एक व्यक्ति की मृत्यु कम उम्र में ही हो जाती है जबकि दूसरा व्यक्ति वृद्धावस्था तक अपने जीवन का सफ़र तय करता है. अब तक हम जानते थे कि इसके पीछे जीवन शैली और अनुवांशिक लक्षण अपनी भूमिका निभाते हैं.

प्रोफ़ेसर डेविड बार्कर का तर्क है कि भविष्य में किसी इंसान की सेहत कैसी होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि जन्म के समय उस शिशु का वज़न कितना था। ह्रदय रोग, कैंसर, मधुमेह जैसी कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो व्यक्ति की जीवन अवधि को तय करती हैं।

हम सब जानते हैं कि धमनियों का कड़ा हो जाना, रक्तचाप का बढ़ना या फिर इंसुलिन का अप्रभावी हो जाना भी कुछ कारण हैं, लेकिन कुछ  लोगों को अन्य के मुक़ाबले ज़्यादा बीमारियां क्यों होती हैं।

मोटापा, धूम्रपान और मनोवैज्ञानिक तनाव आज तमाम बीमारियों के कारण हैं। पर सवाल यह है कि सौ साल पहले ह्रदय रोग के मामले यदा कदा ही होते थे, जबकि आज पूरे संसार में होनो वाली मौतों का सामान्य कारण ह्रदय रोग ही है।

डायबिटीज़ पर सबसे ज़्यादा चौकाने वाला शोध भारत के गाँवों में किया गया जिसमें पाया गया कि यह शुद्ध शाकाहारी भोजन पर निर्भर थे, लेकिन शारीरिक रूप से बेहद सक्रिय थे, हाँलाकि वह भी डायबिटीज़ से पीड़ित थे।

शिशु का पोषण

अजन्मे शिशु का पोषण उसकी माँ के शरीर से होता है। लेकिन इसका मतलब सिर्फ़ माँ के रोज़मर्रा के भोजन से नही है। शिशु का विकास माँ के शरीर में संचित भोजन से होता है और यह उस माँ के पूरे जीवन के पोषण पर निर्भर करता है। साथ ही इससे भी कि शिशु का शरीर उस भोज्य पदार्थ के प्रति कैसा व्यवहार करता है ।

इन सारी बातों से ही शिशु के भविष्य की सेहत भी तय हो जाती है। जन्म के समय शिशु का वज़न इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भावस्था के दौरान उसका पोषण कैसा रहा। यह ही उसे भविष्य में गंभीर बीमारियों से रक्षा करने में मदद करेगा।

Posted By: Inextlive