'मैं नवीं में पढ़ता था तभी एक रिश्तेदार संग इटली चला गया था. वहां रात में होटलों में बरतन धोकर दिन में अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाता था. किसी तरह मैंने कंप्यूटर का कोर्स किया. इटली की लोकल लैंग्वेज सीखकर प्राइवेट टूरिस्ट कंपनी में जॉब शुरू की.


गोरखपुर (ब्यूरो)। मेरे दो बच्चे और पत्नी भी इटली में सेटल हो गए हैं। लेकिन मेरा लगाव गांव की माटी से उतना ही है, जितना पहले था। मैंने अपनी मेहनत की कमाई से गांव पर 12 जून 1995 को भूमि खरीदकर दो कमरे का पक्का मकान बनवाया। उसे अपने परिचित को दे दिया। घर की देखभाल करने वाली महिला वंदना सिंह की डेथ तीन मई को हो गई। इसके बाद 14 जून को मेरे अगल-बगल में रहने वाले कुछ दबंगों ने ताला तोड़कर कब्जा कर लिया। मेरी चारदीवारी ढहा दी। घर में रखा हुआ पांच हजार रुपया और सारा सामान ले गए। इसकी जानकारी मिलने पर 15 अक्टूबर को मैं इटली से गोरखपुर आया। मैंने जब विरोध जताया तो दबंगों ने जानमाल की धमकी दी। मैंने इसकी सूचना गीडा थाने में दी, लेकिन कुछ नेताओं के दबाव में पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। आप ही बताइए, वह मेरी मेहनत की कमाई है। लेकिन विदेश में रहने की वजह से पुलिस मेरी मदद नहीं कर रही है। मुझे मेरे ही वतन में इंसाफ नहीं मिल रहा है। इतनी बात कहकर चौथी प्रसाद रो पड़े। उनकी आंखों से बहते हुए आंसू साफ बता रहे वह जरूर ना इंसाफी के शिकार हुए हैं। लेकिन पुलिस उनकी मदद नहीं कर रही है। यह अकेले चौथी प्रसाद की कहानी नहीं है। बल्कि तमाम ऐसे लोग हैं जो परदेस में रहते हैं और उनकी अपनी प्रॉपर्टी की चोरी, जबरन अपना नाम चढ़वा लेना, कब्जा कर लेना आम बात हो गई है। हद तो यह है कि जब इसकी शिकायत लेकर पीडि़त थाने पहुंचते हैं तो उनको एनआरआई मानकर पुलिस टरका देती है। डीआईजी से मिलकर सुनाई व्यथा, जांच के निर्देश गीडा के नगवा निवासी चौथी प्रसाद थाने का चक्कर लगाकर थक गए तो 17 नवंबर को वह डीआईजी जे। रविंद्र गौड़ से मिलने पहुंचे। डीआईजी से मिलकर उन्होंने पूरी बात बताई। डीआईजी ने प्रकरण की जांच करके एसएचओ गीडा से रिपोर्ट मांगी है। हालांकि, इस प्रकरण में एक लोकल नेता का दबाव होने की वजह से पूर्व थानेदार कार्रवाई से कतराते रहे हैं। नए एसएचओ ने जांच करके न्यायोचित कार्रवाई का भरोसा दिलाया है। चौकी प्रभारी का मर्चेंट नेवी एंप्लाई पर समझौते का दबाव


दूसरा मामला गुलरिहा पुलिस स्टेशन का है, जहां मर्चेंट नेवी में जॉब करने वाले कृष्ण मोहन प्रसाद ने मुकदमा दर्ज कराया। विदेश में रहने वाले कृष्ण मोहन प्रसाद ने 28 मई को अपने विद्यालय में हुए फर्जीवाड़े की सूचना पुलिस को दी। तत्कालीन थानेदार ने मामले को टरका दिया तो उन्होंने उस समय तैनात रहे एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु से मुलाकात की। एसएसपी ने मामले की जांच करके एफआईआर का निर्देश दिया। जांच में प्रकरण सही पाए जाने पर पुलिस ने केस दर्ज कर लिया। आरोप है कि एफआईआर के बाद मामले में फर्जी सिग्नेचर बनाए जाने की जांच के लिए सैंपल फॉरेसिंक लैब भेजने में पुलिस ने विलंब किया। जानकारी होने पर दोबारा एसएसपी ने तेवर दिखाए तो किसी तरह से सैंपल भेजा गया। इस मामले की भटहट चौकी इंचार्ज को मिली। पुलिस की लिखापढ़ी कमजोर होने से पूरी फाइल लौट आई। लेकिन अभियुक्त पक्ष के प्रभाव में आकर विवेचक ने इसकी कोई सूचना पीडि़त पक्ष को नहीं दी। बल्कि वह समझौते का दबाव बनाने लगे। 18 नवंबर को पीडि़त के बेटे ने इसकी जानकारी डीआईजी को दी। छानबीन के बाद सामने आया कि विवेचक मामले में दबाव बनाते हुए जांच को प्रभावित कर रहे हैं। प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए डीआईजी ने इसकी जांच कराने का निर्देश एसएसपी को दिया। आवेदक के एप्लीकेशन पर डीआईजी ने इसका जिक्र भी किया है। आरोपितों के प्रभाव में नहीं देते ध्यान

यह दो मामले ऐसे हैं, जिनमें विदेश में रहकर जॉब करने वालों की पुलिस से न्याय की उम्मीद टूट रही है। पीडि़त पक्षों का कहना है कि थानों की कार्यप्रणाली से उनको न्याय मिलना मुश्किल लग रहा है। जबकि आए दिन सीनियर अफसर जांच पड़ताल करके मामलों में कार्रवाई का आश्वासन देते हैं। पीडि़त पक्ष का कहना है कि उनके मामलों की जांच के बजाय लोकल पुलिस आरोपितों के फेवर में दबाव बनाती है। जांच पर जांच, पेडिंग पड़े रहते मामले जिले में रोजाना सौ से अधिक एप्लीकेशन पुलिस अधिकारियों तक पहुंचते हैं। इनमें कुछ को राजस्व का मामला बताकर थानेदार अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। कई मामले जिनमें कार्रवाई संभव है। लेकिन आरोपितों के प्रभाव में पुलिस बचती रहती है। ऐसे में मामलों की जांच हर लेवल पर चलती रहती है। इससे मामले पेडिंग पड़े रहते हैं। इन मामलों में कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। प्रकरण में लापरवाही के लिए जो भी दोषी पाया जाएगा। उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। जे। रविंद्र गौड, डीआईजी गोरखपुर

Posted By: Inextlive