हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

GORAKHPUR : मैं उर्दू अदब में आज पहचान का मोहताज नहीं हूं। इसका सारा क्रेडिट अगर किसी के खाते में जाता है, तो वह हैं फिराक गोरखपुरी। उर्दू अदब के सबसे बड़े शायर फिराक का नाम ख्0वीं सदी के दिग्गज शायरों में आता है। जानकारों की मानें तो उर्दू अदब में इकबाल के बाद अगर किसी का नंबर आता है तो वह फिराक ही हैं। गोरखपुर से पुराना नाता और यहां से मुहब्बत का ही नतीजा था कि उन्होंने अपने तखल्लुस के साथ गोरखपुर का नाम भी जोड़ लिया। यह फिराक ही थे जिन्होंने न सिर्फ अपने हुनर के दम पर देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराया और अपने शहर को अलग पहचान दिलाई।

घर से ही मिल गया था शायरी का माहौल

गोरखपुर के बांसगांव में पैदा हुए फिराक गोरखपुरी को शुरु से ही पढ़ने लिखने का काफी शौक था। उनके पिता गोरख प्रसाद भी 'इब्रत गोरखपुरी' के नाम से शायरी किया करते थे। वह शहर के सबसे बेहतरीन वकीलों में शामिल थे। घर में पहले से ही साहित्य का माहौल मिलने की वजह से फिराक का साहित्य से साथ नहीं छूटा। अपनी हाईस्कूल तक की एजुकेशन गवर्नमेंट जुबली इंटर कॉलेज से करने के बाद वह इलाहाबाद चले गए। वहां सेंट्रल कॉलेज से उन्होंने अपना इंटरमीडिएट कंप्लीट किया, बीए एग्जाम में उन्होंने मेरिट में दूसरी पोजीशन हासिल की। आगरा यूनिवर्सिटी से प्राइवेट अंग्रेजी में एमए किया और क्9फ्0 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी विभाग में प्रवक्ता हो गये और पढ़ाने के साथ शेरो-शायरी में डूब गये। क्9फ्0 से क्9भ्9 तक फिराक ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बतौर इंग्लिश प्रोफेसर अपनी जिम्मेदारी निभाई। क्9म्0 में वह रिटायर हुए और क्98ख् में दुनिया से रुखसत हो गए।

रास आई राजनीति

गोरखपुर से इलाहाबाद पहुंचे फिराक को वहां की साहित्यिक और राजनैतिक सरगर्मी ने काफी प्रभावित किया। इस दौरान उनके ऊपर शायरी के साथ-साथ वतनपरस्ती का जज्बा हावी था और वह नेहरू व गांधी से बेहद प्रभावित थे। इसका नतीजा यह रहा कि आईसीएस में चुने जाने के बाद भी फिराक ने सरकारी नौकरी को लात मार दी। क्9ख्0 के आस पास वह इलाहाबाद में नेहरू परिवार के काफी करीब आ चुके थे और बकायदा सियासी जलसों में भी शरीक होने लगे थे। क्9ख्0 में ही जब जार्ज पंचम के वली अहद प्रिंस ऑफ वेल्स भारत का दौरा करने आये तो महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में उन्होंने इस दौरे का बायकाट किया गया। पंडित नेहरू की गिरफ्तारी के बाद इलाहाबाद में कांग्रेस की सूबाई कमेटी की मीटिंग हुयी, जिसमें फिराक जोर-शोर से शरीक हुए, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पहले उन्हें मलाका जेल ले जाया गया। मुकदमें के बाद फिराक को आगरा जेल शिफ्ट कर दिया गया। फिराक साल भर से ज्यादा जेल में रहे। जेल में मुशायरों का दौर शुरु हुआ, जिसमें फिराक ने कई गजलें इसी जेल में कहीं। उनकी यह दो गजलें काफी मशहूर हुई।

अहले जिन्दा की यह महफिल है सुबूत इसका 'फिराक'

