Agra:कहावत है कि जन्म देने वाले से बड़ा उसे पालने वाला होता है. भले ही ये कहावत इंसानों पर पूरी तरह सटीक बैठती होगी. लेकिन शहर को दुनिया के नक्शे पर अलग पहचान दिलाने वाले ताजमहल पर नहीं बैठती है. क्योंकि जिन पीरों संतों की वजह से ताजमहल की नींव रखी गई उन्हें हर साल उर्स के मौके पर श्रद्धा और सुविधा से वंचित रखा जाता है. इतना ही नहीं मान्यता भी ये है कि अगर कोई जायरीन शाहजहां की जियारत करने आया है तो उसे सबसे पहले पीर हजरत अहमद बुखारी की दरगाह पर जाकर माथा टेकना होता है. उसके बाद शाहजहां की मजार पर जाना चाहिए. लेकिन ताजमहल की लाइमलाइट में परंपराओं की अनदेखी की जा रही है.

कारीगर रहते थे डरे-सहमे
दरगाह अहमद बुखारी शाह के सज्जादानशीन मो। निजाम शाह ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि जब शाहजहां ताजमहल की नींव रखवा रहे थे उसी दौरान भूत-जिन्न कारीगरों को ताजमहल की बुनियाद रखने नहीं दे रहे थे। वे रात में कारीगरों को डराकर भगा देते थे साथ ही रखी हुई नींव को धवस्त कर देते थे। इसके चलते कोई भी कारीगर यहां रुकने को तैयार नहीं था।
अरब से बुलाए गए थे संत
ताजमहल की नींव रखी जा सके इसके लिए शाहजहां को इमामों ने अरब में बुखारा शहर के पीर हजरत अहमद बुखारी को बुलाने के लिए कहा। शाहजहां के बुलावे पर पीर अपने साथ तीन भाई सैय्यद जलाल बुखारी शाह, सैय्यद अमजद बुखारी शाह और सैय्यद लाल बुखारी शाह भारत चले आए। शाहजहां सभी पीर बाबाओं को खुद लेकर आए थे।
रखी नींव
दरगाह कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने बताया कि चारों पीर बंधुओं ने आगरा में ताजमहल के नींव परिसर पर पहुंचकर कुरान और कलमों की तिलावत (पाठ) कराई। इसका बाद शाहजहां के हाथों नींव रखवाकर ताजमहल को बनवाने का काम शुरू करवाया। तब कहीं जाकर ताजमहल का निमार्ण पूरा हो सका।
ताज रहेगा सेफ
जानकार हाजी मिर्जा सरदार बेग ने बताया कि चारों पीर बाबाओं के जन्नत में पहुंचने के बाद उन चारों की मजार ताज के चारों कोनों पर बनाई गईं। हजरत अहमद की मजार पूर्वी गेट के पास बनी हुई है। जलाल बुखारी की पश्चिमी, लाल बुखारी की थाना ताजगंज और लाल बुखारी की बिल्लोचपुरा (तेलीपाड़ा) में बनाई गई। सैय्यद मुनव्वर ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जब तक ताज के चारों ओर इनकी दरगाह मौजूद हैं तब तक ताज को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता.                                                                                                                                                                                                                                                 सुविधा और श्रद्धालु से महरूम
दरगाह अहमद बुखारी के सज्जादानशीन मो। निजाम शाह ने बताया कि इसलिए उर्स पर जियारत करने वाली श्रद्धालुओं के लिए मान्यता है कि अगर वे जियारत करने शाहजहां की मजार पर जाना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले अहमद बुखारी की दरगाह पर आना होगा। तभी उनकी जियारत पूरी होगी। कमेटी के विनोद कुमार ने बताया कि यहां इस परंपरा को फॉलो नहीं किया जा रहा है। एक तरफ ताजमहल पर दिनभर में 50 से 60 हजार श्रद्धालु आकर चले जाते हैं। वहीं, सैय्यद अहमद बुखारी की दरगाह पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कुछ एक हजार होती है। इसके अलावा प्रशासन जितनी मुस्तैदी से ताज परिसर में व्यवस्थाएं करता है उसके अपेक्षा में यहां कोई ध्यान भी नहीं देता।
शाहजहां के उर्स से पहले पीर अहमद बुखारी शाह का उर्स शुरू हुआ था। लेकिन ताजमहल की चकाचौंध और लोगों की धारणा ने पीर बाबा को पीछे कर दिया।
मुईन बाबूजी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, दरगाह कमेटी
अहमद बुखारी शाह बहुत बड़े सिद्ध पुरुष थे। उनकी मजार पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। इसके चलते शाहजहां से पहले उनकी दरगाह पर माथा टेकना बहुत जरूरी है।
मो। निजाम शाह, दरगाह, सज्जादानशीन
ताजमहल की वजह से लोग शाहजहां का उर्स करने के लिए पहले जाते हैं। लेकिन ये गलत है। जो मान्यता और जो परंपरा है उसका पालन करना चाहिए।
सैय्यद मुनव्वर अली, सोशल वर्कर

 

Report by: Sharma.neeraj@inext.co.in

Posted By: Inextlive