GORAKHPUR : किसी स्टूडेंट का आई क्यू टेस्ट करना हो या फिर किसी की काबिलियत परखना हो तो इसके लिए टीचर्स आम तौर पर एग्जाम लेकर इसकी जांच करते हैं. टीचर्स की बात करें तो एक्सपर्ट पैनल उनकी काबिलियत परखती है. स्टूडेंट्स का टेस्ट तो हर साल होता है लेकिन टीचर्स का टेस्ट सिर्फ ज्वाइनिंग के दौरान ही होता है इसके बाद न तो उन्हें किसी तरह के टेस्ट की जरूरत पड़ती है और न ही कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन भी इसकी जहमत उठाता है. इन सबसे अलग हटकर सिटी के महाराणा प्रताप पीजी कॉलेज जंगल धूसड़ में हालात कुछ अलग हैं. यहां स्टूडेंट्स के साथ ही टीचर्स को भी अग्निपरीक्षा के होकर गुजरना पड़ता है.


स्टूडेंट्स करते हैं टीचर क्वालिटी का फैसलाटीचर्स की वे ऑफ टीचिंग क्या है, इनका पढ़ाया समझ में आता है या नहीं, इसको भला स्टूडेंट्स से अच्छा कौन बता सकता है। यही वजह है कि एमपीपीजी कॉलेज में टीचर्स की क्वालिटी का फैसला स्टूडेंट्स करते हैं। हालांकि इससे टीचर्स को कोई नुकसान नहीं पहुंचता, लेकिन उन्हें अपनी क्वालिटी और ड्रा बैक जरूर पता चल जाता है, जिससे कि वह फ्यूचर में अपनी कमजोरियों को दूर कर सकें। स्टूडेंट्स भरते हैं फीड बैक फॉर्म


अपने टीचर को कुछ दिनों तक परखने के बाद स्टूडेंट्स उनका क्वालिटी और ड्रा बैक का फैसला करते हैं। यह कहीं और से नहीं बल्कि खुद कॉलेज एडमिनिट्रेशन की ओर से कराया जाता है। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। प्रदीप राव की माने तो एक फीड बैक फॉर्म दिया जाता है, जिसमें टीचर्स की क्वालिटी से रिलेटेड 10 सवाल होते हैं। सभी स्टूडेंट्स को यह फॉर्म सब्मिट करने होते हैं। स्टूडेंट्स द्वारा दिए गए फीडबैक को सिर्फ कॉलेज के प्रिंसिपल या फिर वह पार्टिकुलर टीचर जिसके बारे में फीडबैक दिया गया है वही देख सकता है, जिससे कि उस टीचर को सबके सामने शर्मिंदा न होना पड़े।ताकि क्वालिटी रहे बेहतर

कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। राव ने बताया कि इस फीडबैक फॉर्म को भरवाने के पीछे सबसे बड़ा मकसद यह है कि इससे टीचिंग क्वालिटी बेहतर हो सके। स्टूडेंट्स द्वारा दिए गए फीडबैक को प्रिंसिपल और टीचर दोनों ही ने देखा होता है, इसलिए उस टीचर का ड्राबैक प्रिंसिपल को मालूम होता है। इसकी वजह से टीचर भी अपनी कमजोरी को दूर करने की कोशिश करते हैं, जिससे उनकी वे ऑफ टीचिंग में सुधार आ जाता है और स्टूडेंट्स को भी क्वालिटी एजूकेशन मिलती है। साल में दो बार भरा जाता है फॉर्मकालेज में फॉर्म के थ्रू फीडबैक लिए जाने की यह व्यवस्था साल में दो बार की जाती है। पहली बार जब स्टूडेंट्स कॉलेज में एडमिशन लेकर आते है तो क्लासेज स्टार्ट होने के दो मंथ बाद ही पहली बार फॉर्म भरा जाता है। यह फॉर्म सितंबर में भरवाया जाता है। वहीं दूसरी बार यह फॉर्म जनवरी में भरवाए जाते हैं, जब स्टूडेंट्स कुछ और वक्त कॉलेज में बिता लेता है। इस दौरान यह भी पता चल जाता है कि उस टीचर की टीचिंग क्वालिटी में सुधार आया है या नहीं।Asked questions : -रिलेटेड टीचर का पढ़ाया विषय समझ में आता है-पढ़ाने की शैली कैसी है?-आपके प्रति रिलेटेड टीचर का बिहेवियर कैसा है?-क्लासेज के अलावा उनका कॉलेज में बिहेवियर कैसा है?

-रिलेटेड टीचर के बिहेवियर का यदि कोई पक्ष आपको सबसे अच्छा लगता है तो क्या है-रिलेटेड टीचर के बिहेवियर का यदि कोई पक्ष आपको सबसे बुरा लगता है तो क्या है?-रिलेटेड टीचर का अपना सब्जेक्ट नॉलेज कैसी है?-टीचिंग में सुधार के लिए आपका सुझाव?-कॉलेज कैंपस को और अच्छा बनाने और वे ऑफ टीचिंग में गुणवत्ता के लिए सुझाव?-आपको अगर कुछ और कहना है?हम क्यों नहीं सिटी का एक ऐसा कॉलेज जो क्वालिटी एजूकेशन के लिए तमाम हथकंडे अपना रहा है तो क्या सिटी के अदर कॉलेजेज को भी उस कॉलेज से सीख नहीं लेनी चाहिए? क्या अदर कॉलेज के एडमिनिस्ट्रेशन को यह बात नहीं सोचनी चाहिए कि उनके कॉलेज में जो टीचर्स अप्वाइंट हैं वह स्टूडेंट्स को क्वालिटी एजूकेशन दे रहे हैं या नहीं? क्या उन्हें भी फीडबैक सिस्टम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए? अगर सभी कॉलेज ऐसा करना शुरू कर दें तो एजूकेशन क्वालिटी में सुधार आने से कोई भी नहीं रोक सकेगा।

Posted By: Inextlive