नए डॉक्टर्स को भी लगता है डेडबॉडी से डर, यहां पढ़ें उनके एक्सपीरियंस
- बीआरडी मेडिकल कॉलेज की ह्यूमन ऑर्गन प्रदर्शनी का हुआ समापन
- प्रतिभागी 2017 बैच एमबीबीएस स्टडेंट्स ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से शेयर किए अपने एक्सपीरियंसशुरूआत में होती थी घबराहट
GORAKHPUR: एमबीबीएस फर्स्ट इयर स्टूडेंट अदिति ठाकुर कहती हैं कि एडमिशन के बाद शुरुआती दौर में काफी घबराहट होती थी। एनॉटमी क्लास में तो डेडबॉडी देख काफी डर लगता था। लेकिन धीरे-धीरे सब नॉर्मल हो गया। टीचर्स बुक के जरिए इतने सटीक तरीके से मानव संरचना के बारे में बताते हैं कि अब प्रैक्टिकल में बिल्कुल भी डर नहीं लगता। वहीं, सुंदरम निगम कहते हैं कि एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद जब मेडिकल कॉलेज में दाखिला हुआ तो कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन एक लक्ष्य है कि हमें एक अच्छा डॉक्टर बनना है। सुंदरम बताते हैं कि फर्स्ट इयर के सिलेबस में ही मानव संरचना के बारे में बताया जाता है। शुरूआती दौर में डेडबॉडी देख डर लगता है। इससे पहले ही शिक्षक शरीर के अलग-अलग अंगों के बारे में बुक के जरिए पढ़ाते हैं। फिर अलग-अलग मानव अंगों पर रिसर्च कराए जाते हैं।
स्टूडेंट्स को मेडल देकर किया पुरस्कृत
उधर, एनॉटमी विभाग की ओर से मानव अंगों पर आयोजित एक्सपो 2018 के समापन अवसर पर स्कूली बच्चों सहित पब्लिक की भीड़ जुटी। सभी ने 2017 बैच के एमबीबीएस स्टूडेंट्स से ह्यूमन ऑर्गन्स के बारे में टिप्स लिए। इस अवसर पर मुख्य अतिथि रहे बीआरडी प्रिंसिपल डॉ। गणेश कुमार ने प्रदर्शनी में भाग लेने वाले 2017 बैच के एमबीबीएस स्टूडेंट्स के अच्छे प्रदर्शन पर उन्हें मेडल व प्रमाण पत्र देकर पुरस्कृत किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रदर्शनी हर बार होना चाहिए। इसके जरिए लोगों को भी जागरूक किया जा सकता है। एनॉटमी विभाग के एचओडी डॉ। रामजी सिंह ने कहा कि वर्ष 1998 में ही मानव अंग पर प्रदर्शनी करने का विचार आया था जो अब जाकर पूरा हुआ है।
प्रिंसिपल डॉ। गणेश कुमार ने कहा कि मेडिकल कॉलेज को साफ-सुथरा रखने के लिए सभी को स्वच्छता अभियान चालने की जरूरत है। इसके लिए स्टूडेंट्स को आगे आने की आवश्यकता है। इस अभियान में स्टूडेंट्स की जो टीम अच्छा कार्य करेगी, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। इस मौके पर डॉ। योगेंद्र कुमार, शिक्षकगण और एमबीबीएस स्टूडेंट्स मौजूद रहे।
क्या कहते हैं मेडिकल स्टूडेंट
पहले से ही मन में डॉक्टर बनने की इच्छा थी। जहां तक डर का सवाल है तो शुरू में थोड़ा था लेकिन अब नहीं है। घर छोड़ कर परिवार से दूर रहना और इन चीजों को फेस करना परेशानी का सबब लगता था। लेकिन धीरे-धीरे अब यह आदत में शुमार हो गया है।