पढ़ने में है डल तो हैरसमेंट का शिकार है आपका बच्चा
- बच्चों के बिहेवियर में हो रहा है चेंज तो भी अलर्ट होने की है जरूरत
- सभी सरकारी और गैरसरकारी स्कूल्स में किया जा रहा है बच्चों का हरासमेंट- यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट में हुई रिसर्च में सामने आया सचहोमवर्क कंप्लीट नहीं हो रहा
Gorakhpur@inext.co.in
GORAKHPUR : पढ़ने में मन नहीं लगता, लिखने की आदत नहीं बन पा रही है। एटीट्यूड एग्रेसिव होता जा रहा है या फिर दिया जाने वाला होमवर्क कंप्लीट नहीं हो रहा है। अगर इन सबमें से कोई भी सिम्प्टम आपको अपने बच्चों में नजर आते हैं, तो आपको अलर्ट होने की जरूरत है। ऐसा इसलिए कि अगर आपके बच्चे के बिहेवियर में ऐसा शामिल है, तो वह हैरसमेंट का शिकार हो चुका है। चाहे वह मेंटल हरासमेंट हो या फिर फिजिकल। यह बातें सामने आई हैं गोरखपुर यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की रिसर्च में, जहां बच्चों की सैंपलिंग के बेसिस पर किए गए सर्वे में काफी चौंका देने वाले रिजल्ट मिले हैं। इसलिए अगर आपके लाडले के साथ भी ऐसा कुछ होता है, तो आपको अभी से अलर्ट हो जाने की जरूरत है और अपने बच्चों से बात करने की जरूरत है कि आखिर उन्हें प्रॉब्लम क्या है? अगर ऐसा नहीं किया तो फ्यूचर में इसका असर बढ़ा मिलेगा और उस दौरान इसे कंट्रोल करना काफी मुश्किल होगा।
गोरखपुर के अलावा आसपास के जिलों में ऐसा कोई भी स्कूल नहीं है, जहां बच्चों के साथ हरासमेंट न किया जा रहा हो। यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने डॉ। सुषमा पांडेय के डायरेक्शन में सर्वे किया। इस दौरान उन्होंने रूरल और अर्बन एरियाज के गवर्नमेंट और प्राइवेट स्कूल के 480 बच्चों की सैंपलिंग की। इन बच्चों की उम्र 6 से 12 साल के बीच थी। गोरखपुर के अलावा बस्ती और देवरिया में हुए इस सर्वे में टीचर्स और एंप्लाइज के दुर्व्यवहार मापने के लिए 'बाल दुर्व्यवहार' चेक लिस्ट और पॉजिटिव और निगेटिव बिहेवियर मापने के लिए 'बाल व्यवहार मापनी' चेकलिस्ट का इस्तेमाल किया गया। इसमें से कोई एक ऐसा स्कूल नहीं मिला, जहां बच्चों के साथ फिजिकल या मेंटल कोई हरासमेंट न हुआ हो.
कुछ जगह फिजिकल, तो कहीं साइकोलॉजिकल
सर्वे के दौरान स्टूडेंट्स ने पहले स्टूडेंट्स के फैमिली और पर्सनल बैकग्राउंड की इंफॉर्मेशन कलेक्ट की। सभी स्कूल्स में बच्चे एब्यूज के शिकार थे। इसमें रूरल एरियाज के स्कूल्स में फिजिकल हरासमेंट के केस ज्यादा आइडेंटिफाई हुए, जबकि अर्बन एरियाज में साइकोलॉजिकल हरासमेंट के केसेज खूब मिले। एजुकेशनल निगलेक्ट और सेक्सुअल हरासमेंट के केस भी मिले। लेकिन रूरल एरियाज के प्राइवेट स्कूल में फिजिकल, जबकि शहरी इलाकों के प्राइवेट स्कूल्स में साइकोलॉजिकल हरासमेंट बड़ी तादाद में पाए गए।
घर से ही होती है शुरुआत
गोरखपुर यूनिवर्सिटी साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी प्रो। सुषमा पांडेय की मानें तो चाइल्ड एब्यूज के केस जो स्कूलों में मिल रहे हैं उसकी शुरुआत घर से ही होती है। बच्चों को अनुशासित करने के लिए हम उन्हें डराने-धमकाने से बाज नहीं आते और अनुशासन की आड़ में हम उन्हें इतना प्रताणित कर देते हैं कि वह या तो बिल्कुल दब्बू हो जाते हैं या फिर बागी। दोनों ही कंडीशन धीरे-धीरे बढ़ती है और स्कूलिंग में इसका असर नजर आने लगता है। जो कमजोर बच्चे होते हैं वह खुद को अलग कर लेते हैं, जबकि जो थोड़ा मजबूत होते हैं वह एग्रेसिव हो जाते हैं।