Gorakhpur : दादी के नुस्खे और हकीम के फंडों का जवाब नहीं. मिनटों में ही शरीर का दुख और दर्द दोनों गायब. फिर डॉक्टर की क्या जरूरत. कुछ ऐसा ही ख्याल बुजुर्गों का था. मगर इन फंडों के चलते लोगों को बचपन की लापरवाही की सजा जवानी में भुगतनी पड़ रही है. अधिकांश लोगों में कान की प्रॉब्लम बचपन में हकीमी फंडे का साइड इफेक्ट है. ऐसे कई मामले सरकारी हॉस्पिटल की ओपीडी से लेकर डॉक्टर्स की प्राइवेट क्लीनिक में आ रहे है.


कान के पर्दे में हो जाता है छेद21वीं सेंचुरी भले ही हाइटेक हो गई हो, मगर इसमें जी रहे लोग अभी भी पुराने नुस्खों पर डिपेंडेड हैं। यह हम नहीं बल्कि डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल और प्राइवेट क्लीनिक की ओपीडी बयां करती है, जहां डेली दर्जनों ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनके कान में प्रॉब्लम है। इसकी वजह कोई नई बीमारी नहीं बल्कि पुराने नुस्खे हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक अक्सर लोग अपने बच्चों के कान में नीम का पानी, गर्म तेल या नार्मल तेल डालते हैं। उन्हें यह भरोसा होता था कि इससे कई बीमारी खत्म हो जाएगी। जबकि हकीकत में ये इंफेक्शन करता है और इससे फ्यूचर में कई प्रॉब्लम क्रिएट होती है। कान में कोई भी प्रॉब्लम होने पर स्पेशलिस्ट से इलाज कराना चाहिए, न कि नुस्खे अपनाना चाहिए क्योंकि कान बहुत सेंसटिव पार्ट्स है। छोटी सी लापरवाही से सुनने की क्षमता तक जा सकती है।
डॉ। पीएन जायसवाल, ईएनटी सर्जनसता सकती है ये बीमारियां-कान का पर्दा फट सकता है-ओटाइटिस एक्सटर्ना-सुनने की क्षमता कम हो सकती है-स्पीक डेवलपमेंट इफेक्टेड हो सकती है-कान में पस पड़ सकता है

Posted By: Inextlive