कि बिखर कर भी यह शीराजा परेशां न हुआ

खुलासा हिन्द की तारीख का यह है हमदम

यह मुल्क वक्फे-सितम हाए रोजगार रहा

'प्रेमचंद' ने दिलाई पहचान

एजुकेशन फील्ड में दबदबा रखने वाले फिराक का उर्दू की तरक्की में बड़ा हाथ है। वह मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद के काफी करीबी थे। फिराक को बड़े लोगों के बीच ले जाने और उन्हें पहचान दिलाने में प्रेमचंद का बड़ा हाथ है। जानकारों की मानें तो फिराक उमदा शायर तो थे ही साथ ही एक बड़े आलोचक भी थे। उर्दू आलोचन के मैदान में उन्होंने नए ट्रेंड को डेवलप किया। रूबाई (चौपाई) में उनका कोई जवाब नहीं था। इश्किया शायरी, अंदाजे उनकी अहम किताबों में से हैं। उमर कय्याम परशियन रुबाई के सबसे बड़े शायर माने जाते हैं, जिनके लेख का अनुसरण करते हुए हरिवंश राय बच्चन ने 'मधुशाला' लिखी। इसे आगे बढ़ाते हुए फिराक ने इसे नए अंदाज में पेश किया, जो 'रूप' के नाम से छपा। ऐसी रुबाई आज तक नहीं लिखी गई।

आप फिराक साहब के शहर से हैं

गोरखपुर में फिराक ने भले ही चंद साल गुजारा हो, लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी गोरखपुर के नाम ही कर दी। यही वजह रही कि उन्होंने गोरखपुर से लगाव की वजह से अपने नाम तक में इसे शामिल कर लिया। उर्दू डिपार्टमेंट के प्रोफेसर रजिउर्रहमान बताते हैं कि फिराक ने गोरखपुर वालों को न सिर्फ देश में बल्कि विदेश में पहचान दिलाई है। उन्होंने बताया कि वह दिल्ली में एक मुशायरे में शामिल होने के लिए गए थे, वहां ज्यादातर लोग अनजान थे। एक अजनबी शख्स उनके बगल में आकर बैठ गया। धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरु हुआ। पहले उसने उनका नाम और कहां से आए हैं यह पूछा, तो इस पर प्रोफेसर ने गोरखपुर बताया, तो इस पर उस अजनबी ने यह कहा कि 'अच्छा आप फिराक साहब के शहर से आए हैं'।

गलतियों पर टोके गए पं नेहरू भी

- उस दौर में काफी कम लोग थे, जिन्हें ठीक से अंग्रेजी आती थी। इसमें जवाहर लाल नेहरू शामिल थे। फिराक गोरखपुर का लैंग्वेज पर इस कदर कमांड था कि वह गलती पर किसी को भी नहीं बख्शते थे। नेहरू की छोटी-मोटी गलतियों पर भी वह उन्हें टोक दिया करते थे।

-एक बार मुंबई में मुशायरा हुआ। इसकी सदारत फिराक साहब को करनी थी। इस दौरान उस वक्त के मशहूर अदाकार दिलीप कुमार भी वहां पहुंचे। उन्होंने फिराक साहब से मुलाकात की, तो दिलीप ने कहा कि मैं दिलीप कुमार। तो इस पर फिराक ने कहा कि कौन दिलीप कुमार? तो उन्होंने कहा कि फिल्मी दुनिया से, तो उन्होंने इस पर फॉर्मली रिएक्शन देते हुए कहा, अच्छा और वहां से दूसरी ओर चल दिए।

- एक बार फिराक साहब की वाइफ गोरखपुर से इलाहाबाद पहुंची। तो वह घर के बाहर ही खड़े हुए थे, रिक्शे को पैसा देने के बाद जैसे ही वह घर के अंदर जाने लगीं तो फिराक साहब ने उन्हें वहीं रोका और पूछा कि मरचा का अचार लाई हो, इस पर उनकी वाइफ ने न में सर हिलाया। तो फिराक ने फौरन ही उन्हें वापस लौटा दिया।

अहम किताबें - रूहे कायनात, रन्जो कायनात, गजलिस्तान, शबनममिस्तान, गुले नगमा, रूप, अंदाजे उर्दू की अश्कियां, जनीर की बानी, बज्म-ए-जिंदगी, रंग-ए-शायरी, मन आनम, हमारा सबसे बड़ा दुश्मन, राग-विराग, धरती की करवट, नवरत्‍‌न।

पुरस्कार-सम्मान

क्9म्0 में साहित्य अकादमी

क्9म्8 में पद्म भूषण

क्9म्9 में ज्ञानपीठ

क्97भ् में आगरा यूनिवर्सिटी से डी.लिट

Posted By: Inextlive