राजस्थान में चुनावी सरगर्मियां तेज़ हैं. बाग़ियों से घिरीं वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के लिए बाग़ियों की बहार भाजपा और कांग्रेस के सत्तासीन होने के सपने को कड़ी चुनौती रही है.


चुनाव पूर्व आए सर्वेक्षणों में भाजपा नेता वसुंधरा राजे को काफ़ी बढ़ा-चढ़ाक़र मुख्यमंत्री बताया जा रहा था, लेकिन पार्टी उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया में अब हालात ये हो गए हैं कि जयपुर जैसे गढ़ में ही कई-कई बाग़ी ताल ठोक रहे हैं.ये बाग़ी उनके सत्ता में आने के दावों के लिए चुनौती बन रहे हैं. विद्रोहियों के मामले में कांग्रेस की तस्वीर भी कुछ ज़्यादा अच्छी नहीं है. उसे भी कई जगह विद्रोहियों का सामना करना पड़ रहा है.कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही दलों के नेताओं ने चुनावी सियासत को काफ़ी नफ़ासत से शुरू किया था, लेकिन आख़िरी समय में सारा खेल बदमज़ा हो रहा है.संगमा की पार्टी चुनौती


वसुंधरा राजे ने सोमवार को जब झालरापाटन से नामांकन किया, तो साफ़ कहा कि कई जगह कई पार्टियां उम्मीदवार उतार रही हैं. ये सभी कांग्रेस की बी, सी, डी या ई टीम हैं और इनके उम्मीदवारों के टिकट खुद कांग्रेस ही तय कर रही है.

भारतीय जनता पार्टी में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह, जीतराम चौधरी, पूर्व मंत्री मदन दिलावर, राजेंद्र गहलोत, मृदुरेखा चौधरी, सांगसिंह भाटी, नवीन पिलानिया जैसे कई नेताओं ने नामांकन दाख़िल कर दिए हैं तो कांग्रेस के बड़े नेता हरेंद्र मिर्धा, विधायक रीटा चौधरी, राज्य मंत्री डॉ. राजकुमार शर्मा जैसे नेताओं ने बग़ावत की है.जब बाग़ी पड़े थे भाजपा पर भारीअशोक गहलोत को अपनी जीत के लिए भाजपा के बाग़ियों से उम्मीदें हैं.वे पार्टी के गंभीर नेताओं में रहे हैं लेकिन सुराणा का कहना है कि पार्टी ने उनके साथ दग़ा किया है और ऐसे अनजान लोगों को टिकट दे दिए हैं, जिनका राजनीति या पार्टी के लिए कोई योगदान नहीं है.बग़ावत की यह बयार शेखावाटी, ढुंढाड़, मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती सहित सभी इलाक़ों में समान रूप से बह रही है. मगर डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जैसे संघनिष्ठ नेताओं के खुले तौर पर कूद पड़ने से भाजपा को ज़्यादा धक्का लगा है.आलोचनापिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रहे पूर्व सांसद रामदास अग्रवाल ने तो यहां तक सवाल उठाया कि जयपुर जैसे राजधानी वाले भाजपा के गढ़ वाले इलाक़े में सभी बाहरी प्रत्याशी उतार दिए हैं. अगर बाहरी लोगों को ही इस तरह टिकट दिए जाते रहे, तो पार्टी के निष्ठावान और स्थानीय नेता कहां जाएंगे?बग़ावत के इस भय के कारण कांग्रेस ने दाग़ी मंत्री महीपाल मदेरणा, मलखान सिंह और बाबूलाल नागर के रिश्तेदारों को चुनाव में उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला करके अपने आपको आलोचनाओं का निशाना बना लिया है.

कुल मिलाकर एक ओर जब भाजपा सत्ता में वापसी का सपना देख रही है, तब विद्रोहियों ने उसकी नींद उड़ा दी है, वहीं कांग्रेस में टिकट बंटवारे पर सवाल उठ रहे हैं.कांग्रेस के केंद्रीय नेता रहे रामनिवास मिर्धा के बेटे और पूर्व मंत्री हरेंद्र मिर्धा तक के टिकट काट दिए गए हैं, जो अब चुनावी मैदान में पूरे दमखम से ताल ठोंक रहे हैं. यानी सत्ता काक सपना तोड़ने के लिए कलह का बिगुल काफ़ी ज़ोर-शोर से बज रहा है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh