Bareilly : आज की फास्ट और हाईटेक लाइफ में शादी का अटूट बंधन कब टूटने की कगार पर पहुंच रहा है पता ही नहीं चलता. सात जन्मों तक साथ जीने का वादा एक जन्म में भी नहीं पूरा हो पा रहा. तमाम एफट्र्स के बावजूद पति-पत्नी साथ रहने के लिए तैयार नहीं हो रहे. मेडिटेशन सेंटर पर आने वाले केसेज यही हालात बयां कर रहे हैं. मामूली सी बातों पर आड़े आ जाता है बड़ा सा ईगो. नतीजा डायवोर्स.


Case 1श्यामगंज के रहने वाले बिजनेसमैन राजीव अरोड़ा (नेम चेंज्ड) की शादी 25 साल पहले कोमल (नेम चेंज्ड) से शादी हुई थी। इनके एक बेटा व एक बेटी है। इसी बीच राजीव रीना नाम की एक लड़की के संपर्क में आए। इसके चलते वाइफ कोमल से तलाक लेने तक की नौबत आ गई। कोर्ट में मामला जाने के बाद भी हसबैंड-वाइफ में समझौता नहीं हो सका। हालांकि कोमल अपने सास-ससुर के साथ रह रही हैं। हसबैंड उनके साथ नहीं रहते हैं।Case 2रामवाटिका कॉलोनी निवासी डॉ। राम अवतार व मधुबाला (नेम चेंज्ड) की शादी को अर्सा बीत गया लेकिन छोटी-छोटी बातों को लेकर उनकी  आपस में नहीं बनती। दोनों की 2 बेटियां और एक बेटा है। कोर्ट के डिस्ट्रिक्ट मेडिटेशन सेंटर में हसबैंड-वाइफ के बीच कई दिन तक समझौता कराने का प्रयास किया गया लेकिन रामअवतार और मधुबाला एक साथ रहने को तैयार नहीं हुए।


Case 3नहीं कर पाते हैं। इसलिए रिलेशनशिप में डिस्टेंस घर कर जाता है।नहीं होना चाहिए। कोई भी प्रॉब्लम होने पर आपस मेंबात कर गलतफहमी को सॉल्व करना चाहिए.'

29 वर्षीय संजय मिश्रा (नेम चेंज्ड) पेशे से पायलट हैं। चार साल पहले संजय की शादी बंगाल की रहने वाली प्रियंका मिश्रा (नेम चेंज्ड) से हुई थी। जब संजय ट्रेनिंग पर था तभी दोनों के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। फिर क्या

शादी के एक साल बाद ही दोनों का तलाक हो गया.    जबकि डायवोर्स से पहले मेडिटेशन सेंटर पर दोनों की शादी बचाने का काफी प्रयास किया गया।हर महीने 100 से ज्यादा केसकोर्ट स्थित मेडिटेशन सेंटर पर मंथ में 100 से अधिक मामले पति-पत्नी के आपसी मनमुटाव के पहुंच रहे हैं। सेंटर पर पहुंच सके अधिकतर मामलों में समझौता नहीं हो पाता है। हसबैंड-वाइफ एक साथ रह सकें, इसके लिए सेंटर के मेंबर्स कपल को मैक्सिमम तीन महीने का टाइम देते हैं। इन तीन महीनों में लगातार एफट्र्स किए जाते हैं कि कपल्स सारे गिले-शिकवे भूलकर एक साथ रहें पर 50 परसेंट कपल्स ही दोबारा एक-दूसरे के साथ रहने को तैयार होते हैं।60 % & upper class सेंटर पर जितने भी मामले आते हैं, उनमें मिडिल व अपर क्लास के लोग सबसे ज्यादा होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, सेंटर पर 40 परसेंट मामले लो क्लास और 60 परसेंट मिडिल व अपर क्लास फैमिलीज के आ रहे हैं। काउंसलर के अकॉर्डिंग, पढ़े-लिखे लोगों में ईगो ज्यादा होता है। वे एक-दूसरे की बात मानने को तैयार ही नहीं होते। अगर हसबैंड-वाइफ दोनों ही जॉब कर रहे हैं तो प्रॉब्लम और भी ज्यादा होती है। दरअसल कपल्स साथ में क्वालिटी टाइम स्पेंड
इन बातों को लेकर तकरार-लड़की का हर छोटी-बड़ी बात को मायके में शेयर करना।-पति-पत्नी एक-दूसरे पर अपना डिसीजन थोपना चाहते हैं।-दोनों जॉब में हैं तो बच्चे की केयर को लेकर टेंशन। -कपल के सोशल चेंज को एक्सेप्ट न कर पाने पर भी प्रॉब्लम होती है।-हसबैंड-वाइफ के बीच किसी तीसरे का इंटरफेयरेंस। इन बातों पर ध्यान दें-मनमुटाव होने पर जल्दबाजी में डिसीजन न लें। कम्युनिकेशन गैप न होने दें -एक-दूसरे को क्वालिटी टाइम दें।  -कोई भी प्रॉब्लम होने पर बुजुर्गों, साइकोलॉजिस्ट और सोशियोलॉजिस्ट की सलाह लेना बेहतर होगा।2013 में आए मामलेमंथ     मामले आए     समझौता हुआजनवरी     127         55फरवरी     100           47मार्च       115            50'हम लोगों की यह पूरी कोशिश होती है कि मेडिटेशन सेंटर पर आने वाले मामलों में समझौता हो जाए। कई बार लोग ईगो इतना ज्यादा पालकर रखते हैं कि समझौता नहीं हो पाता है। '- हरिंदर कौर चड्ढा डवोकेट'मायके के पक्ष का इन्वॉल्वमेंट खतरनाक हो सकता है। पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता लाने के लिए एक-दूसरे के प्रति ईगो
- साधना मिश्रा, काउंसलर 'सोशल चेंज इसका सबसे बड़ा रीजन है। जॉब करने की वजह से  कपल्स एक-दूसरे को टाइम नहीं दे पा रहे हैं। नतीजा मनमुटाव के रूप में सामने आ रहा है। ज्यादातर वाइव्ज चाहती हैं कि पति पैसे कमाने के साथ घर की जिम्मेदारियों को भी समझें.'- डॉ। नवनीत कौर आहूजा, सोशियोलॉजिस्ट

Report By-Prashant Singh

Posted By: Inextlive