-लॉकडाउन के बाद अनलॉक में लगातार आ रहे सुसाइड केस

-परिवार के सदस्य में लक्षण दिखें तो लें मनोचिकित्सक की सलाह

आगरा। कोरोना काल में मानसिक अवसाद का शिकार लोग आत्महत्या करने को मजबूर है। रोजाना सुसाइड के नए केस सामने आ रहे हैं। गुरुवार को रकाबगंज थाना क्षेत्र में एक युवक ने फांसी लगा ली। इससे पहले बुधवार को यमुनापार क्षेत्र में इस तरह का मामला सामने आया। पुलिस मामले की जांच कर रही है। शवों का पोस्टमार्टम कराया गया है।

बेटे दिल्ली में रहते हैं

रकाबगंज थाना क्षेत्र के रहने वाले राजकुमार पुत्र तेज सिंह के दो बेटे दिल्ली में रहते हैं। बेटी की शादी हो चुकी है। घर में पति-पत्नी ही रहते हैं। रकाबगंज थाना प्रभारी दिनेश कुमार कहना है कि बुधवार को राजू ने अपनी पत्नी से बाहर सोने के लिए कहा था। कमरे में वह अकेला सो रहा था। सुबह नहीं जागने पर अनहोनी की आशंका हुई। खिड़की से देखा तो पता चला कि राजू पंखे से लटका था। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। वहीं, यमुनापार में पेड़ से लटकर युवक ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। युवक की आत्महत्या का कारण पता नहीं चला है।

तनाव में खुद न रखें अकेला

मानसिक अवसाद का कारण मानोचिकित्सक डॉ। पूनम तिवारी का कहना है कि आज कंप्टीशन के दौर में आगे बढ़ने की ललक में काम का तनाव, व्यक्तिगत स्वार्थ जैसे कई तत्व है, जिनकी वजह से आदमी पर डिप्रेशन हावी हो जाता है। डिप्रेशन से बाहर निकालने में सबसे बड़ी भूमिका उसकी स्वंय की होती है। इसके अलावा परिवार व साथियों का सहयोग भी जरुरी है। इस दौरान खुद को कभी भी अकेना न छोड़ें। इससे मानिसक अवसाद की स्थिति और भी जटिल हो जाती है।

यह है अवसाद की पहचान

- चिड़चिड़ापन

- नींद कम आना

- किसी बात को अधिक देर तक सोचना

- समय पर भूख न लगना।

- किसी काम में मन न लगना।

- आत्मविश्वास में कमी।

-मन में हीन भावना आना।

इसका रखें ध्यान

- नशा बिल्कुल न करें।

- चिंता से बचने के लिए ध्यान करें।

- सुबह कसरत व योग करें।

- स्वयं को हमेशा किसी न किसी काम में व्यस्त रखें।

- नींद पूरी लें। विपरीत परिस्थिति में परिवार या दोस्त से बात करें।

- डॉक्टर से परामर्श लें, देर करने से स्थिति खराब हो सकती है।

वर्तमान हालातों में आíथकतंगी भी तनाव की एक वजह है। परिवार में एक दूसरे सदस्य को सहयोग नहीं करना, कंप्टीशन के दौर में आगे बढ़ने की ललक डिप्रेशन का कारण हो सकती है। लक्षण जानने के बाद परिवार के सदस्यों को उसके साथ बातचीत करनी चाहिए। जरूरत पड़ने पर काउंसलिंग भी करा सकते हैं।

डॉ। पूनम तिवारी, मनोवैज्ञानिक काउंसलर

Posted By: Inextlive