किसी भी तरह के फ़ोबिया से अब खेल-खेल में मुक्ति मिल सकती है और इसमें मदद कर सकते हैं आपके स्मार्टफ़ोन और टैबलेट के ऐप.


मनोचिकित्सक डॉक्टर रसेल ग्रीन को मकड़ियों से फ़ोबिया था. फ़ोबिया यानी किसी चीज़ से बेवजह बेहद अधिक डर लगना. रसेल को एक घटना अभी तक याद है, जिसके बाद उन्होंने काम पर जाना ही छोड़ दिया था.उन्होंने बताया, "एक दिन मैंने देखा कि मेरी सहयोगी के सैंडविच बॉक्स में मकड़ी है. जैसे ही मुझे पक्का विश्वास हुआ, मैं अस्पताल से भाग खड़ा हुआ."डॉक्टर ग्रीन को मकड़ी से इतना ज़्यादा डर लगता है कि वो उसकी तस्वीर मात्र देखकर डर जाते हैं.लेकिन डॉक्टर ग्रीन ने अपने फ़ोबिया का सामना करने के लिए एक मोबाइल ऐप 'फ़ोबिया फ़्री' विकसित कर लिया है. ये ऐप इसी तरह की समस्या से जूझने वाले अन्य लोगों की मदद के लिए बनाया गया.
इस ऐप में एक ऐसी विधि को अपनाया गया है, जिसमें फ़ोबिया से पीड़ित व्यक्ति को जिस चीज़ से फ़ोबिया है उससे धीरे-धीरे रूबरू कराया जाता है. इस विधि को सिस्टेमेटिक डीसेंसिटाइजेशन (प्रक्रियागत तरीके से कम संवेदनशील बनाना) कहते हैं.मोबाइल गेमसाइमन अब एक फ्लोवी ऐप बनाने में जुटे हैं, जो सिखाता है कि हाइपरवेंटिलेशन(अतिवातायनता) से कैसे निपटा जाए.


वो इस ऐप से यूज़र्स को यह बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे छाती और पेट की बड़ी मांसपेशियों के इस्तेमाल से गहरी सांस ली जाए."लोग अपने फ़ोन और टैबलेट्स से काफ़ी जुड़ जाते हैं. जुड़ाव की यह भावना ही पीड़ित को इन परिस्थितियों में अपने फ़ोन पर भरोसे को बढ़ाती है, जो शायद अपने परिवार और मित्रों के साथ वो साझा न कर सकते हों."फ़िल टोफ़म, मनोचिकित्सकइस सॉफ्टवेयर का कुछ ही हफ़्तों में क्लीनिकल मूल्यांकन किया जाएगा.हालांकि, कुछ विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि ये ऐप भले ही परंपरागत तरीक़ों के साथ-साथ प्रभावी सिद्ध हों, लेकिन ये नहीं समझा जाना चाहिए कि ये उन तरीकों की जगह ले लेंगे.मनोचिकित्सक एलिज़ाबेथ ग्रे कहती हैं, "मुझे नहीं लगता है कि बिना समुचित इलाज के यह ठीक हो जाता है."कुछ लोगों का मानना है कि हम में से ज़्यादातर लोगों का मोबाइल फ़ोन से गहरा रिश्ता होता है और इसमें बीमारी से उबरने में मददगार साबित होने की पर्याप्त संभावना है.मनोचिकित्सक फ़िल टोफ़म वेस्टर्न इंग्लैंड विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं. फिल 'सेल्फ़ हेल्प फ़ॉर एंक्ज़ाइटी मैनेजमेंट' (सैम) ऐप विकसित करने वाली टीम के मुखिया हैं.

वो बताते हैं, "लोग अपने फ़ोन और टैबलेट्स से काफ़ी जुड़ जाते हैं. जुड़ाव की यह भावना ही पीड़ित को इन परिस्थितियों में अपने फ़ोन पर भरोसे को बढ़ाती है, जो शायद अपने परिवार और मित्रों के साथ वो साझा न कर सकते हों."उनका कहना है, "तनाव और बेचैनी के साथ थोड़ी झिझक भी जुड़ी होती है और यह समस्या को और बढ़ा देती है."

Posted By: Prabha Punj Mishra