कूल प्रबंधक दुकानदारों के साथ मिलकर हमारी ही जेब काट रहे हैं। ये गलत है, अब अधिकारी भी हमारी बात नहीं सुनेंगे तो शिकायत किससे करें।

मुकेश गुप्ता

एनसीईआरटी की बुक्स हों लागू

स्कूल प्रबंधक और दुकानदारों के बीच कमीशन का खेल ऐसा ही होता रहा तो गरीब बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा नहीं मिल पाएगी। हर साल निजी किताबों के दाम आसमान छू रहे है। मगर कोई भी एनसीईआरटी की किताबें नहीं लागू कर रहे हैं।

मोहित राजपूत

जिम्मेदार नहीं ले रहे एक्शन

शिक्षा विभाग की तरफ से इन स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। ऐसा लग रहा है कि शिक्षा विभाग भी इनके कमीशन में शामिल है। इसलिए स्कूलों में एनसीआरटी की किताबे नहीं लागू की जा रही है। इसका असर अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा है।

अरुणोदय मिश्रा

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वर्जन

हमने इस बार भी एनसीआरटी को करीब 2 लाख रूपयें से अधिक की डिमांड की किताबों के लिए आर्डर भेज चुके है। मगर हमें अप्रैल में किताबे मिलेगी। अभी तक जो भी एनसीआरटी ने किताबें भेजी है वह पर्याप्त नहीं है। अब स्कूल में पढ़ाई के लिए अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की किताबे खरीदना पड़ रही है। शहर में एनसीआरटी की डिपो खुल जाता है तो हमें भी राहत मिलती है।

सौरभ मल्होत्रा, मार्डल बुह डिपो

---------------- अभिभावकों के वर्जन

Posted By: Inextlive